Bhayanak Ras/ भयानक रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Bhayanak Ras: Definition and Example in Hindi
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भयानक रस की परिभाषा (Definition of Bhayanak Ras in Hindi)
जब किसी भयानक व्यक्ति या वस्तु को देखने, उससे सम्बंधित वर्णन सुनने या किसी दुखद घटना का स्मरण करने से मन में व्याकुलता और भय उत्पन्न होता है, उसे भयानक रस कहते हैं. इसका स्थायी भाव भय है.
दूसरे शब्दों में कहें तो जब भय उत्पन्न करने वाले विषयों का वर्णन हो तो वहाँ भयानक रस होता है. भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर भयानक रस का निर्माण करता है।
स्थायी भाव: आवेग, दैन्य, शंका, मृत्यु, मोह, त्रास, मूर्छा, उन्माद
आलम्बन: भीषण दृश्य जिसको देख कर डर लगे
उद्दीपन: आलम्बन की भयंकरता
अनुभाव: कंपकंपी होना, चेहरे का रंग उड़ जाना, हाथ–पांव कांपना, नेत्र विकराल होना, भागना, स्वेद, उंगली काटना, जड़ता, स्तब्धता, रोमांच, घिघि बंध जाना, मूर्छा, चित्रकार, स्वेद, विवरण, सहायता के लिए इधर-उधर देखना, शरण ढूंढना, दैन्य प्रकाशन, रुदन आदि।
भयानक रस के भेद (Types of Bhayanak ras in Hindi)
भानदत्त ने रसतरंगिणी में भयानक रस के दो भेद बताएं हैं:
- स्वनिष्ठ भयानक रस (Svanishth Bhayanak Ras)
- परनिष्ठ भयानक रस (Parnishth Bhayanak Ras)
स्वनिष्ठ भयानक रस: स्वनिष्ठ भयानक रस वहाँ होता है, जहाँ भय का आलंबन स्वयं आश्रय में रहता है
उदाहरण:
‘कर्तव्य अपना इस समय होता न मुझको ज्ञात है। कुरुराज चिन्ताग्रस्त मेरा जल रहा सब गात है।’
अतएव मुझको अभय देकर आप रक्षित कीजिए। या पार्थ-प्रण करने विफल अन्यत्र जाने दीजिए’
परनिष्ठ भयानक रस: परनिष्ठ भयानक रस वहाँ होता है, जहाँ भय का आलंबन स्वयं आश्रय में ना होकर उससे बाहर पृथक होता है. अर्थात आश्रय स्वयं अपने किये अपराध से ही डरता है.
उदाहरण:
एक ओर अजगरहि लखी, एक ओर मृगराय.
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए.
भयानक रस का वर्णन
- भयानक रस के विरोधी रस हैं: वीर रस, रौद्र रस, हास्य रस, शांत रस, और श्रृंगार रस
- भयानक रस का सबसे ज्यादा वर्णन रासो ग्रंथों, विजयगाथाओं, युद्ध ग्रंथों आदि में हुआ है
- रामचरितमानस के लंका कांड में गोस्वामी तुलसीदास के भयानक रस का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है.
- कवि भूषण के रीतिकालीन वीर काव्यों में भी भयानक रस का वर्णन मिलता है
भयानक रस के उदाहरण (Example of Bhayanak Ras in Hindi)
1. एक ओर अजगरहि लखी, एक ओर मृगराय.
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए.
2. उधर गरजती सिंधु लहरियाँ
कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती
फन फैलाये व्यालों सी।
3. आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात !
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार , अज्ञात !
4. अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार
5. “डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे।।
6. ‘बाघ ब्याल विकराल रण, सूनो बन गृह देख।
जे रावर अपराध पुनि, भय विभाव यह लेख।
कम्प रोम प्रस्वेद पुनि, यह अनुभाव बखानि।
मोह मूरछा दीनता, यह संचारी जानि।’
7. उधर गरजती सिंधु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों-सी,
8. चली आ रही फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी। – जयशंकर प्रसाद “कामायनी”
9. बालधी विशाल, विकराल, ज्वाला-जाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना परारी है।
10. कैधों व्योम बीद्यिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीर रस वीर तरवारि सी उधारी है।
11. विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होहि न प्रीति ।।
12. भेहरात, झॅहरात, दाबानल आयो।
घेर चहुओर करि सोर अंधर वल, धरनि आकास चहुँ पास छायौ ।
13. बालधी विशाल, विकराल, ज्वाला-जाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना परारी है।
14. मेरे सामने ही कातिल ने उस व्यक्ति की गर्दन पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। उसका सर धड़ से अलग हो गया और गर्दन से खून के फव्वारे निकलने लगे।
रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार
इन्हें भी पढ़ें:
- श्रृंगार रस (Shringar Ras in Hindi)
- हास्य रस (Hasya Ras in Hindi)
- करुण रस (Karun Ras in Hindi)
- वीर रस (Veer Ras in Hindi)
- रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi)
- वीभत्स रस (Veebhats Ras in Hindi)
- अद्भुत रस (Adbhut Ras in Hindi)
- शांत रस (Shant Ras in Hindi)
- वात्सल्य रस (Vatsalya Ras in Hindi)
- भक्ति रस (Bhakti Ras in Hindi)
रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं
मन:संवेग | रस के नाम | स्थायी भाव | मूल प्रवृतियाँ | |
---|---|---|---|---|
1 | काम | श्रृंगार | प्रेम | काम-प्रवृति (sex) |
2 | हास | हास्य | हास | आमोद (laughter) |
3 | करुणा (दुःख) | करुण | शोक | शरणागति (self-submission) |
4 | उत्साह | वीर | उत्साह | अधिकार-भावना (acquisition) |
5 | क्रोध | रौद्र | क्रोध | युयुत्सा (combat) |
6 | भय | भयानक | भय | पलायन (escape) |
7 | घृणा | वीभत्स | जुगुप्सा | निवृति (repulsion) |
8 | आश्चर्य | अद्-भुत | विस्मय | कुतूहल (curiosity) |
9 | दैन्य | शांत | निर्वेद (शम) | आत्महीनता (appeal) |
10 | वत्सलता | वात्सल्य | स्नेह, वात्सल्य | मातृभावना (parental) |
11 | भगवद्-अनुरक्ति | भक्ति | अनुराग | भक्ति-भावना (allocation spirit) |
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