Ye anaj ki pule, ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें तेरा चौड़ा छाता रे जन-गण के भ्राता शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते भू-स्वामी, निर्माता ! कीच, धूल, गन्दगी बदन पर लेकर ओ मेहनतकश! गाता फिरे विश्व में भारत तेरा ही नव-श्रम-यश ! तेरी एक मुस्कराहट पर वीर पीढ़ियाँ फूलें । ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें !
Ye anaj ki pule
इन भुजदंडों पर अर्पित सौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरी सौ-सौ भागीरथी निछावर तेरे कोटि-कोटि शिर ! ये उगी बिन उगी फ़सलें तेरी प्राण कहानी हर रोटी ने, रक्त बूँद ने तेरी छवि पहचानी ! वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथा सूर्य तुम्हारा रथ है, बीहड़ काँटों भरा कीचमय एक तुम्हारा पथ है । यह शासन, यह कला, तपस्या तुझे कभी मत भूलें । ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें !
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