Rahimdas Dohe Arth / रहीमदास के प्रसिद्ध दोहे / Rahimdas ke famous dohe
“रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय”
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर ही छिपा कर ही रखना चाहिए क्योंकि दूसरे लोग आपका दुःख सुनकर सिर्फ इठलायेंगे, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होगा.
“दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय”
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं लेकिन सुख में कोई नहीं याद करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही. Rahimdas Dohe Arth
“रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन
पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चुन”
अर्थ: इस दोहे में रहीमदास ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है, पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है. रहीम कह रहे हैं की मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिये. पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का भी कोई मूल्य नहीं होता. पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया हैं. रहीमदास का ये कहना है की जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी यानी विनम्रता रखनी चाहिये जिसके बिना उसका मूल्य कुछ भी नहीं है.
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग”
अर्थ: कवि रहीम कहते हैं कि जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते.
“रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार”
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती.
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय”
अर्थ: रहीमदास कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नही है. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है. Rahimdas Dohe Arth
“तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान”
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
“एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
‘रहिमन’ मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय”
अर्थ: रहीमदास कहते हैं कि एक को साधने से सब सध जाते हैं. लेकिन सब को साधने के चक्कर में सभी के जाने की आशंका रहती है, वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है
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“रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय”
अर्थ: रहीमदास कहते हैं कि यदि संकट कुछ समय का हो तो वह भी ठीक ही हैं, क्योंकि संकट में ही दुनिया में कौन हमारा अपना हैं और कौन नहीं सबके बारेमें जाना जा सकता हैं.
“रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत
काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीत”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि ओछे लोग अर्थात बुरे लोगों से ना दोस्ती अच्छी और ना ही दुश्मनी अच्छी होती हैं, जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही स्थिति ख़राब है.
“रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मना लेना चाहिए, क्योंकि जैसे यदि मोतियों की माला टूट जाती है तो हम उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेते हैं.
“बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन हो जाता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता.
“समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात”
अर्थ: कवि रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है और झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है.
“जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जैसी भी विपत्ति इस देह पर पड़ती है, सहन करनी चाहिए क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को भी सुख-दुःख सहन करना चाहिए.
“रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल
बिछलत पांव पिपीलिका लोग लदावत बैल”
अर्थ: कवि रहीम कहते हैं कि प्रेम की राह इतनी फिसलन भरी है कि चींटी भी इस रास्ते में फिसलती है, सोचो चींटी के भी पैर फिसल जाते हैं और हम लोगों को तो देखो, जो बैल लादकर चलने की सोचते है! (दुनिया भर का अहंकार सिर पर लाद कर कोई कैसे प्रेम के विकट मार्ग पर चल सकता है? वह तो फिसलेगा ही।)
“मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय
‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? जैसे मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है.
“रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से कुएं से ढेंकुली द्वारा पानी खींचते हैं, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं। Rahimdas Dohe Arth
“जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योंकि गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं हो जाती.
“दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं”
अर्थ: रहीम कहते हैं की कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं. जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनकी पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत ऋतु आता हैं तो कोयल मधुर आवाज में गाती है और कोयल की मधुर आवाज सुनकर दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं.
“वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं, जिनका शरीर हमेशा सबका उपकार करता हैं. जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले के शरीर पर भी उसका रंग लग जाता हैं. उसी तरह परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता हैं.
“क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी. मतलब छोटे बदमाशी करें तो कोई बात नहीं. बड़ो को छोटों को इस बात के लिए क्षमा कर देना चाहिये. अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं. जैसे अगर छोटा सा कीड़ा लात भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता.
“खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं. सारा संसार जान जाता है.
“जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जब ओछे लोग या बुरे लोग प्रगति करते हैं तो बहुत ज्यादा इतराते हैं. वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं.
“चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जिन लोगों को ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता है और मन पूरा बेपरवाह हैं, वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें कुछ नहीं चाहिये.
“जे गरीब पर हित करै, ते रहीम बड़लोग
कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जो लोग जो लोग छोटे और गरीब लोगों का कल्याण करें वही बडे लोग कहलाते हैं। जैसे कहाँ भगवान श्रीकृष्ण और कहाँ गरीब सुदामा पर भगवान कृष्ण ने सच्ची मित्रता निभाई और उनका कल्याण किया।
“जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जैसा दीये का चरित्र होता है ठीक वैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं. दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं. Rahimdas Dohe Arth
“रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि
उतने पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जो मनुष्य किसी के सामने हाथ फैलाने जाते हैं, वे मृतक के समान हैं। और वे लोग तो पहले से ही मृतक हैं, मरे हुए हैं, जो माँगने पर भी साफ इन्कार कर देते हैं।
“रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि जब कभी बुरे दिन आये तो मनुष्य को चुप ही बैठना चाहिये, शिकायत नहीं करनी चाहिए. क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती.
“ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय”
अर्थ: अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को भी और स्वयं को भी ख़ुशी हो.
“मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय”
अर्थ: मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते.
“पावस देखि रहीम मन, कोईल साढ़े मौन
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन”
अर्थ: रहीमदासजी कहते हैं कि बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया हैं क्योंकि अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं और हमारी आवाज को पूछने वाला कौन है. इसका अर्थ यह हैं की कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता हैं. कोई उनका आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता हैं. Rahimdas Dohe Arth
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