Top 10 Historic Gurudwara Delhi / दिल्ली के 10 ऐतिहासिक गुरूद्वारे / Top 10 Historical Gurudwara in Delhi
गुरुद्वारा मतलब सिखों का साधना स्थल. आज हम दिल्ली के 10 सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों की बात करेंगे और साथ साथ उनके इतिहास के बारे में भी जानेंगे.
तो चलिए देखते हैं दिल्ली के 10 सबसे महत्वपूर्ण गुरूद्वारे:
1. गुरुद्वारा शीशगंज
पीपल हमारे संत साधुओं की तपस्या और छाया स्थली रहा है. हिन्द की चादर हिन्दू धर्म के रक्षक, वचन के पक्के सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर लाल किले की सरकार को खुली चुनौती देने के लिए इसके पश्चिमी दरवाजे से कोई आधा कोस दूर डेरा डाले हुए थे. धार्मिक असहिष्णु औरंगजेब के आदेश के अनुसार 11 नवम्बर 1675 में गुरु का शीश यहाँ धड से अलग कर दिया गया. अनेक वर्षों तक वो पीपल साक्षी स्वरुप यहाँ रहा किन्तु जब अंग्रेजों ने चांदनी चौक में बिजली की ट्रामें चलाई तो उसे मार्ग का अवरोध जान के कटवा दिया जिसका मुख्य तना वर्तमान गुरुद्वारा शीशगंज में सुरक्षित है
समय बीतता गया और मुग़ल अपने पापों के कारण क्षारीय दीवार की तरह क्षरित हो गए किन्तु सच्चाई का निशान वहाँ निर्बाध झिलमिला रहा है. गुरु की स्मृति में यह स्थल सदियों से अनवरत गुरुवाणी से गुँजता आ रहा है
Top 10 Historic Gurudwara Delhi
2. गुरुद्वारा रकाबगंज
कुछ बंजारा परिवार रायसीना गाँव की पहाड़ी के पास रकाबगंज मोहल्ले में मुग़ल बादशाहों के घोड़ों की नाल या रकाबें बनाते थे. भाई लखीशाह यही का निवासी था. जिस समय वह अपनी गाड़ी में सामान लादे चांदनी चौक से इधर आ रहा था तो उसे गुरु तेग बहादुर की शहादत का पता लगा. उसने मुगलों से आँख बचाकर आंधी-तूफ़ान के बीच गुरूजी का धड़ गाडी में छुपा लिया और घर जाकर उसे चारपाई पर स्थापित कर घर में आग लगाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया. बाद में उसने गुरूजी की अस्थियों का कलश यही गाड़ दिया.
जब मुगलों को इस बात का पता लगा तो वहाँ मस्जिद बनवा दी. सिक्खों ने आलमगीर द्वितीय के सामने अपना दावा पेश किया कि वो स्थान उनका है. बादशाह ने निर्णय दिया कि अगर उस स्थान पर अस्थि कलश निकले तो उस मस्जिद के स्थान पर गुरुद्वारा बनवा दिया जाय. बाद में सत्य सिद्ध होने पर 1763 ई में सरदार बघेल सिंह ने यहाँ गुरुद्वारा बनवाया जो इस समय अपने भव्य रूप में है
3. गुरुद्वारा बंगला साहिब
सिखों के सातवें गुरु गुरु हरराय ने 6 अक्टूबर 1661 ई में अपनी ज्योति में लीन होने से पहले गुरु हरिकिशन को अपना उत्तराधिकारी बनाया जो उस समय 5 वर्ष के थे
उत्तराधिकार के विवाद को निपटाने के लिए औरंगजेब ने बालक गुरु हरिकिशन को दिल्ली बुलवाया. गुरु आम्बेर (जयपुर) के शासक जयसिंह के रायसीना पहाड़ी के नीचे बने सुरम्य बंगले में उनके अतिथि के रूप में ठहरे. उन दिनों दिल्ली में चेचक और हैजे की महामारी फैली थी. गुरूजी का चेचक के कारण देहांत हो गया.
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वर्तमान बंगला साहिब गुरुद्वारा उसी बंगले के स्थान पर है. प्राचीन कुंवे के स्थान पर एक सुन्दर सरोवर बनाया गया
4. गुरुद्वारा माता सुंदरी
माता सुंदरी दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह की धर्मपत्नी थी. जिस समय गुरूजी दक्षिण भारत में थे तो ये यहाँ एक हवेली में निवास करती थी. इनका देहांत 1747 ई में हुआ. इस समय यहाँ इनके नाम पर भव्य गुरुद्वारा है जो लोकनायक जयप्रकाश (इरविन अस्पताल) के पीछे है
5. गुरुद्वारा बाला साहेब
सिखों के आठवें गुरु गुरु हरिकिशन औरंगजेब के कहने पर जब दिल्ली आये तो उनकी आयु 5 से 6 वर्ष की थी. वो यहाँ चेचक की बिमारी से ग्रस्त हुए और मृत्यु से पहले यमुना तट पर निवास करने गए. यहीं उनका देहांत हुआ. उसी स्थान पर यह गुरुद्वारा स्थित है.
इसी परिसर से गुरु गोविन्द सिंह की दोनों पत्नियों माता सुंदरी तथा माता साहिब कौर की समाधियाँ हैं. यहाँ नए भवन का निर्माण 1957-58 में हुआ.
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6. गुरुद्वारा मोतीबाग
वर्तमान मोतीबाग में पहले एक मोचियों की बस्ती थी जहाँ सहजादे मुआज्जम (औरंगजेब के पुत्र) के कहने पर उनकी सहायतार्थ सिखों के दसवे गुरु गुरु गोविन्द सिंह आकर ठहरे थे. यहीं से उन्होंने तीर चलाकर शहजादे को अपनी उपस्थिति का सन्देश भेजा हा. इसी स्थान पर एक गुरुद्वारा है. गुरु गोविन्द सिंह का आखिरी सन्देश था.
“सब सिक्खन को हुक्म है, गुरु मानियो ग्रंथ” और “जो गुरु को मिलबो चाहे खोज शब्द में ले”
7. गुरुद्वारा दमदमा साहिब
गुरु गोविन्द सिंह शहजादे मुआज्जम से मिलने मोतीबाग से चलकर हुमायूँ के मकबरे के पास जंगलों में गुप्त रूप से आये थे. इसी स्थान पर यहाँ गुरु ने तम्बू लगाया था वहाँ 1783 में सरदार बघेल सिंह ने एक गुरूद्वारे का निर्माण कराया था 1984 में यहाँ नया भवन बनवाया गया
8. गुरुद्वारा नानक प्याऊ
एक मान्यता के अनुसार गुरु नानक देव 1505 ई में सुलतान सिकंदर शाह लोदी के समय दिल्ली आये और वर्तमान स्थान, जो जंगल में मुख्य मार्ग पर था (GT road) निवास किया. सेवा के रूप में उन्होंने यहाँ यात्रियों को पानी पिलाया. पिछले 35-40 वर्षों में इधर भव्य गुरुद्वारा बन गया है. यह स्थान राणा प्रताप बाग के सम्मुख CC कॉलोनी और Bank कॉलोनी के बीच में है
9. गुरुद्वारा मजनूं का टीला
किसी समय खैबर पास के पूर्व में यमुना तट पर रमणीक पहाड़ी थी जो अब टीला मात्र है. यहाँ बादशाह सिकंदर लोदी के समय में एक मुसलमान फ़कीर रहता था. वो भक्ति में उसी प्रकार उन्मत्त था जैसे मजनू अपने उद्देश्य में था.
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गुरुनानक जी उसके पास गए. गुरु हरगोबिन्द भी एकबार इधर पधारे थे. गुरु हरराय भी इधर आये थे. यहाँ पहले छोटा सा गुरुद्वारा था. 1950 में यहाँ नया भवन निर्मित हुआ, जो मजनू के टीला गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता है.
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10. गुरुद्वारा बन्दा बहादुर
मुग़ल बादशाह फरुख्सियार के आदेश पर 19 जून 1716 ई को वीर बाँदा बहादुर को क़ुतुब मीनार के पास महरौली में सूफी संत बख्तियार काकी की कब्र के पास टुकड़े-टुकड़े कर के मारा गया. जो उस शौर्य पुरुष की स्मृति में बनाया गया है
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Very nice