Samudragupta Life Hindi (सम्राट समुद्रगुप्त का जीवन परिचय)

Samudragupta Life Hindi / सम्राट समुद्रगुप्त का जीवन परिचय / King Samudragupta life: History and Story in Hindi

समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र थे और गुप्त वंश के चौथे राजा थे. समुद्रगुप्त को भारतीय इतिहास के सबसे बड़े और सफल सेनानायकों में से एक माना जाता है. समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है. उन्होंने ना सिर्फ विदेशी शक्तियों को हराकर अपनी शक्ति का लोहा मनवाया बल्किअपने बेटे विक्रमादित्य के साथ मिलकर भारत के स्वर्ण युग की शुरुआत की.आज भी इनकी गौरव गाथा भारतीय इतिहास में दर्ज है और लोग उसे बड़े सम्मान के साथ पढ़ते हैं. Samudragupta Life Hindi

आसान नहीं थी राजगद्दी की राह

समुद्रगुप्त का जन्म कब और कहां हुआ इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता. हालाँकि उनके शासनकाल का जिक्र जरूर मिलता है जो कि 330- 380 ईसवी तक चला. समुद्रगुप्त बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे. उनमे एक राजा वाले सारे गुण मौजूद थे और यही कारण था कि उनके पिता चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने अनेक पुत्रों में से उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना और अपने जीवन काल में ही समुद्रगुप्त को गद्दी सौंपने का मन बना लिया

चंद्रगुप्त प्रथम का यह फैसला समुद्रगुप्त के अन्य भाइयों को पसंद नहीं आया, उन्होंने समुद्रगुप्त के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. समुद्रगुप्त ने युद्ध में उनको कड़ी टक्कर दी और उनको मात देते हुए अपनी दावेदारी को पुख्ता किया. इसके बाद उसने गुप्त वंश के विस्तार में पूरी तरह से अपने आप को झोंक दिया.

क्यों कहा गया भारत का नेपोलियन?

जब समुद्रगुप्त गद्दी पर बैठे उस समय गुप्त साम्राज्य बहुत छोटा था. समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य विस्तार करने का निर्णय किया. भारत जीतने के लिए चलाए गए उनके ज्यादातर अभियान हर क्षेत्र में कामयाब रहे हैं अपने पहले युद्ध में उन्होंने अपने विरोधी 3 राजाओं को हराकर इसके बाद दक्षिण में युद्ध के दौरान 12 राजाओं को हरा दिया इस युद्ध की खास बात यह थी अगर समुद्रगुप्त चाहते तो हारे हुए राजाओं को मार सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया इसके पीछे शायद उनकी कोई दूरदर्शी सोच थी राजीव को जीतने का सिलसिला और इसी क्रम में उन्होंने कई विदेशी शक्तियों को भी अपनी शक्ति का लोहा मनवाया इतिहासकारों का कहना है कि उनके कालखंड में उनका कोई भी ऐसा विरोधी नहीं था सामने युद्ध की चुनौती प्रस्तुत कर सकें कहा जाता है कि जब तक उन्होंने संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त नहीं की तब तक उन्होंने 1 दिन भी आराम नहीं किया अपने राज्य को उत्तर में हिमालय नर्मदा पुर और पश्चिम में यमुना नदी तक फैलाने में सफल रहे. शायद यही कारण है तूने भारत का नेपोलियन तक कहा जाता है Samudragupta Life Hindi

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समुद्रगुप्त की वीरता का उल्लेख प्रयाग प्रशस्ति में भी मिलता है यह एक प्रकार से समुद्रगुप्त गौरवशाला है जिसे समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण मैं तैयार किया था.

सिर्फ एक योद्धा ही नहीं थे समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त सिर्फ एक योद्धा ही नहीं थे इसके अतिरिक्त भी उनमे बहुत सारे गुण थे. उन्हें संगीत का बहुत शौक था, वह वीणा बजाने में हस्तसिद्ध थे.

वह बहुत अच्छे संगीतकार भी थे उनके द्वारा बनवाया गया कई सिक्कों में इसकी झलक देखने को मिलती है जिसमें वह वीणा लिए हुए नजर आते हैं. इसके अलावा समुद्रगुप्त एक कवि के रूप में भी विख्यात हैं. अपने समय में उनको कवियों का राजा भी कहा जाता था. जनश्रुतियों के अनुसार वे अपने दरबार में कविता पाठ किया करते थे लेकिन उनकी रचनाओं का कहीं संकलन नहीं मिलता इसलिए सारे इतिहासकार इस बात पर सहमत नहीं है. Samudragupta Life Hindi

शुद्ध स्वर्ण मुद्राओं का चलन

सम्राट समुद्रगुप्त की ख्याति उनके शुद्ध स्वर्ण मुद्राओं के चलन की वजह से भी है. अपने शासनकाल में समुद्रगुप्त ने शुद्ध स्वर्ण मुद्राओं और उच्च कोटि की ताम्र मुद्राओं का प्रचलन करवाया. समुद्रगुप्त ने कुल 7 प्रकार के सिक्के बनवाएं.जो कि आर्चर, बैकल एक्स, अश्वमेघ, टाइगर स्लेयर, राजा और रानी एवं लयरिस्ट नामों से जाने गए. Samudragupta Life Hindi

अपने जीवन काल में समुद्रगुप्त ने कई शादियां की लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. इनके पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का जन्म इनकी पटरानी अग्रमहिषी पट्टमहादेवी से हुआ.

सम्राट समुद्रगुप्त का संक्षिप्त जीवन परिचय

  • चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना,समुद्रगुप्त के माता का नाम ‘कुमार देवी’ था, जो लिच्छवी राज्य की राजकुमारी थी.
  • समुद्रगुप्त का कार्यकाल (325ई०-375ई०)तक रहा.
  • समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जाता है.
  • समुद्रगुप्त के विषय में यद्यपि अनेक शिलालेखों, स्तम्भलेखों, मुद्राओं व साहित्यिक ग्रन्थों से व्यापक जानकारी प्राप्त होती है, परन्तु सौभाग्य से समुद्रगुप्त पर प्रकाश डालने वाली अत्यन्त प्रामाणिक सामग्री ‘प्रयाग प्रशस्ति’ के रूप में उपलब्ध है.
  • राजसिंहासन पर बैठने के बाद समुद्रगुप्त ने दिग्विजय की योजना बनाई. ‘प्रयाग-प्रशस्ति’ के अनुसार इस योजना का ध्येय ‘धरणी-बन्ध’(भूमण्डल को बांधना) था.
  • समुद्रगुप्त गुप्त वंश का एक महान् योद्धा तथा कुशल सेनापति था, इसी कारण उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है.
  • समुद्रगुप्त का साम्राज्य पूर्व में ब्रहापुत्र, दक्षिण में नर्मदा तथा उत्तर में कश्मीर की तलहटी तक विस्तृत था.
  • समुद्रगुप्त एक उच्च कोटि का कवि भी था जो ‘कविराज’के नाम से कविता लिखा करता था.
    श्रीलंका के शासक ‘मेघवर्मन’ ने गया(बिहार) में एक बौद्ध मन्दिर के निर्माण की अनुमति पाने के लिए, अपना दूत समुद्रगुप्त के पास भेजा और मेघवर्मन ने अनुमति प्राप्त की.

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