Vatsalya Ras/ वात्सल्य रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Vatsalya Ras: Definition and Example in Hindi
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वात्सल्य रस की परिभाषा (Definition of Vatsalya Ras in Hindi)
वात्सल्य रस (Vatsalya Ras), माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का छोटों के प्रति प्रेम, गुरु का शिष्यों के प्रति प्रेम, बड़े भाई या बहन का छोटे भाई-बहन के प्रति प्रेम स्नेह कहलाता है. यही स्नेह परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है. वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है.
दूसरे शब्दों में कहें तो-
“जब संतान, शिष्य, अनुज के प्रति प्रेम उमड़ता है तो वहां वात्सल्य रस होता है”
वात्सल्य रस की शुरुवात
वात्सल्य वत्सल शब्द से बना है जिसका अर्थ प्रेम होता है। किंतु यहां शृंगार रस के प्रेम और वत्सल प्रेम में सूक्ष्म अंतर है। शृंगार रस का प्रेम दांपत्य जीवन पर आधारित होता है तथा वात्सल्य रस का प्रेम वत्सल – पुत्र स्नेह, मानव स्नेह, भागवत प्रेम आदि तक सीमित है. यही कारन है कि प्राचीन आचार्यों ने वात्सल्य रस को एक स्वतंत्र रस की स्वीकृति नहीं दी थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से नौ रस को ही मान्यता दिया। वात्सल्य रस को मान्यता दिलाने के लिए भक्ति कालीन कवियों ने पुरजोर प्रयत्न किया और बाद में आधुनिक हिंदी आचार्यों द्वारा वात्सल्य रस को स्वीकृति प्रदान की गयी। आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य रस को स्वतंत्र रूप से रस की मान्यता दी।
भक्तिकाल के दौरान सूरदास ने अपने आराध्य श्री कृष्ण को वत्सल रूप में प्रेम किया। वही गोस्वामी तुलसीदास ने अपने स्वामी श्री राम के बाल लीलाओं का वर्णन कर उनके वत्सल प्रेम को उजागर किया।
स्थायी भाव: स्नेह
संचारी भाव: हर्ष
आलम्बन: संतान, शिष्य, अनुज आदि
अनुभाव: मुख प्रसन्न होना, चूमना, बलैया लेना, सिर पर हाथ फेरना, चुंबन, स्पर्श, मुग्ध होकर देखना, मीठी–मीठी बातें करना, खिलाना पिलाना, लालन–पालन, पुलकित होना, गदगद होना, दुखी होना इत्यादि
वात्सल्य रस के उदाहरण (Example of Vatsalya Ras in Hindi)
1. बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति
2. सन्देश देवकी सों कहिए
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै
वात्सल्य रस के प्रकार (Types of Vatsalya Ras in Hindi)
वात्सल्य रस काफी हद तक श्रृंगार रस की भांति प्रतीत होता है और उसी प्रकार इसके दो भेद भी बताए गए हैं वात्सल्य रस (Vatsalya Ras) के दो प्रकार हैं:
- संयोग वात्सल्य
- वियोग वात्सल्य
संयोग वात्सल्य
जहाँ संयोग रूप में स्नेह उमड़ता है वहां संयोग वात्सल्य रस होता है
संयोग वात्सल्य का उदाहरण
वरदंत की पंगत कुंद कली अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जगे , छवि मोतिन मॉल अमोलन की
घुघरारी लटे लटके मुख ऊपर कुंडल लाल कपोलन की
न्योछावर प्राण करे तुलसी बलि जाऊ लला इन बोलन की
वियोग वात्सल्य
जहाँ वियोग रूप में प्रेम, अनुराग उमड़ता है वहाँ वियोग वात्सल्य रस होता है
वियोग वात्सल्य का उदाहरण
सन्देश देवकी सों कहिए
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै
वात्सल्य रस के अन्य उदाहरण (Vatsalya Ras ke Example)
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत ॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥- सूरदास
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति – – सूरदास
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया। -तुलसीदास
मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों।
मैया कबहु बढ़ेगी चोटी
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी।
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ।
झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम
मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।
किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मचिमय कनक नंद के भांजन बिंब पक्रिये धतत।
बालदसा मुख निरटित जसोदा पुनि पुनि चंदबुलाबन।
अंचरा तर लै सुर के प्रभु को दूध पिलावत।
इसे भी पढ़ें: रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार
इन्हें भी पढ़ें:
- श्रृंगार रस (Shringar Ras in Hindi)
- हास्य रस (Hasya Ras in Hindi)
- करुण रस (Karun Ras in Hindi)
- वीर रस (Veer Ras in Hindi)
- रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi)
- भयानक रस (Bhayanak Ras in Hindi)
- वीभत्स रस (Veebhats Ras in Hindi)
- अद्भुत रस (Adbhut Ras in Hindi)
- शांत रस (Shant Ras in Hindi)
- भक्ति रस (Bhakti Ras in Hindi)
रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं
मन:संवेग | रस के नाम | स्थायी भाव | मूल प्रवृतियाँ | |
---|---|---|---|---|
1 | काम | श्रृंगार | प्रेम | काम-प्रवृति (sex) |
2 | हास | हास्य | हास | आमोद (laughter) |
3 | करुणा (दुःख) | करुण | शोक | शरणागति (self-submission) |
4 | उत्साह | वीर | उत्साह | अधिकार-भावना (acquisition) |
5 | क्रोध | रौद्र | क्रोध | युयुत्सा (combat) |
6 | भय | भयानक | भय | पलायन (escape) |
7 | घृणा | वीभत्स | जुगुप्सा | निवृति (repulsion) |
8 | आश्चर्य | अद्-भुत | विस्मय | कुतूहल (curiosity) |
9 | दैन्य | शांत | निर्वेद (शम) | आत्महीनता (appeal) |
10 | वत्सलता | वात्सल्य | स्नेह, वात्सल्य | मातृभावना (parental) |
11 | भगवद्-अनुरक्ति | भक्ति | अनुराग | भक्ति-भावना (allocation spirit) |
Nyc
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पढ़ने के लिए धन्यवाद.. ऐसे ही पढ़ते रहिये