Social Development in Adolescence / किशोरावस्था में सामाजिक विकास
किशोरावस्था मानवीय जीवन की सबसे जटिल अवस्था होती है। अतः सामाजिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। किशोर एवं किशोरी व्यक्ति व्यक्ति के लिए, व्यक्ति समूह के लिए और समूह अन्य समूहों के लिए होने वाली अंत:क्रियाओं के माध्यम से सामाजिक संबंधों का विकास करते हैं।
किशोरावस्था के इस सामाजिक विकास के निम्नलिखित आयाम प्रमुख हैं:
आत्मप्रेम
इस अवस्था में लड़के और लड़कियां स्वयं से अधिक प्रेम करने लगते हैं। स्वयं को आकर्षक बनाने सजाने संवरने में अधिक समय व्यतीत करने लगते हैं इसका मुख्य कारण विषम लिंगी आकर्षण होता है। विद्यालय स्तर पर किए गए अध्ययनों से यह प्रकट होता है की किशोरियां इस बात में रुचि रखती हैं कि कौन सा किशोर उसको देखकर क्या सोचता है और किशोर तो किशोरियों के बारे में बातचीत करते ही रहते हैं। अतः आत्मप्रेम का भाव अचेतन अवस्था में लैंगिक चेतनता ही है।
समलिंगीय समूह
इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों को अपनी लिंगीय बनावट का पूर्ण अनुभव होने लगता है। वे समान लिंग के प्रति रुचि जागृत करने लगते हैं। वे अपने आयु समूह के सक्रिय एवं प्रतिष्ठित सदस्य बन जाते हैं। मैं अपने अंदर अवस्था एवं त्याग को आवश्यक गुण के रूप में स्थापित करते हैं। जब कभी भी उनकी अवस्था एवं त्याग को ठेस लगती है तो वे समाज के साथ असामान्य व्यवहार प्रकट करने लगते हैं और उनमें आंतरिक संघर्ष उत्पन्न होने लगता है।
Social Development in Adolescence
सामाजिक भावना का उदय
इस अवस्था में समूह भावना, आस्था और त्याग का व्यापक रूप सामाजिक चेतना के रूप में देखने को मिलता है। किशोर एवं किशोरी के क्रियाकलाप विद्यालय, समुदाय, राज्य और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विकसित होने लगते हैं।
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वे स्वयं की सीमाओं से निकलकर मानवीय दायरे में प्रवेश करते हैं ताकि समाज का अधिक से अधिक भला कर सके इसलिए इतिहास के अनुसार देश पर प्राण निछावर करने वाले वीर किशोर एवं किशोरियों की संख्या काफी रही है।
भिन्नता में स्थायित्व
इस अवस्था में मानवीय संबंध स्थिरता की ओर प्रस्थान करते हैं। अस्थिरता एवं शारीरिक आवेग और तनाव की स्थिति से निकलकर किशोर एवं किशोरी मित्रता को स्थाई बनाते हैं। आगे चलकर यही मित्रता आत्मीय संबंधों में बदल जाती है।
इस प्रकार से किशोर एवं किशोरी अपने चारों तरफ एक आत्मीय एवं सहयोगी परिवेश का निर्माण करते हैं जो उनके भविष्य निर्माण में सहायक होता है।
समायोजन में अस्थिरता
किशोरावस्था में संभागों की तीव्र अभिव्यक्ति होती है। किशोर अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को बिना किसी शर्त के पूरा करना चाहते हैं जो कि समाज को अमान्य होता है।
अतः ये अपना समायोजन सही रूप से नहीं कर पाते हैं। वे अपने दमन के प्रति और स्वतंत्रता हनन के प्रति विद्रोह करने लगते हैं। यह भावना कुछ हद तक किशोरियों में भी पाई जाती है।
सामाजिक पहचान
किशोरावस्था का मुख्य आकर्षण सामाजिक पहचान को स्थापित करने के लिए किशोर किशोरियों का क्रियाशील रहना है। इसके लिए किशोर किशोरी अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। परिश्रम लगन परोपकारिता स्वतंत्रता एवं सामाजिक कार्यों में सहभागिता, आदि कार्यों में प्रमुख भूमिका का निर्वाह करते हैं। इस प्रकार वे स्वयं की समाज में पहचान स्थापित करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों के अंदर सामाजिक चेतना की जो जागृति होती है वह भविष्य में राष्ट्रीय एकता एवं मानवीय एकता के लिए जरूरी होती है।
वयस्क अवस्था में सामाजिक विकास
वयस्क अवस्था सामाजिक विकास की यह अवस्था वास्तव में किशोरावस्था का परिणाम मात्र है। इस अवस्था में द्वितीयक समाजीकरण, विसमाजीकरण तथा पुर्नसमाजीकरण की प्रक्रिया मन्द गति से जारी रहती है। इस अवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि यहां व्यक्ति वैवाहिक जीवन को निभाने में सक्रिय हो जाता है, जीविकोपार्जन भी इस अवस्था की मुख्य विशेषता है।
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