Tanaji Malusare Biography Hindi / Biography of Tanaji Malusare in Hindi / तानाजी मालुसरे का सम्पूर्ण जीवन परिचय
तानाजी मालुसरे मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान मराठा सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य और हिन्दू स्वराज के लिए लड़ने वाली सेना के सूबेदार और सेनापति थे. तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र भी थे.
“इस भारत की धरती पर ना जाने कितने शूरवीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप से लेकर क्षत्रपति शिवाजी समेत कई महान योद्धा हुए जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी अंतिम सांस तक लड़े और अंत समय तक लड़ते हुए अपनी जान न्योव्छावर कर दी लेकिन दुःख की बात है कि आज हम इतिहास के उन वीरो की शहादत को भूल रहें है। इन्हीं योद्धाओं में एक योद्धा थे तानाजी मालुसरे।”
तानाजी मराठा साम्राज्य में एक सेनापति थे। आज जब भी मराठा साम्राज्य का उल्लेख होता है तो सब के सामने शिवाजी महाराज का ही नाम आता है। लेकिन दोस्तों वो तानाजी ही थे जिनके सहयोग से शिवाजी ने मुगलों के समय के सबसे मजबूत किले पर विजय हासिल की थी।
अगर हम तानाजी के जीवन के संक्षिप्त परिचय की बात करें तो वो एक सच्चे मराठा कोली सरदार थे। तानाजी को शिवाजी के बचपन की दोस्ती व अपने कार्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाना जाता है। मराठा सम्राज्य में तानाजी, शिवाजी की विदेशी गुलामी मुक्त भारत बनाने के सपने में सूबेदार की भूमिका में थे। Tanaji Malusare Biography Hindi
जीवन परिचय Tanaji Malusare Biography Hindi
संक्षिप्त जीवनपरिचय
- पुरा नाम – तानाजी मालुसरे
- जन्म – 1600
- जन्म स्थान – गोदोली गांव – महाराष्ट्र
- पिता का नाम – सरदार कलोजी
- माता का नाम – पार्वती बाई
- प्रसिद्धि की मुख्य वजह – सिंहगढ़ (कोंढाणा किला) का युद्ध
- मृत्यु – 1670
महाराजा शिवाजी के बचपन के दोस्त व मराठा सम्राज्य के सबसे विश्वसनीय योद्धा तानाजी का जन्म 1600 ईसवी में महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव गोदोली ( जवाली तालुका ) में हुआ था। तानाजी का जन्म एक हिंदू कोली परिवार में हुआ था। तानाजी के पिता का नाम सरदार कलोजी व माता का नाम पार्वतीबाई था। तानाजी को बचपन से ही तलवारबाजी का अत्याधिक शौक था। यही वजह रही कि उनकी मित्रता शाहजी पुत्र शिवाजी से हो गई। शिवाजी ने आगे चलकर अपने साम्राज्य में तानाजी की कुशलता को देखकर अपनी सेना का सेनापती व मराठा साम्राज्य का मुख्य सुबेदार नियुक्त कर दिया।
तानाजी और छत्रपति शिवाजी की मित्रता
तानाजी और शिवाजी बचपन से ही एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते थे और मित्र थे. तानाजी, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। वे शिवाजी के साथ औरंगजेब से मिलने दिल्ली गये थे तब औरंगजेब ने शिवाजी और तानाजी को कपट से बंदी बना लिया था। तब शिवाजी और तानाजी ने एक योजना बनाई और मिठाई के पिटारे में छिपकर वहाँ से बाहर निकल गए।
कोंढाना का किला (Kondhana Fort)
एक बार शिवाजी महाराज की माताजी जीजाबाई लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी. इस पर माता जीजाबाई ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिको को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा। किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, “मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला”
इस बारे में कई किवन्दतियाँ प्रचलित हैं. कहा जाता है कि उस समय तानाजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज को आमंत्रित करने जब राजमहल पहुँचें तब उन्हे ज्ञात हुआ कि कोंडाना पर छत्रपति शिवाजी महाराज चढाई करने वाले हैं, तब तानाजी ने कहा राजे मैं कोंडाना पर आक्रमण करुँगा. अपने पुत्र रायबा के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखा और कोंडाना किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा. छत्रपति शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु उन्होंने ने वीर तानाजी को कोंडाना किले पर आक्रमण करने के लिए चुना और कोंडाना किला “स्वराज्य” में शामिल हो गया लेकिन तानाजी युद्ध में बुरी तरह घायल हुए और अंतत: वीरगति को प्राप्त हुए। छत्रपति शिवाजी ने जब यह ख़बर सुनी तो वो बोल पड़े “गढ आला पण सिंह गेला” मतलब गढ़ तो हमने जीत लिए, लेकिन मेरा “सिंह” नहीं रहा.
कोढ़ाना किले की बनावट कुछ इस तरह से थी कि इस पर हमला करना आसान नहीं था. यह तय था कि किले के अंदर पहुँचने के लिए बहुत विपरीत परिस्थियों का सामना करना पड़ेगा. वहीं शिवाजी इस किले को किसी भी कीमत पर जीतना चाहते थे. उस समय किले पर करीब 5000 हजार मुगल सैनिको का पहरा था. किले की सुरक्षा का जिम्मा उदयभान राठौर के हाथों में था। उदयभान था तो एक हिंदू शासक ही लेकिन सत्ता की लालसा के कारण वो मुगलों के साथ था। Tanaji Malusare Biography Hindi
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उदयभान के बारे में भी किवन्दतियाँ प्रचलित हैं कि वो पूरा दैत्य था. रोजाना 20 सेर चावल और 2 भेंड़े खा जाना उसके लिए मामूली बात थी. उदयभान के 5 पुत्र थे और वो इससे भी बड़े दैत्य थे.
इन परिस्थितियों में कोंडाना किले का एक ही भाग ऐसा था जहां से मराठा सेना आसानी से किले में प्रवेश कर सकती थी और वो भाग था किले की ऊंची पहांडीयों का पश्चिमी भाग। तानाजी की रणनीति के अनुसार उन्होंने यह तय किया की वो पश्चिमी भाग की चट्टानों पर घोरपड (गोह, एक प्रकार की विशाल छिपकली) की सहायता से चढ़कर किले की सुरक्षा को भेदेगें।
कोंढाना किले का युद्ध (Battle of Kondana)
अंतत: कोंडाना किले पर आक्रमण का दिन तय हुआ. वो 4 फरवरी 1670 की रात थी. तानाजी मालसुरे के साथ उनके भाई सूर्याजी और मामा ( शेलार मामा) पूरे 342 सैनिको के साथ कोंडाना किले जीतने के लिए निकल पड़े. तानाजीराव शरीर से हट्टे-कट्टे और बेहद शक्तिशाली थे। कोंडाणा का किला भी राजनैतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित था और शिवाजी को इसे कब्जा करना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। कोंडाणा किले तक पहुंचने पर, तानाजी और उनके 342 सैनिकों की टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले के अन्दर प्रवेश करने का निश्चय किया. तानाजी के पास एक घोरपड़ नामक सरीसृप था. यह एक ऐसा जीव होता है जो अगर एकबार किसी पत्थर पर भी अपने पाँव जमा दे तो चाहे उसपर कई पुरुषों का भार भी क्यों ना पड़े वो अपनी जगह से तस से मस नहीं होता. तानाजी ने घोरपड में एक मोटी रस्सी बाधी और उसे किले के पश्चिमी बुर्ज पर फेंक दिया और उसकी मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ को किसी भी ऊर्ध्व सतह पर खड़ा कर सकते हैं और कई पुरुषों का भार इसके साथ बंधी रस्सी ले सकती है। इसी योजना से तानाजी और उनके बहुत से साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए। कोंडाणा का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद उन्होंने मुग़लों पर आक्रमण कर दिया. Tanaji Malusare Biography Hindi
कोंडाना का किला उदयभान राठौर द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जो राजकुमार जय सिंह-1 द्वारा नियुक्त किया गया था। उदयभान के नेतृत्व में 5000 मुगल सैनिकों के साथ तानाजी का भयंकर भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी एक बहादुर शेर की तरह लड़े और इस किले को अन्ततः जीत लिया गया,लेकिन इस प्रक्रिया में, तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। तानाजी जी ने बड़ी वीरता का परिचय देते हुए कोंडाना किले को, उसके पास के क्षेत्र को मुगलो के कब्जे से स्वतंत्र कराया. इस युद्ध के समय जब उनकी ढाल तूट गई तो तानाजी जी ने अपने सिर के फेटे को अपने हाथ पर बांधा और तलवार के वार अपने हाथों पर लिये और एक हाथ से वे बिजली की तेजी से तलवार चलातें रहे.
वीर तानाजी की याद में स्मारक (Tanaji Monuments In Hindi)
मुगलों की अधीनता से कोंडाना किले को मुक्त कराने के बाद शिवाजी महाराज ने कोंडाना किले का नाम बदलकर अपने मित्र की याद में “सिंहगढ़” रख दिया साथ ही पुणे नगर के “वाकडेवाडी” का नाम “नरबीर तानाजी वाडी” रख दिया। तानाजी की वीरता को देखते हुए शिवाजी ने उनकी याद में महाराष्ट्र में उनकी याद में कई स्मारक स्थापित किए।
भारत सरकार ने भी तानाजी का सम्मान करते हुए सिंहगढ़ किले की तस्वीर के साथ 150 रुपये की डाक टिकट जारी किया.
तानाजी के जीवन पर बनने वाली फिल्म (Upcoming Move In Hindi Cinema / Taanaji – The Unsung Warrior)
इस समय बॉलीवुड में Historical period drama फिल्मो का दौर चल रहा है, इसी कड़ी में एक फिल्म आने वाली है तानाजी – द अनसंग वॉरियर (Taanaji – The Unsung Warrior) तानाजी के जीवन को पर्दे पर दिखाने के लिए यह बॉलीवुड फिल्म बन रही है. इस फिल्म में तानाजी मालसुरे की भुमिका में बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन होगें. हाल ही में अपने ट्विटर अकाउंट से फिल्म का पोस्टर जारी करते हुए अजय देवगन ने फिल्म के बारें में बताया कि फिल्म 10 जनवरी 2020 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म का डायरेक्शन ओम राउत कर रहे है। ओम राउत अपने डायरेक्शन में पहले लोकमान्य तिलक के जीवन पर मराठी फिल्म “लोकमान्य एक युग पुरुष” बना चुकें है जो 2 जनवरी 2015 को रिलीज हुयी थी.
तानाजी के जीवन पर आधारित कविता – Tanaji Malusare Poem In Hindi
तानाजी की वीरता व दृढ़ निश्चय काउल्लेख मध्यकाल युग के कवि तुलसीदास (ये गोस्वामी तुलसीदास नहीं थे, कृपया नाम से भ्रमित ना हों) ने “पोवाडा” कविता की रचना की थी।
देश के महान समाजसेवी और क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने भी तानाजी के जीवन पर “बाजीप्रभु” नामक गीत की रचना की. सावरकर की इस रचना पर ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी लेकिन 24 मई 1946 को प्रतिबंध हटा दिया गया. Tanaji Malusare Biography Hindi
तानाजी की जीवन वीरता पर कविता – Veer Savarkar Poem Tanaji Malusare In Hindi
वीर सावरकर ने तानाजी की सिंहगढ़ की वीरता का अपनी कविता में इस तरह उल्लेख किया है:
“जयोऽस्तु ते श्रीमहन्मंगले शिवास्पदे शुभदे ।
स्वतंत्रते भगवति त्वामहम् यशोयुतां वंदे ॥१॥
स्वतंत्रते भगवती या तुम्ही प्रथम सभेमाजीं ।
आम्ही गातसों श्रीबाजीचा पोवाडा आजी ॥२॥
चितूरगडिंच्या बुरुजानो त्या जोहारासह या ।
प्रतापसिंहा प्रथितविक्रमा या हो या समया ॥३॥
तानाजीच्या पराक्रमासह सिंहगडा येई ।
निगा रखो महाराज रायगड की दौलत आयी ॥४॥
जरिपटका तोलीत धनाजी संताजी या या ।
दिल्लीच्या तक्ताचीं छकलें उधळित भाऊ या ॥५॥
स्वतंत्रतेच्या रणांत मरुनी चिरंजीव झाले ।
या ते तुम्ही राष्ट्रवीरवर या हो या सारे ॥६॥ ” – वीर सावरकर
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