Why Arabians Invade India / अरब आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण क्यों किया?
बहुत समय नहीं हुआ जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. इस चिड़िया का पिंजड़ा भी बहुत विशाल था. दुश्मनों से बचाने के लिए प्रकृति ने स्वतः इसको उत्तर में हिमालय और पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण में सागर दिया. इस सोने की चिड़िया की प्यास बुझाने के लिए प्रकृति ने गंगा यमुना के अमृत-जल कलश का निर्माण किया. दक्षिण की ओर लम्बी उड़ान भरने के लिए इसे गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी की समीर से सुगन्धित जल सुलभ था . भूख लगने पर चुगने खाने के लिए गंगा-यमुना के मैदान में अनेक प्रकार के मनचाहे योग्य पदार्थों से भरे थाल-कटोरे बाग-बगीचे थे. बस पश्चिम की ओर की सलाखें कुछ कमजोर थीं
Why Arabians Invade India
भारत के उस पार रहने वाले लोग बंजर पहाड़ियों में भर-पेट भोजन नहीं जुटा पाते थे. तपता रेगिस्तान उनको खजूर और जानवर मार के खाने के अलावा क्या दे सकता था. इसके आगे तेल मिला हुआ पानी उनके गले से नहीं उतरता था. ऐसे हालात में उधर के निवासियों को इधर के थाल कटोरे और अमृत जल की सुगंध रह रह के आकर्षित करती रहती थी. नतीजा ये हुआ कि उन्होंने सोने के पिंजरे की कमजोर सलाखों को कुरेदना शुरू किया. कैबर, बोलान, कुर्रम, तोचि, गोमल, कोहाट और पंवारी की सलाखें कुछ कमजोर हुईं और इन्ही सलाखों को झुका कर वो अपने खच्चर-गधों पर सवार होकर, समय समय पर टिड्डी दलों की तरह इस सोने की चिड़िया का दाना पानी हडपने आते रहे
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दाना पानी बाँट कर खाना बुरा नहीं है लेकिन उन मलेच्छों को किसी उस्ताद ने ये नहीं सिखाया कि जिस थाली से वो खाते हैं उसमे छेद ना करें. उस थाल से सभी सामग्री को पंजों में दबोचकर बाज की तरह अपने घोसले में छिपाना तो पापकर्म है. सोने के पिंजड़े में रहने वाली चिड़िया को अपने आनंद और स्वार्थ के लिए लहुलुहान करना इंसानियत नहीं दरिंदगी है लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी लौकिक इच्छाओं से प्रताड़ित भूखों के लिए अपनी भूख पर काबू रखना भी बहुत कठिन है
बस भारतवर्ष पर मलेच्छों के आक्रमण की ऐसे ही कुछ कहानी थी
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