Ye prakash ne failaye, ये प्रकाश ने फैलाये हैं, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में
अन्धकार का अमित कोष भर आया फैली व्याली में
ख़ाली में उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं
ख़ाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ मैं
इतने निकट दीख पड़ते हो वन्दन के, बह जाता हूँ मैं
संध्या को समझाता हूँ मैं, ऊषा में अकुलाता हूँ मैं
चमकीले अंगूर भर दिये दूर गगन की थाली में
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में।।
पत्र-पत्र पर, पुष्प-पुष्प पर कैसे राज रहे हो तुम नदियों की बहती धारा पर स्थिर कि विराज रहे हो तुम चिड़ियाँ फुदकीं, कलियाँ चटकीं, फूल झरे हैं, हारे हैं पर शाखाओं के आँचल भी भरे-भरे हैं, प्यारे हैं।
Ye prakash ne failaye
तुम कहते हो यह मैंने शृंगार किया दीवाली में।।
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर देख कर ख़ाली में।।
चहल-पहल हलचल का बल फल रहा अनोखी साँसों में
तुम कैसे निज को गढ़ते हो भोलेपन की आसों में
उनकी छवि, मेरे रवि जैसी, ऊग उठी विश्वासों में
कितने प्रलय फेरियाँ देते, उनके नित्य विलासों में
यह उगन, यह खिलन धन्य है माली! उस पामाली में।। ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में।।
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