Tarain Second Battle Hindi / तराइन का द्वितीय युद्ध / The Second Battle of Tarain in Hindi
तराइन के प्रथम युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने कई गलतियाँ की थी, परिणामस्वरूप मोहम्मद ग़ोरी ने स्थिति का फायदा उठाया तथा दूसरे ही वर्ष 1192 ईस्वी में फिर से आक्रमण कर दिया जिसे हम तराइन के द्वितीय युद्ध के नाम से जानते हैं.
इस युद्ध में मोहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया तथा पृथ्वीराज की हत्या कर दी गयी। मुसलमानों ने राजपूत-सेना का भीषण संहार किया। उसके बाद में उसकी राजधानी अजमेर को आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया तथा वहाँ के निवासियों को मौत के घाट उतार दिया। मुसलमान सेनाओं ने चौहान राज्य के सभी प्रमुख नगरों पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार पृथ्वीराज की राजनीतिक भूल एवं अदूरदर्शिता के परिणामस्वरूप शक्तिशाली चौहान साम्राज्य धराशायी हो गया। तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्धों में से एक माना जाता है। इसने भारतीय भूमि में मुस्लिम सत्ता स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। Tarain Second Battle Hindi
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कन्नौज के राजा जयचंद की एक बहुत ही खूबसूरत पुत्री थी जिसका नाम संयोगिता था. पृथ्वीराज संयोगिता के रूप पर मोहित हो गया और उसने उसके स्वयंवर से उसका अपहरण कर लिया
तराइन के द्वितीय युद्ध का कारण
पृथ्वीराज चौहान द्वारा अपनी पुत्री संयोगिता के अपहरण से जयचंद बहुत दुखी और व्यथित था. यह बात उसको बुरी तरह कचोट रही थी और यह अपमान उसके हृदय को छलनी कर रहा था. वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज चौहान का विध्वंस चाहता था इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. उसे अपने कुछ विश्वसनीय सूत्रों से पता चला कि मोहम्मद ग़ोरी तराइन के प्रथम युद्ध में हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता है. बस फिर जयचंद को अपने मन की मुराद मिल गई और उसने मोहम्मद ग़ोरी की सहायता से पृथ्वीराज चौहान को समाप्त करने का मन बना लिया.
जयचंद अकेले पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने का साहस नहीं कर सकता था. उसने सोचा कि मोहम्मद ग़ोरी के साथ मिलकर वह पृथ्वीराज चौहान को समाप्त कर देगा और दिल्ली का राज्य भी उसको पुरस्कार के रुप में मिल जाएगा. जयचंद की आंखों पर प्रतिशोध और बदले की भावना की पट्टी इतनी प्रबल बँधी थी कि वह अपने देश और जाति का स्वाभिमान भी छोड़ बैठा. उधर मोहम्मद ग़ोरी भी तराइन के प्रथम युद्ध में अपनी हार को भुला नहीं पाया था और जयचंद्र के देशद्रोह का परिणाम यह हुआ कि वह फिर से पृथ्वीराज चौहान का मुकाबला करने के लिए षड्यंत्र करने लगा. Tarain Second Battle Hindi
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जयचंद ने दूत भेज कर मोहम्मद ग़ोरी को सैन्य सहायता देने का आश्वासन दिया. देशद्रोही जयचंद की सहायता पाकर मोहम्मद ग़ोरी तुरंत पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए तैयार हो गया जब पृथ्वीराज चौहान को यह सूचना मिली कि मोहम्मद गौरी फिर से युद्ध की तैयारियों में जुट गया है तो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह अपनी नई नवेली पत्नी के साथ भोग विलास में व्यस्त था.
मोहम्मद ग़ोरी की सेना से मुकाबला करने के लिए पृथ्वीराज चौहान के मित्र और राजकवि चंदबरदाई ने राजपूत राजाओं से अपनी सहायता का अनुरोध किया लेकिन संयोगिता के हरण के कारण बहुत से राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के विरोधी बन चुके थे और यह सब के सब कन्नौज नरेश जयचंद के संकेत पर मोहम्मद ग़ोरी के पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार थे. Tarain Second Battle Hindi
तराइन के द्वितीय युद्ध की घटना
1992 में एक बार फिर पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद ग़ोरी की सेना तराइन में युद्ध करने के लिए आमने सामने खड़ी थी. दोनों ओर से भीषण युद्ध की शुरुआत हुई. इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की ओर से 3 लाख सैनिकों ने भाग लिया जबकि मोहम्मद गौरी की सेना के पास सिर्फ 1 लाख 20 हजार सैनिक थे. मोहम्मद ग़ोरी की सेना की सबसे विशेष बात यह थी कि उसके पास बहुत शक्तिशाली घुड़सवार दस्ता था. पृथ्वीराज ने बहुत ही आक्रमकता से मोहम्मद ग़ोरी की सेना पर आक्रमण किया. उस समय राजपूत सेना युद्ध में हाथियों का प्रयोग करती थी और हाथियों की सबसे बुरी बात यह थी कि युद्ध में उनकी चाल बहुत धीमी होती थी. मोहम्मद ग़ोरी के घुड़सवारों ने आगे बढ़कर पृथ्वीराज चौहान की राजपूत सेना के हाथियों को घेर लिया और उन पर बाणों की वर्षा शुरू कर दी. घायल हाथी आगे नहीं बढ़ पाए बल्कि घबराकर पीछे मुड़कर अपनी ही सेना को रौंदना शुरू कर दिया.
तराइन के दूसरे युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदी यह थी कि देशद्रोही जयचंद के संकेत पर राजपूत सैनिक अपने ही राजपूत भाइयों को मार रहे थे. दूसरा पृथ्वीराज चौहान क्षत्रिय युद्ध नीतियों का कायल था और उसकी सेना रात के समय आक्रमण नहीं करती थी लेकिन मोहम्मद ग़ोरी के तुर्क सैनिक रात के समय भी आक्रमण करके मारकाट मचा रहे थे. इसका परिणाम यह हुआ युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई तथा उसको और उसकी राजकवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया. देशद्रोही जयचंद का इस से भी बुरा हाल हुआ और उसको मार कर कन्नौज पर मोहम्मद ग़ोरी ने अधिकार कर लिया. पृथ्वीराज की हार से मोहम्मद ग़ोरी का दिल्ली, अजमेर, पंजाब और संपूर्ण उत्तर भारत पर अधिकार हो गया इस तरह भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो गया.
मोहम्मद ग़ोरी अपने योग्य सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत की बागडोर सौंपकर पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई को युद्धबंदी के रूप में लेकर अपने गृहराज्य गौर की ओर रवाना हो गया
तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद की स्थिति
इतिहासकारों के अनुसार तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद भी कुछ समय तक अजमेर में चौहान सत्ता बनी रही तथा मोहम्मद ग़ोरी ने संपूर्ण प्रदेश को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया। उसने पृथ्वीराज के अवयस्क पुत्र को वहां का राजा बनाया जो उसकी अधीनता में कार्य करता रहा। इसके विपरीत हम्मीर काव्य तथा विरुद्धविधिध्वंसक के अनुसार, पृथ्वीराज के बाद उसका भाई हरिराज कुछ समय के लिये राजा बना। उसने अजमेर पर आक्रमण कर मोहम्मद ग़ोरी द्वारा नियुक्त पृथ्वीराज के अवयस्क पुत्र से सिंहासन छीनने का प्रयास किया। किन्तु मोहम्मद ग़ोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे पराजित किया। अपने सम्मान की रक्षा के लिये हरिराज ने अजमेर के दुर्ग में आत्मदाह कर लिया।
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