Hasya Ras (हास्य रस: परिभाषा भेद और उदाहरण)

Ad:

http://www.hindisarkariresult.com/hasya-ras/
Hasya Ras

Hasya Ras/ हास्य रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Hasya Ras: Definition and Example in Hindi

Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल

हास्य रस की परिभाषा (Definition of Hasya Ras in Hindi)

किसी व्यक्ति या पदार्थ की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर हृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास कहा जाता है। यही हास का भाव जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है तो उसे ‘हास्य रस’ कहते है। हास्य रस का स्थायी भाव हास है। इसमें हास्य की प्रधानता रहती है.

हास्य रस (Hasya Ras) के अंतर्गत वेशभूषा, वाणी, आदि की विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता का भाव उन्पन्न होता है और उससे हँसी आती है, उसे ही हास्य रस कहा गया है. हास्य रस का स्थायी भाव हास है.

भरतमुनि ने हास्य रस की परिभाषा कुछ इसतरह दी है: “दूसरों की चेष्टा से अनुकरण से ‘हास’ उत्पन्न होता है, तथा यह स्मित, हास एवं अतिहसित के द्वारा व्यंजित होता है।” 

स्थायी भाव: हास

संचारी भाव: हर्ष, भ्रम, चापल्य, आलस्य

आलम्बन: विदूषक या कोई ऐसा जिसे देख के हँसी आये

उद्दीपन: आलम्बन की विचित्र चेष्टा, वचन, भाव-भंगिमा

अनुभाव: मुस्कराना, हँसना, लोट-पोट हो जाना, ख़ुशी से आँसू आ जाना

हास्य रस के उदाहरण (Example of Hasya Ras in Hindi)

1. तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप।

साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभर आलाप॥

घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता ।

धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ॥

कहें ‘काका’, सम्मेलन में सन्नाटा छाया।

श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया ॥

कलाकार जी ने कहा, होकर भाव-विभोर।

काका ! तुम संगीत के प्रेमी हो घनघोर॥

प्रेमी हो घनघोर, न हमने सत्य छिपाया।

अपने बैठे रहने का कारण बतलाया॥

‘कृपा करें’ श्रीमान ! मंच का छोड़ें पीछा।

तो हम घर ले जाएं अपने फर्श-गलीचा॥ –  काका हाथरसी 

2. विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे

गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृंद सुखारे।

ह्वै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे पद मंजुल कंज तिहारे,

कीन्हीं भली रघुनायक जू जो कृपा करि कानन को पगु धारे।। – गोस्वामी तुलसीदास 

अर्थात – रामचंद्र जी विंध्य पर्वत पे आ रहे हैं. सुनकर सारे तपस्वी प्रसन्न हो गए ये सोच के कि जब प्रभु एक पत्थर को नारी बना सकते हैं तो यहाँ तो सब पत्थर ही पत्थर है. कौन जाने हम योगियों की भी इस निर्जन वन में चांदी हो जाये !!

ये कविता मैंने यू पी बोर्ड के हाई स्कूल में पढ़ी थी, भगवान जाने तुलसीदासजी ने ये वाली कविता क्यों लिखी, जबकि वो खुद भुक्तभोगी थे, पत्नी पीड़ित थे, फिर भी, !!शायद उनमे बदले की भावना आ गयी होगी कि “हम तो डूबे सनम सबको ले डूबेंगे” 😀

रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार

3. चीटे न चाटते मूसे न सूँघते, बांस में माछी न आवत नेरे,
आनि धरे जब से घर मे तबसे रहै हैजा परोसिन घेरे,
माटिहु में कछु स्वाद मिलै, इन्हैं खात सो ढूढ़त हर्र बहेरे,
चौंकि परो पितुलोक में बाप, सो आपके देखि सराध के पेरे।।

हास्य रस के अन्य प्रमुख उदाहरण

नाना वाहन नाना वेषा। विंहसे सिव समाज निज देखा॥
कोउ मुखहीन, बिपुल मुख काहू बिन पद कर कोड बहु पदबाहू॥

हँसि-हँसि भाजैं देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।

सीस पर गंगा हँसै, भुजनि भुजंगा हँसै,
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में॥

मैं यह तोहीं मैं लखी भगति अपूरब बाल।
लहि प्रसाद माला जु भौ तनु कदम्ब की माल।

जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली॥

लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष सनाना
का छति लाभु जून धनु तोरे। रेखा राम नयन के शोरे।।

बिहसि लखन बोले मृदु बानी, अहो मुनीषु महाभर यानी।
पुनी पुनी मोहि देखात कुहारू, चाहत उड़ावन फुंकी पहारु।

हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-सी गाल॥

पत्नी खटिया पर पड़ी, व्याकुल घर के लोग
व्याकुलता के कारण, समझ न पाए रोग
समझ न पाए रोग, तब एक वैद्य बुलाया
इसको माता निकली है, उसने यह समझाया
कह काका कविराय, सुने मेरे भाग्य विधाता
हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता।।

इन्हें भी पढ़ें:

  1. श्रृंगार रस (Shringar Ras in Hindi)
  2. करुण रस (Karun Ras in Hindi)
  3. वीर रस (Veer Ras in Hindi)
  4. रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi)
  5. भयानक रस (Bhayanak Ras in Hindi)
  6. वीभत्स रस  (Veebhats Ras in Hindi)
  7. अद्भुत रस  (Adbhut Ras in Hindi)
  8. शांत रस  (Shant Ras in Hindi)
  9. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras in Hindi)
  10. भक्ति रस  (Bhakti Ras in Hindi)

रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान

प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं

मन:संवेग रस के नाम स्थायी भाव मूल प्रवृतियाँ
1काम श्रृंगार प्रेम काम-प्रवृति (sex)
2हास हास्य हास आमोद (laughter)
3करुणा (दुःख)करुण शोक शरणागति (self-submission)
4उत्साह वीर उत्साह अधिकार-भावना (acquisition)
5क्रोध रौद्र क्रोध युयुत्सा (combat)
6भय भयानक भय पलायन (escape)
7घृणा वीभत्स जुगुप्सा निवृति (repulsion)
8आश्चर्य अद्-भुत विस्मय कुतूहल (curiosity)
9दैन्य शांत निर्वेद (शम)आत्महीनता (appeal)
10वत्सलता वात्सल्य स्नेह, वात्सल्य मातृभावना (parental)
11भगवद्-अनुरक्ति भक्ति अनुराग भक्ति-भावना (allocation spirit)

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.