Tulsidas Famous Dohe Chaupai (तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और चौपाई)

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Tulsidas ke dohe

Tulsidas Famous Dohe Chaupai/ तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और चौपाई तथा उनकी व्याख्या/ Tulsidas ke Famous Dohe

“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि दया भावना धर्म का मूल है, उसका सार है. अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए.

“नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवास, जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास हैं. यह तुलसी का भाग्य है कि राम नाम का स्मरण करने से तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.

“सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं. दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता, उससे हानि ही होती है.

“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर”

अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं यह किसी को भी वश में करने का एक मंत्र है इसलिए मानव को कठोर वचन छोड़कर मीठे वचन बोलने का प्रयास करना चाहिए.

“मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक”

अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन पोषण और विकास करता है.

“सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री वैद्य और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीनों का शीघ्र ही नाश हो जाता है.

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“राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार, तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर”

अर्थ :- मनुष्य यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखीरूपी द्वार की जीभरुपी दहलीज पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो.

“सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानी, सो पछिताई अघाइ उर अवसि होई हित हानि”

अर्थ :- स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है. Tulsidas Famous Dohe Chaupai

“बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय”

अर्थ :- तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है. ठीक वैसे ही जैसे जब राख की आग बुझ जाती हैं तो उसे हर कोई छूने लगता है.

“तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक”

अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं कि मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है, ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, आपका सत्य और भगवान का नाम.

“सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु”

अर्थ :- शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, ये बड़े बोल बोलकर या कहकर अपने को नहीं जनाते. शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं.

“तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मुर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते है. सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान हैं लेकिन आहार सांप का हैं. उसे देखकर कौन कह सकता है कि यह सांप खाता है.

“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति, नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत”

अर्थ :- इस हड्डी और चमड़े के बने हुए शरीर जो की नश्वर है के प्रति जो प्रेम है, जो मोह है अगर इसका ध्यान छोड़कर राम नाम में ध्यान लगाते तो आप भवसागर से पार हो जाते.

“काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान, तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब तक किसी भी व्यक्ति के मन में कामवासना की भावना, गुस्सा, अंहकार, और लालच भरा हुआ है तबतक ज्ञानी और मुर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नही होता है, दोनों एक ही समान के होते है.

“सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं
धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी”

अर्थ :- मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है और सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते है.

“करम प्रधान विस्व करि राखा, जो जस करई सो तस फलु चाखा”

अर्थ :- यह विश्व कर्मप्रधान है. ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ता है.

“तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग, सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते है कि इस संसार में तरह तरह के लोग है हमे सभी से प्यार के साथ मिल जुल कर रहना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे एक नौका नदी में प्यार के साथ सफर करते हुए दूसरे किनारे तक पहुच जाती है वैसे मनुष्य भी अपने इस सौम्य व्यवहार से भवसागर के उस पार अवश्य ही पहुँच जायेगा.

“आगें कह मृदु वचन बनाई पाछे अनहित मन कुटिलाई, जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते है कि ऐसे मित्र जो आपके सामने बना बनाकर मीठा बोलते हैं और मन ही मन आपके लिए बुराई का भाव रखते हैं जिसका मन साँप के चाल के समान टेढ़ा होता है, ऐसे खराब मित्रों का त्याग कर देने में ही भलाई है.

“तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए, अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए”

अर्थ :- तुलसीदास जी कहते है कि हमे भगवान पर भरोषा करते हुए बिना किसी डर के साथ निर्भय होकर रहना चाहिए इससे कुछ भी अनहोनी नहीं होगी और अगर कुछ होना रहेगा तो वो होकर रहेगा इसलिए व्यर्थ चिंता किये बिना हमे ख़ुशी से जीवन व्यतीत करना चाहिए.

“काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ, सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत”

अर्थ :- कवि तुलसीदास जी कहते है कि काम, क्रोध, लालच सब नर्क के रास्ते है इसलिए हमे इनको छोडकर ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए, भगवान् राम का भजन करना चाहिए जैसा की संत लोग करते है. Tulsidas Famous Dohe Chaupai

दोस्तों यह थे महान कवि तुलसीदास के दोहे और चौपाइयाँ (Tulsidas ke Dohe aur chaupai in Hindi) और इसका सार हमने हमारी अपनी आसान हिंदी भाषा में लिखा है, हमें आशा है की यह दोहे सार सहित आपको बेहद पसंद आयें होंगे और इन दोहों में से आपको अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीने की सीख मिली होगी ।

नोट: अगर आपको तुलसीदास के यह दोहे और चौपाइयां पसंद आई हैं तो कृपया इसे अपने पसंदीदा सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें और कमेंट्स के माध्यम से हमें आपका प्यार भेजें । धन्यवाद

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