Bhakti Ras/ भक्ति रस: परिभाषा, भाव, आलम्बन, उद्दीपन, और उदाहरण / Bhakti Ras: Definition and Example in Hindi
Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल
भक्ति रस की परिभाषा (Definition of Bhakti Ras in Hindi)
भक्ति रस (Bhakti Ras), जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम या अनुराग का वर्णन होता है वहाँ भक्ति रस होता है. भक्ति रस का स्थायी भाव देव रति है जिसे भगवत विषयक रति भी कहते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें तो जहाँ भगवद्-अनुरक्ति और प्रेम का वर्णन होता है, वहाँ भक्ति रस होता है. इस रस में ईश्वर की अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन रहता है। भक्ति रस को भी भरत मुनि में नौ रसों में स्थान नही दिया है। भक्ति रस श्रृंगार के विस्तृत क्षेत्र में आता है।
स्थायी भाव: देव रति/ अनुराग
संचारी भाव: भक्ति भावना
आलम्बन: ईश्वर, गुरु, साधू, सन्यासी, माता-पिता आदि
उद्दीपन: धर्म-स्थल, ईश्वर मूर्ति, प्रतिमा इत्यादि
अनुभाव: शरणागत होना, समर्पित होना, शरीर को ढीला छोड़ देना इत्यादि
इसे भी पढ़ें: रस की परिभाषा, उदाहरण और रस के प्रकार
भक्ति रस है या भाव?
भक्ति रस है या भाव यह प्रश्न बहुत से हिंदी वैयाकरणों और काव्य मर्मज्ञों को परेशान करता रहा है.
- कुछ विशेषज्ञ भक्ति को बलपूर्वक रस घोषित करते हैं
- कुछ परम्परानुमोदित रसों की तुलना में इसे श्रेष्ठ बताते हैं.
- कुछ शांत रस और भक्ति रस को अलग नहीं मानते.
- कुछ भक्ति रस को सभी रसों से भिन्न और अलौकिक रस मानते हैं. उनकी नजर में भक्ति एक ऐसा रस है जिसके अंतर्गत शेष सभी रसों का समावेश हो जाता है.
- कुछ की दृष्टि में भक्ति रस ही वास्तविक रस है और शेष सभी रस उसके अंग या उपांग हैं.
इस प्रकार भक्ति रस का एक स्वतंत्र इतिहास है, जो रस तत्व विवेचन की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है.
भक्ति रस के उदाहरण (Bhakti Ras ke Udaharan)
1. एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास – तुलसीदास
2. उलट नाम जपत जग जाना
वल्मीक भए ब्रह्म समाना – वाल्मीकि
3. अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई – मीराबाई
4. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई। – मीराबाई
5. वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, कर किरपा अपणायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग मैं सबै खोवायो।
खरचै न खुटै, कोई चोर न लूट, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तरि आयो।
न ‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर, हरष-हरष जस गायो। -मीराबाई
भक्ति रस के अन्य उदाहरण
हे गोविन्द हे गोपाल, हे दया निधान
राम तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ।।
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी गंध अंग-अंग समाही।
उलट नाम जपत जग जाना,
वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।
जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्भ, जल जलही समाया, इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी।
राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे।
घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे।।
राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।
यह घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं
सीस उतारी भुई धरो फिर पैठो घर माहि।
रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम अनुरागी।
ह्वै गये, हैं जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी।।
भलेा जो है, पोच जो है, दहिनो जो, बाम रे।
राम-नाम ही सों अंत सब ही को काम रे।।
इन्हें भी पढ़ें:
- श्रृंगार रस (Shringar Ras in Hindi)
- हास्य रस (Hasya Ras in Hindi)
- करुण रस (Karun Ras in Hindi)
- वीर रस (Veer Ras in Hindi)
- रौद्र रस (Raudra Ras in Hindi)
- भयानक रस (Bhayanak Ras in Hindi)
- वीभत्स रस (Veebhats Ras in Hindi)
- अद्भुत रस (Adbhut Ras in Hindi)
- शांत रस (Shant Ras in Hindi)
- वात्सल्य रस (Vatsalya Ras in Hindi)
रस के स्थायी भाव और मनोविज्ञान
प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव और कुछ मूल प्रवृतियां होती हैं
मन:संवेग | रस के नाम | स्थायी भाव | मूल प्रवृतियाँ | |
---|---|---|---|---|
1 | काम | श्रृंगार | प्रेम | काम-प्रवृति (sex) |
2 | हास | हास्य | हास | आमोद (laughter) |
3 | करुणा (दुःख) | करुण | शोक | शरणागति (self-submission) |
4 | उत्साह | वीर | उत्साह | अधिकार-भावना (acquisition) |
5 | क्रोध | रौद्र | क्रोध | युयुत्सा (combat) |
6 | भय | भयानक | भय | पलायन (escape) |
7 | घृणा | वीभत्स | जुगुप्सा | निवृति (repulsion) |
8 | आश्चर्य | अद्-भुत | विस्मय | कुतूहल (curiosity) |
9 | दैन्य | शांत | निर्वेद (शम) | आत्महीनता (appeal) |
10 | वत्सलता | वात्सल्य | स्नेह, वात्सल्य | मातृभावना (parental) |
11 | भगवद्-अनुरक्ति | भक्ति | अनुराग | भक्ति-भावना (allocation spirit) |
Leave a Reply