Shant Ras/ शांत रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Shant Ras: Definition and Example in Hindi
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शांत रस की परिभाषा (Definition of Shant Ras in Hindi)
शांत रस (Shant Ras), मोक्ष और आध्यात्म की भावना, संसार से वैराग्य होने या परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर जो शान्ति मिलती है वहाँ शांत रस होता है. शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है.
दूसरे शब्द्दों में कहा जाए तो-
“जब मनुष्य को संसार की असारता/ नश्वरता तथा परमात्मा की सर्वोच्चता का ज्ञान हो जाता है तब संसार तथा सांसारिक उपभोग के प्रति उसके हृदय में एक प्रकार की ग्लानि अथवा वैराग्य-सा हो जाता है और संसार का सब-कुछ छोड़कर ईश्वर-भक्ति, ईश गुण-श्रवण, कीर्तन आदि में एक विशेष आनन्द आने लगता है। अत: हम कह सकते हैं कि जहाँ मानसिक शांति, सांसारिक विरक्ति, ईश्वरभक्ति आदि का वर्णन होता है वहाँ शान्त रस (Shant Ras) होता है”
शान्त रस (Shant ras) को हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है।
“शान्तोऽपि नवमो रस:।”
इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि भरतमुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में, जो रस विवेचन का आदि स्रोत माना जाता है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन किया है। शान्त रस के उस रूप में भरतमुनि ने मान्यता प्रदान नहीं की, जिस रूप में श्रृंगार, वीर आदि रसों की, और न उसके विभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा स्पष्ट निरूपण किया है लेकिन आधुनिक हिंदी में इसे एक सम्पूर्ण रस माना जाता है
स्थायी भाव: सम
संचारी भाव: हर्ष, स्मृति, निर्वेद
आलम्बन: सत्संगति, पवित्र आश्रम, तीर्थ, मृतक
उद्दीपन: उपदेश, कथा श्रवण, पवित्र वातावरण
अनुभाव: रोमांच, पश्चाताप आदि
शांत रस के उदाहरण (Examples of Shant Ras in Hindi)
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं – कबीरदास
लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार
मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूँद विनसि जाय छिन में गरब करै क्यों इतना।
भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।
देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा
ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।।
धूम समूह निरखि-चातक ज्यौं, तृषित जानि मति धन की।
नहिं तहं सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की।।
ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन जड़ छांह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।।
कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।।
मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते
सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥
तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश
बताओ यह कैसा उद्वेग?
देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा
लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार
भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।
अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागै फिरि न डसैहौं ॥
पायौ नाम चारु-चिन्तामनि, उर-करते न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, उर-कंचनहि कसैहौ ॥
परबस जानि हस्यौ इन इन्द्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं ।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैंहौं ।।
रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार
इन्हें भी पढ़ें:
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- करुण रस (Karun Ras in Hindi)
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- वीभत्स रस (Veebhats Ras in Hindi)
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रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं
मन:संवेग | रस के नाम | स्थायी भाव | मूल प्रवृतियाँ | |
---|---|---|---|---|
1 | काम | श्रृंगार | प्रेम | काम-प्रवृति (sex) |
2 | हास | हास्य | हास | आमोद (laughter) |
3 | करुणा (दुःख) | करुण | शोक | शरणागति (self-submission) |
4 | उत्साह | वीर | उत्साह | अधिकार-भावना (acquisition) |
5 | क्रोध | रौद्र | क्रोध | युयुत्सा (combat) |
6 | भय | भयानक | भय | पलायन (escape) |
7 | घृणा | वीभत्स | जुगुप्सा | निवृति (repulsion) |
8 | आश्चर्य | अद्-भुत | विस्मय | कुतूहल (curiosity) |
9 | दैन्य | शांत | निर्वेद (शम) | आत्महीनता (appeal) |
10 | वत्सलता | वात्सल्य | स्नेह, वात्सल्य | मातृभावना (parental) |
11 | भगवद्-अनुरक्ति | भक्ति | अनुराग | भक्ति-भावना (allocation spirit) |
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