Samaveshi Shiksha/ शिक्षाशास्त्र और शिक्षा मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण भाग: समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा की अवधारणा (Accreditation of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा (Samaveshi Shiksha) वह शिक्षा है, जिसमें एक सामान्य विद्यालय में बाधित तथा सामान्य बालक दोनों को एक साथ शिक्षा दी जाती है। शारीरिक रूप से विकलांग (दिव्यांग) बालक को पहचानना बहुत आसान होता है जबकि मानसिक रूप से बाधित बालक को पहचानना कठिन होता है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से बाधित बच्चे सामान्य बच्चे की अपेक्षा धीरे सीखते हैं।
समावेशी शिक्षा (Samaveshi Shiksha) शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णत: या आंशिकत: ग्रसित बच्चों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा ग्रहण पर जोर देती है। तथा विशिष्ट बालकों की शिक्षा हेतु अनुमोदन करती है।
Samaveshi Shiksha
- विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बाधित बच्चों में छिपी योग्यता को उजागर करना होता है।
- असमर्थ बालकों के लिए विशेष विद्यालयों की स्थापना की शुरुआत 18वीं शताब्दी के मध्य में हुई।
- सबसे पहले अमेरिका में वर्ष 1975 में अमेरिकन कांग्रेस ने अक्षम बच्चों की शिक्षा के लिए कानून बनाया, जिसका मुख्य उद्देश्य अक्षम बालकों को मुख्यधारा से जोड़ना था।
- भारत में समावेशी शिक्षा अमेरिका के मुख्यधारा आंदोलन का ही परिणाम है, जिसमें विकलांगों को मुख्यधारा में लाया जाता है।
समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
- समावेशी शिक्षा (Samaveshi Shiksha) में शारीरिक रूप से विकलांग एवं सामान्य बच्चों के लिए शिक्षा का प्रावधान एक समान होता है।
- यह शिक्षा बच्चों के शारीरिक बौद्धिक मानसिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक विभिन्नताओं की पहचान कराती है।
- इसमें संज्ञात्मक, संवेगात्मक तथा सृजनात्मक विकास के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।
- इसमें विभिन्न प्रकार के बाधित बालकों की शारीरिक एवं मानसिक अवस्था को स्वीकार कर उनको समुचित विकास के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
- समावेशी शिक्षा (Samaveshi Shiksha), शिक्षा के मौलिक अधिकार को सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक रूप में स्वीकृत करती है।
- इसमें धर्म लिंग जाति आदि के विभेद के बिना सह-संबंधित एवं समायोजित रूप में रहकर बालक शिक्षा ग्रहण करता है।
- इसमें असमर्थ बच्चों के प्रति स्कूलों, अध्यापकों एवं समाज के अभिवृत्ति में बदलाव देखने को मिलता है।
- इसमें स्कूल विद्यार्थियों की जरूरतों के मुताबिक ही अभीयोजित किया जाता है।
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता
- समावेशी शिक्षा व्यवस्था (Samaveshi Shiksha), में अपंग बालकों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्राप्त होता है।
- इससे बालकों में सामाजिक तथा नैतिक गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग, आदि गुणों का समावेश होता है।
- इससे बच्चों में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित होती है।
- समावेशी शिक्षा अपेक्षाकृत कम खर्चीली होती है क्योंकि अध्यापक विशेषज्ञ चिकित्सक आज का सामान्य एवं अपंग दोनों तरह के बच्चोंको एक साथ सेवा देने से कम खर्च होता है।
- इसमें अपंग तथा सामान्य बालक के बीच एक प्राकृतिक वातावरण बनता है जिससे बालकों में एकता की भावना आती है, एकीकरण संभव होता है।
- समावेशी शिक्षा समानता के सिद्धांत का अनुपालन करता है, तथा इससे शैक्षिक एकीकरण भी संभव होता है।
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समावेशी शिक्षा का महत्व
- इसमें अध्यापक तथा अन्य कर्मचारी में सहयोग एवं एकता से अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं, जिनसे शैक्षिक उन्नति होती है।
- इसमें विशिष्ट बालकों तथा सामान्य बालकों को पढ़ाना कम खर्चीला होता है।
- इस शिक्षा व्यवस्था में बालकों का मानसिक विकास एवं आत्म सम्मान की भावना का विकास अच्छी तरह से होता है।
- इस शिक्षण व्यवस्था में असमर्थ बालकों में प्यार दयालुता समायोजन सहायता भाईचारा आदि जैसे सामाजिक गुणों का भी विकास होता है।
- इस व्यवस्था से बालकों के बीच समानता का सिद्धांत विकसित होता है।
- इसमें सामान्य तथा बाधित दोनों तरह के बालकों के बीच एक प्राकृतिक वातावरण का विकास होता है।
समावेशी शिक्षा के लाभ
- समावेशी शिक्षा के कारण अक्षम बालक सामान्य बालक के साथ सम्मिलित होकर लाभान्वित होते हैं।
- वैयक्तिक विभिन्नताओं के फलस्वरूप समावेशी शिक्षा अधिक लाभप्रद है।
- समावेशी शिक्षा अधिकतम लाभ के लिए उपयुक्त होती है, जिसमें सामान्य, अक्षम तथा विशिष्ट बच्चों को सामान लाभ मिलता है।
- समायोजन की समस्या को दूर करने के लिए समावेशी शिक्षा लाभप्रद होती है।
- कुंठा तथा ग्रंथियों को समाप्त करने के लिए समावेशी शिक्षा लाभदायक होती है।
- विशिष्ट बालकों की समस्या को समझने एवं समाधान में समावेशी शिक्षा लाभप्रद होती है।
- समस्यात्मक बालक बनने से रोकने के लिए भी समावेशी शिक्षा जरूरी है।
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत
व्यक्तिगत रूप से भिन्नता: इसमें व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार छात्रों को समावेशी शिक्षा प्रदान की जाती है।
माता पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना: समावेशी शिक्षा में माता-पिता का सहयोग होना अति आवश्यक होता है।
भेदभाव रहित शिक्षा: समावेशी शिक्षा का मुख्य सिद्धांत भेदभाव रहित शिक्षा ही है।
विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा: इसके माध्यम से विशिष्ट शिक्षा हेतु विशिष्ट कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
वातावरण नियंत्रणपूर्ण होना: इसके तहत सामान्य तथा विशिष्ट बालकों के बीच समन्वयपूर्ण वातावरण स्थापित होता है।
समावेशी शिक्षा के मॉडल
समावेशी शिक्षा के सिद्धांत पर आधारित समावेशी शिक्षा मॉडल निम्नलिखित है:
सांख्यिकीय मॉडल
यह मॉडल व्यक्तिगत विभिन्नता पर आधारित होता है, जिसमें बालकों की विशिष्टता के विषय में जाना जाता है।
मौखिक संचार मॉडल
इसमें सीखने में मंदबुद्धि बालक, हकलाने वाले बालक, स्वरदोष वाले बालक, मौखिक संचार में भिन्नता वाले बालकों की पहचान की जाती है।
चिकित्सीय अथवा विद्या मॉडल
इस मॉडल में शारीरिक रूप से अक्षम अथवा भिन्नता वाले बालकों की पहचान कर उनकी चिकित्सा के साथ-साथ शिक्षा प्रदान की जाती है।
सांस्कृतिक मॉडल
इसमें असुविधा युक्त बालक तथा सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक तथा वंचित बालकों को पहचान कर व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है।
मनोसामाजिक मॉडल
इसमें संवेगात्मक रूप से परेशान बालक यह अपराधी बालक के शिक्षण की व्यवस्था की जाती है।
Samaveshi Shiksha
समावेशी शिक्षा नीति- 2006 तथा भारतीय संविधान
- इसमें बाधित बालकों की प्रारंभिक स्तर पर पहचान तथा उनके लिए कार्यक्रम बनाना शामिल है।
- इसमें सामान्य शिक्षा संस्थाओं में विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रमों को उपयोग करने के लिए संसाधन एजेंसी के रूप में सभी के लिए सेवाएं उपलब्ध कराना शामिल है।
- इसमें विकलांगों के लिए विभिन्न सहायक प्रविधियां उपलब्ध कराना शामिल है।
- भारतीय संविधान के खंड 3 तथा खंड 4 में शिक्षा संबंधी प्रावधान है।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों के शैक्षिक उत्तरदायित्व को विभाजित किया गया है।
- संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा शिक्षा अधिकारों में समानता, धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता, शिक्षा के माध्यम से हिंदी भाषा के विकास आदि का प्रावधान किया गया है।
Superb
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