Vyakaran Bhasha Lipi Hindi/ हिंदी भाषा उसका व्याकरण और लिपि
Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल
किसी भी भाषा के समुचित अध्ययन से पहले हमें यह जानना बेहद जरुरी होता है कि भाषा क्या है?, लिपि क्या है?, और व्याकरण क्या है?. ये तीनों किसी भी भाषा का मूल आधार हैं. इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि भाषा किसे कहते हैं? भाषा के कितने भेद हैं? भाषा और बोली में क्या अंतर है? लिपि क्या होती है? व्याकरण क्या होता है? भाषा और व्याकरण का क्या सम्बन्ध है? व्याकरण के कितने अंग हैं? इत्यादि.
भाषा क्या है? (Language in Hindi)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह एक समाज में रहता है जहाँ वह अपने विचारों, भावनाओं को बोलकर ही व्यक्त करता है। भाषा को ध्वनि संकेतों की व्यवस्था माना जाता है। यह मनुष्य के मुँह से निकली हुई अभिव्यक्ति होती है। इसे विचारों के आदान प्रदान का एक आसान साधन माना जाता हैं। इसके शब्द प्राय: रूढ़ होते हैं।
संस्कृत भाषा सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है. इसको हिंदी भाषा की जननी भी माना जाता है। संस्कृत से हिंदी भाषा के विकास में एक लम्बा समय लगा है. सबसे पहले संस्कृत से पालि, पालि से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश, तब अपभ्रंश से हिंदी भाषा का विकास हुआ है। Vyakaran Bhasha Lipi Hindi
भाषा की परिभाषा (Definition of Bhasha in Hindi)
भाषा शब्द संस्कृत की ‘भाष’ धातु से लिया गया है, जिसका अर्थ है- ‘बोलना’।
हमारे भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए रूढ़ अर्थों में जो ध्वनि संकेतों की व्यवस्था प्रयोग में लायी जाती है, उसे भाषा कहते हैं।
दूसरे शब्दों में – “भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से हम सोचते हैं, तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं।“
साधारण शब्दों में – “जब हम अपने विचारों को लिखकर या बोलकर प्रकट करते हैं और दूसरों के विचारों को सुनकर या पढ़कर ग्रहण करते हैं, तो उसे भाषा कहते हैं।“
मनुष्य कभी शब्दों, कभी सिर हिलाने या संकेत द्वारा भी अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है। किन्तु भाषा केवल उसी को कहा जाता है, जो बोली जाती है या सुनी जाती है. यहाँ पर भी बोलने का अभिप्राय गूँगे मनुष्यों या पशु-पक्षियों की बोली से नहीं बल्कि बोल सकने वाले मनुष्यों के अर्थ में लिया जाता है। Vyakaran Bhasha Lipi Hindi
यानि
“अपने ह्रदय के विचार प्रकट करने के लिए हम अपने विचारों को या बात को दूसरों के सामने रखते हैं और दूसरों के विचारों को या बात को स्वयं जानना चाहते हैं। अपने विचारों के इस आदान-प्रदान को हम वाणी, लेखनी अथवा संकेतो के द्वारा प्रकट करते हैं। (इस प्रकार से वाणी या लेखनी के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करना अथवा दूसरों के विचारों से अवगत होना ही भाषा कहलाती है)”
जैसे- हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, तमिल, तेलुगु आदि।
भाषा के भेद (Types of languages in Hindi)
प्रयोग के आधार पर भाषा के तीन भेद है:
- लिखित भाषा
- कथिक भाषा अथवा मौखिक भाषा
- सांकेतिक भाषा
1- लिखित भाषा (Written language)
जो भाषा लिखने और पढ़ने में प्रयोग की जाती है,उसको ‘लिखित भाषा’ कहते हैं। जब हम दूर बैठे किसी व्यक्ति से अपनी बातें लिखकर व्यक्त करते हैं, तो उसे लिखित भाषा कहते हैं। यह भाषा का स्थायी रूप होता है।
लिखित भाषा लिपि पर आधारित होती हैं। इससे अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखा जा सकता है।
दूसरे शब्दों में – जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है, तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं।
जैसे – ग्रन्थ, पुस्तकें, अख़बार, पत्र-पत्रिकाएँ, ब्लॉग, वेबसाइट, आदि। Vyakaran Bhasha Lipi Hindi
2- कथिक भाषा अथवा मौखिक भाषा (Verbal language)
जो भाषा आपस में बातचीत करते समय प्रयोग की जाती है, उसको ‘कथिक भाषा ‘ या ‘मौखिक भाषा ‘कहते है। जब हम अपने विचारों को बोलकर या सुनकर व्यक्त करते हैं, तो उसे मौखिक भाषा कहते हैं।
मौखिक भाषा में मनुष्य अपने विचारों एवं मनोभावों को बोल कर प्रकट करते हैं। मौखिक भाषा का प्रयोग तभी होता है, जब श्रोता सामने हो।
दूसरे शब्दों में – जब आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण, आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं।
जैसे – नाटक, फिल्म, समाचार सुनना, संवाद, भाषण, यूट्यूब आदि।
3- सांकेतिक भाषा (Sign language)
जब संकेतों के द्वारा अपने विचारों को प्रकट किया जाता हैं, तो उसको ‘सांकेतिक भाषा’ कहते हैं। जैसे – मूक बधिरों का संकेत द्वारा आपस में संवाद करना.
भाषा के अन्य भेद (Bhasha ke Bhed)
भाषा के कुछ अन्य भेद भी होते हैं-
- मातृभाषा
- राजभाषा
- राष्ट्रभाषा
- मानक भाषा
मातृभाषा – जिस भाषा को बालक बचपन में अपनी माँ से सीखता है, उसे मातृभाषा कहते हैं।
राजभाषा – जिस भाषा का प्रयोग किसी देश में सरकारी काम की भाषा के रूप में होता है, उसे राजभाषा कहते हैं। भारत की राजभाषा हिंदी है और अंग्रेजी हमारी सह-राजभाषा है।
राष्ट्रभाषा – भारत में अनेक भाषाएँ बोली, पढ़ी, लिखी, सुनी जाती हैं। सब प्रदेशों की अपनी अलग भाषा है। भारतीय संविधान ने 22 भाषाओँ को स्वीकार किया है – संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, असमिया, पंजाबी, नेपाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, बांग्ला, उड़िया, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुर, मराठी, मलयालम, मैथिलि, डोंगरी, बोडो, संथाली और सिंधी आदि। इन सभी भाषाओँ का प्रयोग अपने-अपने क्षेत्र में ही किया जाता है, पर हिंदी को पुरे भारत में बोला जाता है, इसलिए इसे राष्ट्रभाषा कहते हैं अपितु इस बात को लेकर काफी मतभेद है. Vyakaran Bhasha Lipi Hindi
मानक भाषा – मानक हिंदी, हिंदी भाषा का ही मानक रूप होता है। इसे शिक्षा, और कार्यालय के कामों आदि में प्रयोग किया जाता है। सभी भाषाओँ के विविध रूप को मानक कहते हैं।
भाषा और बोली (Bhasha aur Boli)
बोली भाषा का ही एक रूप होती है. सीमित क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा के रूप को बोली कहा जाता है अर्थात स्थानीय व्यवहार में अल्पविकसित रूप में प्रयुक्त होने वाली भाषा बोली कहलाती है।
बोली का कोई लिखित रूप नहीं होता।
छोटे भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा को बोली कहते हैं। बोली को भाषा का प्रारंभिक रूप माना जाता है, बोली भाषा का स्थानीय रूप होती है। हम जानते हैं कि हर दस किलोमीटर के बाद बोली बदल जाती है।
भारत में एक कहावत बहुत प्रचलित है:
कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी
अर्थात यहाँ कोस-कोस पर पानी बदल जाता है और 4 कोस पर वाणी. (कोस- दूरी मापने की इकाई, 1 कोस में 3 किलोमीटर होता है)
भाषा व्याकरणिक नियमों से बंधी होती है, लेकिन बोली स्वतंत्र होती है।
जब कोई भाषा बहुत बड़े भाग में बोली जाती है, तो वह क्षेत्र में बंट जाता है और ‘बोली’ बोली जाने लगती है। कोई भी बोली हो वो विकसित होकर भाषा का रूप ही लेती है। हिंदी को भी एक समय में बोली माना जाता था। क्योकि इसका विकास खड़ी बोली से हुआ था।
बोली को लिख नहीं सकते इसलिए इसका साहित्य मौखिक होता है, लेकिन भाषा को लिखा जा सकता है इसलिए इसका साहित्य लिखित होता है। जब कोई बोली विकसित होती है तो वह साहित्य की भाषा का रूप ले लेती है।
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बोलियाँ बोली जाती हैं –
जैसे – पूर्वी उत्तर प्रदेश की बोली अवधी है, बिहार की भोजपुरी और मैथिलि, हरियाणा में हरियाणवी और बांगड़ू, राजस्थान में राजस्थानी, मारवाड़ी और गुजरात में गुजराती बोली बोली जाती है।
लिपि (Lipi)
किसी भाषा के लिखने के अक्षरों के समूह को लिपि कहते हैं। अर्थात किसी भाषा को लिखने के लिए जिन चिन्हों की जरूरत होती है, उन चिन्हों को लिपि कहते है। लिपि भाषा का लिखित रूप होता है। इसके माध्यम से मौखिक रूप की ध्वनियों को लिखकर प्रकट किया जाता है। सारी भाषाओँ के लिखने की लिपि अलग होती है। Vyakaran Bhasha Lipi Hindi
जैसे-हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है तथा पंजाबी की लिपि गुरुमुखी है।
भाषा | लिपि |
हिंदी, संस्कृत, मराठी | देवनागरी |
पंजाबी | गुरुमुखी |
उर्दू, फ़ारसी | फ़ारसी |
अरबी | अरबी |
बंगला | बंगला |
रूसी | रूसी |
अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश | रोमन |
हिंदी व संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है।
देवनागरी लिपि की विशेषताएं –
- इसे दाएं से बाएं लिखा जाता है।
- हर वर्ण का आकार समान होता है।
- ये उच्चारण के अनुरूप लिखी जाती हैं।
व्याकरण (Vyakaran in Hindi)
“व्याकरण किसी भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए एक नियमबद्ध योजना है.”
जिसके द्वारा हमें भाषा की शुद्धियों और अशुद्धियों का ज्ञान होता है, वह व्याकरण कहलाता है।
जैसे-
- राम स्कूल गया है। (शुद्ध)
- राम स्कूल गई है। (अशुद्ध)
मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता।
भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए एक नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।
साधारण शब्दों में – व्याकरण वह शास्त्र है, जिससे भाषा को शुद्ध लिखने, बोलने और पढने का ज्ञान सीखा जाता है। शुद्ध लिखने के लिए व्याकरण को जानने की बहुत जरूरत होती है। व्याकरण से भाषा को बोलना और लिखना आसान होता है। व्याकरण से हमें भाषा की शुद्धता का ज्ञान होता है। भाषा को प्रयोग करने के लिए हमें भाषा के नियमों को जानने की जरूरत है। इन्ही नियमों की जानकारी हमें व्याकरण से मिलती है।
व्याकरण और भाषा का संबंध (Vyakaran aur Bhasha ka Sambandh)
कोई भी व्यक्ति व्याकरण को जाने बिना भाषा के शुद्ध रूप को नहीं सीख सकता। इसी वजह से भाषा और व्याकरण का बहुत गहरा संबंध है। व्याकरण, भाषा के उच्चारण, प्रयोग, अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है।
व्याकरण के अंग
- वर्ण विचार
- शब्द विचार
- पद विचार
- वाक्य विचार
1. वर्ण विचार – इस विचार में वर्णों के उच्चारण, रूप, आकार, भेद, वर्णों को मिलाने की विधि, लिखने की विधि बताई जाती है।
2. शब्द विचार – इस विचार में शब्दों के भेद, व्युत्पत्ति, रचना, रूप, प्रयोगों, उत्पत्ति आदि का अध्ययन करवाया जाता है।
3. पद विचार – इस विचार में पद का तथा पद के भेदों का वर्णन किया जाता है।
4. वाक्य विचार – इस विचार में वाक्यों की रचना, उनके भेद, वाक्य बनाने, वाक्यों को अलग करने, विराम चिन्हों, पद परिचय, वाक्य निर्माण, गठन, प्रयोग, उनके प्रकार आदि का अध्ययन करवाया जाता है।
वर्ण (अक्षर)
वर्ण (अक्षर): भाषा की वह छोटी से छोटी मूल ध्वनि, जिसके टुकड़े न हो सकें उसे वर्ण कहते हैं।
जैसे-अ, इ, ए, क, ख आदि।
वर्ण या अक्षर के भेद
- स्वर
- व्यंजन
स्वर (Swar)
स्वर: वे अक्षर या वर्ण, जिनके बोलने में दूसरे अक्षरों की सहायता नहीं लेनी पड़े, उसे स्वर कहते हैं।
स्वर तेरह होते हैं:
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः और ऋ।
स्वर के तीन भेद हैं:
(i)- ह्रस्व स्वर (Hrasw Swar)
जैसे- अ, इ, ए, उ आदि।
(ii)- दीर्घ स्वर (Deergh Swar)
जैसे- आ, ई, ऊ, ऐ, ओ, औ आदि।
(iii)- प्लुत स्वर (Plut Swar)
जैसे- ओ३म आदि।
व्यंजन (Vyanjan)
व्यंजन: वे वर्ण या अक्षर, जिनको बोलने में स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, उसे व्यंजन कहते है।
जैसे- क् में अ जोड़ने से ‘क’ तथा ख् में अ जोड़ने से ‘ख’ बन जाता है।
व्यंजन के प्रकार-
हिन्दी भाषा में व्यंजन 36 होते हैं:
1- क वर्ग – क ख ग घ ङ
2- च वर्ग – च छ ज झ ञ
3- ट वर्ग – ट ठ ड ढ ण
4- त वर्ग – त थ द ध न
5- प वर्ग – प फ ब भ म
6- अन्तःस्थ- य र ल व
7- ऊष्म – श ष स ह
8- संयुक्त –
क्ष = क् + श् + अ
त्र = त् + र् + अ
ज्ञ = ज् + ञ् + अ
अनुस्वार (Anuswar)
जब ‘अ’ के ऊपर बिन्दु लगाया जाता है,तो उसको अनुस्वार कहते हैं।
जैसे – गंगा, मंगल, कलंक आदि।
विसर्ग (Visarg)
जब ‘अ’ के आगे दो बिन्दु होते हैं,तो उसको विसर्ग कहते हैं।
जैसे – प्रातः, अतः आदि।
मात्रा (Matra)
स्वर को बोलने में जितना समय लगता है,उसे मात्रा कहते है।जब किसी व्यंजन में स्वर मिलाते हैं,उसका अभिप्राय है,उस व्यंजन में स्वर की मात्रा मिलाई गई है।
मात्राएँ – निम्न होती हैं।
स्वर – आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः।
प्रमुख विराम-चिह्न
हिन्दी में लिखते समय निम्नलिखित चिह्न प्रमुख रूप में प्रयोग किये जाते हैं-
1- अल्पविराम (,)
2- अर्द्धविराम (;)
3- पूर्णविराम। (|)
4- प्रश्नवाचक चिह्न (?)
5- बिस्मयसूचक चिह्न (!)
6- बराबर का चिह्न (=)
7- विवरण (विसर्ग चिह्न)(:)
8- संयोजक चिह्न (-)
9- निर्देशक चिह्न (_)
10-अवतरण चिह्न (” “)
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