Sajani kaun tam Kavita (सजनि कौन तम में परिचित सा कविता)- महादेवी वर्मा

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Sajani kaun tam Kavita, सजनि कौन तम में परिचित सा, महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) द्वारा लिखित कविता है.

सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता?
सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता!

छू स्मृतियों के बाल जगाता,
मूक वेदनायें दुलराता,
हृततंत्री में स्वर भर जाता,
बंद दृगों में, चूम सजल सपनों के चित्र बना जाता!

Sajani kaun tam Kavita

पलकों में भर नवल नेह-कन
प्राणों में पीड़ा की कसकन,
श्वासों में आशा की कम्पन
सजनि! मूक बालक मन को फिर आकुल क्रन्दन सिखलाता!

घन तम में सपने सा आ कर,
अलि कुछ करुण स्वरों में गा कर,
किसी अपरिचित देश बुला कर,
पथ-व्यय के हित अंचल में कुछ बाँध अश्रु के कन जाता!
सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता?

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महादेवी वर्मा की कुछ प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायें

निम्नलिखित कवितायेँ महादेवी वर्मा की प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायेँ हैं.

अलि! मैं कण-कण को जान चली   जब यह दीप थके   पूछता क्यों शेष कितनी रात?  
यह मंदिर का दीप   जो तुम आ जाते एक बार कौन तुम मेरे हृदय में  
मिटने का अधिकारमधुर-मधुर मेरे दीपक जल! जाने किस जीवन की सुधि ले
नीर भरी दुख की बदली   तेरी सुधि बिन   तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ जाग तुझको दूर जाना   मैं प्रिय पहचानी नहीं  
जीवन विरह का जलजात   मैं बनी मधुमास आली! मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
बताता जा रे अभिमानी!   मेरा सजल मुख देख लेते! मैं नीर भरी दुख की बदली!
अधिकार   प्रिय चिरन्तन है   अश्रु यह पानी नहीं है  
स्वप्न से किसने जगाया?   धूप सा तन दीप सी मैं   अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी  
मैं अनंत पथ में लिखती जो   जो मुखरित कर जाती थीं क्यों इन तारों को उलझाते?
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की   अलि अब सपने की बात   सजनि कौन तम में परिचित सा  
क्या जलने की रीत   किसी का दीप निष्ठुर हूँ तम में बनकर दीप  
जीवन दीप   दीपक अब रजनी जाती रे सजनि दीपक बार ले  
फूल   क्या पूजन क्या अर्चन रे!   दीप मेरे जल अकम्पित  
तितली से   बया हमारी चिड़िया रानी आओ प्यारे तारो आओ  
ठाकुर जी भोले हैं   कोयल  

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