Raudra Ras/ रौद्र रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Raudra Ras: Definition and Example in Hindi
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रौद्र रस की परिभाषा (Definition of Raudra Ras in Hindi)
रौद्र रस, जब कोई व्यक्ति या कोई पक्ष आपको बुरा-भला कहता है, अपमान करता है या आपके किसी आत्मीय की निंदा करता है तो उससे जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं. रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है. इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं
या दूसरे शब्दों में कहें तो जहाँ क्रोध का वर्णन होता है वहां रौद्र रस होता है. किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए अपमान या कहे गए शब्द आदि से जो भाव उत्पन्न होता है, यही भाव परिपक्व अवस्था में रौद्र रस कहलाता है। रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है।
काव्यगत रसों में रौद्र रस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में श्रृंगार, रौद्र, वीर तथा बीभत्स इन चार रसों को ही प्रधान रस माना है तथा इन्ही से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है. रौद्र रस से ही करुण रस की उत्पत्ति बताते हुए भारत मुनि कहते हैं कि रौद्र रस का कर्म ही करुण रस का जनक होता है.
स्थायी भाव: क्रोध
संचारी भाव: गर्व, चपलता, आवेग, घृणा, ग्लानि, गर्व, उन्माद, श्रम, ईर्ष्या, साहस, उत्साह, आवेद, अमर्ष, उग्रता, मती, स्मृति, चपलता, आशा, उत्सुकता, हर्ष आदि।
आलम्बन: शत्रु या अनुचित कार्य करने वाला, जिसके प्रति क्रोध उत्पन्न हो
उद्दीपन: शत्रु आदि की उमंग
अनुभाव: आँखें लाल होना, भौंहें तन जाना दांत पीसना, गुस्से के मारे कांपने लगना, दांत पीसना, पांव पटकना, गालियां देना, अस्त्र–शस्त्र चलाना, प्रचंड रूप धारण करना, आवेग भरे वचन बोलना, क्रोध सूचक वचन, संघारक प्रवृत्ति, ललकारना, प्रहार करना, धक्के मारना, मुट्ठी खींचना, कांपना, स्वेद, निस्वास, रोमांच आदि
रौद्र रस के उदाहरण (Raudra Ras ke Example)
सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा – रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास
श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शोक अपना भुलाकर, करतल युग मलने लगे। – मैथिलीशरण गुप्त
उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा
अतिरस बोले बचन कठोर।
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू।
उलटउँ महि जहाँ लग तवराजू।।
जो राउर अनुशासन पाऊँ।
कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ।
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले इव तोरी।।
क्या हुई बावली
अर्धरात्रि को चीखी
कोकिल बोलो तो
किस दावानल की
ज्वालाएं है दिखीं?
कोकिल बोलो तो।।
रे नृप बालक कालबस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।।
रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार
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रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं
मन:संवेग | रस के नाम | स्थायी भाव | मूल प्रवृतियाँ | |
---|---|---|---|---|
1 | काम | श्रृंगार | प्रेम | काम-प्रवृति (sex) |
2 | हास | हास्य | हास | आमोद (laughter) |
3 | करुणा (दुःख) | करुण | शोक | शरणागति (self-submission) |
4 | उत्साह | वीर | उत्साह | अधिकार-भावना (acquisition) |
5 | क्रोध | रौद्र | क्रोध | युयुत्सा (combat) |
6 | भय | भयानक | भय | पलायन (escape) |
7 | घृणा | वीभत्स | जुगुप्सा | निवृति (repulsion) |
8 | आश्चर्य | अद्-भुत | विस्मय | कुतूहल (curiosity) |
9 | दैन्य | शांत | निर्वेद (शम) | आत्महीनता (appeal) |
10 | वत्सलता | वात्सल्य | स्नेह, वात्सल्य | मातृभावना (parental) |
11 | भगवद्-अनुरक्ति | भक्ति | अनुराग | भक्ति-भावना (allocation spirit) |
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