Plassey Battle Hindi, The Battle of Plassey,
लोग कहते हैं कि प्यार और जंग में सब जायज है. इतिहास गवाह है कि आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं उसमें कोई अपना ही धोखेबाजी और छल किया है. प्लासी के युद्ध में भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
प्लासी का युद्ध (The battle of Plassey in Hindi)
प्लासी का युद्ध बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के संघर्ष का नतीजा था. प्लासी के युद्ध का भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. 23 जून 1757 में हुए इस युद्ध ने भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित कर दी थी.
सिराजुद्दौला और अंग्रेजो के बीच तनातनी का कारण
- सिराजुद्दौला ने अंग्रेजो को फोर्ट विलियम किले को नष्ट करने का आदेश दिया था, लेकिन इस आदेश को अंग्रेजों ने नहीं माना. इससे गुस्साए नवाब सिराजुद्दौला ने मई 1756 ईसवी में आक्रमण कर दिया और 20 जून 1756 में कासिम बाज़ार पर नवाब ने अधिकार कर लिया.
- इसके बाद नवाब सिराजुद्दौला ने फोर्ट विलियम किले पर भी अपना अधिकार कर लिया. अंग्रेज गवर्नर ड्रेक को अपनी बीवी बच्चों के साथ भागकर फुल्ता नामक एक द्वीप में शरण लेना पड़ा. कोलकाता की अंग्रेजों की बची-खुची सेना को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा. अनेक अंग्रेजों को बंदी बनाकर और मानिकचंद के जिम्मे कोलकाता को सौंपकर नवाब सिराजुद्दौला अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद लौट गया.
- ऐसी विकट परिस्थितियों में एक दिन “काली कोठरी” वाली दुर्घटना हो गई, जिसने अंग्रेजो और बंगाल के नवाब के संबंध को और भी खराब कर दिया. कहा जाता है कि काली कोठरी दुर्घटना में 146 अंग्रेज जिसमें उनकी स्त्रियां और बच्चे भी थे को फोर्ट विलियम की कोठरी में बंद कर दिया गया था, जिसमें दम घुटने के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी
- जब “काली कोठरी” की यह खबर मद्रास पहुंची तो अंग्रेज बहुत गुस्से में आ गए. उन्होंने सिराजुदौला से बदला लेने के लिए मद्रास से रोबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में कोलकाता की ओर सेना को भेजा. रोबर्ट क्लाईव ने नवाब के अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया और अंततः कोलकाता पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया.
प्लासी का युद्ध क्यों हुआ?
Plassey Battle Hindi
बंगाल की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए अंग्रेजों के स्वार्थ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए सुअवसर प्रदान किया. मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हो चुकी थी. उसकी मृत्यु के बाद आई राजनीतिक उठापटक का भरपूर लाभ उठा कर बिहार का नायाब निजाम अलवर्दी खां ने अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली. निजाम अलवर्दी खां ने बंगाल के तत्कालीन नवाब सरफराज खान को युद्ध में हराकर मार डाला तथा स्वयं बंगाल का नवाब बन गया. वह एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था और उसके रहते बंगाल अंग्रेजी से सुरक्षित रहा. लेकिन अलवर्दी खां की मृत्यु के बाद बंगाल की स्थिति कमजोर हो गई.
अलवर्दी खां का कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसकी मृत्यु के बाद अगली नवाब के लिए उत्तराधिकारियों में षड्यंत्र होना शुरू हो गया लेकिन अलवर्दी खां ने अपने जीवन काल में ही अपने सबसे छोटी पुत्री के बेटे सिराजुदौला को उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया था. अंततः सिराजुदौला बंगाल का नवाब बना.
प्लासी के युद्ध के प्रमुख कारण (Main reasons behind the battle of Plassey)
ईस्ट इंडिया कंपनी हर हाल में अपने व्यापारिक प्रभाव को बढ़ाना चाहती थी. कंपनी 1717 में मिले दस्तक पारपत्र का प्रयोग करके बंगाल में अवैध व्यापार कर रही थी. इससे बंगाल का नुकसान हो रहा था. सिराजुद्दौला जान गया कि कंपनी सिर्फ एक व्यापारी नहीं है. उसका नाना अलवर्दी खां इसके बारे में पहले ही उसे चेता गया था
1756 की संधि अब नवाब को भारी पड़ रही थी वो अब उससे मुक्त होना चाहता था और दूसरी तरफ कम्पनी ख़ुद भी ऐसा शासक चाहती थे जो उसके हितों की रक्षा करे। मीर जाफर, अमिचंद, जगतसेठ आदि ऐसे ही भारत माता के गद्दार थे जो अपने हितों की पूर्ति हेतु कम्पनी से मिल कर जाल बिछाने मे लग गए।
सिराजुद्दौला के खिलाफ षड्यंत्र
सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब तो बन गया लेकिन उसे कई विरोधियों का सामना करना पड़ा उसकी सबसे बड़ी विरोधी उसके परिवार से ही थी और वह थी उसकी मौसी घसीटी बेगम (कहीं कहीं इनको छटीसी बेगम भी लिखा गया है). घसीटी बेगम का बेटा शौकतगंज जो पूर्णिया बिहार का शासक था उसने अपने दीवान अमीनचंद और मित्र जगत सेठ के साथ मिलकर सिराजुदौला को परास्त करने का सपना देखा लेकिन सिराजुदौला सतर्क हो चुका था. उसने सबसे पहले घसीटी बेगम को कैद किया और उसका सारा धन जप्त कर लिया इससे शौकतगंज डर गया और उसने सिराजुदौला के प्रति वफादार रहने का वचन दिया लेकिन सिराजुदौला ने बाद में इसको भी युद्ध में हराकर मार डाला.
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उधर ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थिति मजबूत हो चली थी दक्षिण में उन्होंने फ्रांसीसियों का हरा दिया था और अब वह किसी भी कीमत पर बंगाल पर अपना अधिकार जमाना चाहते थे लेकिन सिराजुदौला का नाना अलवर्दी खां ने सिराजुदौला को पहले ही बता दिया था कि किसी भी कीमत पर बंगाल में अंग्रेजों का दखल नहीं होना चाहिए. इस तरह से सिराजुदौला भी अंग्रेजों की तरफ से सतर्क था.
कहां हुआ था प्लासी का युद्ध?
प्लासी का युद्ध मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान पर 23 जून 1757 को हुआ था. एक तरफ जहां इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी थी दूसरी तरफ बंगाल के नवाब की सेना. बंगाल के नवाब की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना सब बहुत बड़ी थी लेकिन फिर भी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने नवाब सिराजुद्दौला की सेना को हरा दिया. क्योंकि इस हार के पीछे थे कुछ गद्दार जो सिराजुद्दोला की सेना में शामिल थे और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हाथ मिला चुके थे.
यह युद्ध भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यशाली युद्ध माना जाता है क्योंकि इस युद्ध के बाद से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है.
कौन था राबर्ट क्लाइव?
रॉबर्ट क्लाइव (1725 – 1774) एक ब्रिटिश नागरिक था जिसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है. इसका मन पढ़ाई लिखाई में लगता नहीं था और उसके पिताजी उसे पढ़ाने-लिखाने के चक्कर में कभी इस स्कूल में तो कभी उस स्कूल में डाला करते थे. 18 साल की आयु में यह ब्रिटेन से मद्रास के बंदरगाह पर एक क्लर्क बन के आया. यहां से उसका ईस्ट इंडिया कंपनी का जीवन शुरू होता है. यह बहुत ही महत्वकांक्षी था और बहुत जल्द ही इसने अपनी योग्यता से ईस्ट इंडिया कंपनी में एक महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर लिया.
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क्लाइव को थी हार की आशंका
रॉबर्ट क्लाइव भी सिराजुद्दोला की शक्ति से परिचित था वह जानता था कि अगर आमने-सामने का युद्ध हुआ तो कंपनी की हार को कोई नहीं रोक सकता इसलिए उसने कई बार चिट्ठी लिखकर ब्रिटिश पार्लियामेंट को यह बताया था और उनसे प्रार्थना की थी अगर प्लासी का युद्ध जीतना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएं उसके जवाब में उधर ब्रिटिश पार्लियामेंट की तरफ से चिट्ठी मिली कि अभी हम (1757 में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और यह युद्ध हमारे लिए प्लासी से ज्यादा महत्वपूर्ण है. हम इससे ज्यादा सिपाही तुम्हें नहीं दे सकते.
रॉबर्ट क्लाइव के पास अब युद्ध जीतने का सिर्फ एक ही रास्ता था ” किसी भी तरह छल करके सिराजुद्दौला से युद्ध जीता जाए”
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रॉबर्ट क्लाइव ने कराई थी सिराजुद्दौला की सेना में जासूसी
प्लासी के युद्ध को जीतने के लिए रॉबर्ट क्लाइव को सिराजुदौला की सेना में कुछ ऐसे गद्दार पता करने थे जो पैसे रिश्वत या गद्दी के लालच में सिराजुद्दौला से गद्दारी करें. इसके लिए उसने अपने दो जासूसों को सिराजुद्दौला की सेना में भेजा. उसके जासूसों ने यह पता लगाया कई ऐसा आदमी है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है, वह व्यक्ति था मीर जाफर जो लालच में किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार था. मीर जाफर ऐसा व्यक्ति था जो दिन-रात बंगाल का नवाब बनने का सपना देखता था. रॉबर्ट क्लाइव की युक्ति काम आ गई और उसने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने का वादा कर अपनी तरफ मिला लिया
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युद्ध में सिराजुद्दौला की हार हुई
इस युद्ध में नवाब सिराजुद्दौला के तीन सेनानायक, उस के दरबारी, उसका अमीर जगत सेठ आदि से क्लाइव ने षड्यंत्र कर लिया था युद्ध में सिराजुद्दौला को हराने के बाद भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव रखी जबकि युद्ध मे नवाब की पूरी सेना ने भाग भी नही लिया था. युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी।
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