Prateeksha Kavita (प्रतीक्षा कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

Prateeksha Kavita, प्रतीक्षा सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है.

बिछा प्रतीक्षा-पथ पर चिंतित
नयनों के मदु मुक्ता-जाल।
उनमें जाने कितनी ही
अभिलाषाओं के पल्लव पाल॥

बिता दिए मैंने कितने ही
व्याकुल दिन, अकुलाई रात।
नीरस नैन हुए कब करके
उमड़े आँसू की बरसात॥

Prateeksha Kavita

मैं सुदूर पथ के कलरव में,
सुन लेने को प्रिय की बात।
फिरती विकल बावली-सी
सहती अपवादों के आघात॥

किंतु न देखा उन्हें अभी तक
इन ललचाई आँखों ने।
संकोचों में लुटा दिया
सब कुछ, सकुचाई आँखों ने॥

अब मोती के जाल बिछाकर,
गिनतीं हैं नभ के तारे।
इनकी प्यास बुझाने को सखि!
आएंगे क्या फिर प्यारे?

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सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

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उपेक्षा   उल्लास   कलह-कारण  
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नीम   परिचय   पानी और धूप  
पूछो   प्रथम दर्शन   प्रतीक्षा  
प्रभु तुम मेरे मन की जानो   प्रियतम से   फूल के प्रति  
बालिका का परिचय   बिदाई   भैया कृष्ण!  
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मेरा नया बचपन   मेरी टेक   मेरी कविता  
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समर्पण   साध   साक़ी  
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