Panipat Third Battle Hindi, पानीपत का तीसरा युद्ध या पानीपत का तृतीय युद्ध (The third battle of Panipat) 18वी शताब्दी का सबसे विनाशक युद्ध था. पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच 14 जनवरी सन 1761 में हुआ था
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भारत का इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है इसने हमें बहुत कुछ अच्छा दिया है तो बहुत कुछ बुरा भी किया है कुछ किस्से हमें गौरान्वित करते हैं तो कुछ किस्से ऐसे हैं जो हमारे दिलों में चुभते हैं. इतिहास के कुछ किस्से ऐसे हैं जिनको सुनकर दिल के एक कोने में आग सी लग जाती है, धमनियों में बहता हुआ रक्त सामान्य गति से कहीं तेज चलने लगता है
पानीपत का तीसरा युद्ध कुछ ऐसा ही युद्ध था. इस लड़ाई में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ अफगान सेनापति अहमद शाह अब्दाली के दाव पेंचो से मात खा गया.
Panipat Third Battle Hindi
पानीपत के तीसरे युद्ध का मुख्य कारण
पानीपत के तीसरे युद्ध के दो मुख्य कारण थे:
- पहला कारण तो यह था अहमद शाह अब्दाली भी नादिरशाह की तरह भारत को लूटना चाहता था
- और दूसरा मराठे हिंदू पादशाही की भावना से ओतप्रोत होकर दिल्ली पर अपना अधिकार जमाना चाहते थे
मल्हार राव की कायरता
पानीपत के युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिव राव भाऊ ने किया जबकि विश्वास राव नाममात्र का सेनापति था मराठों की पैदल सेना बहुत ही ताकतवर थी. तोपखाने की टुकड़ी की कमान इब्राहिम खान गर्दी के हाथों में थी
पानीपत के तीसरे युद्ध में इस्लामिक सेना में 60000 से 100000 सैनिक तथा मराठों की सेना में लगभग 50000 से 60000 सैनिकों ने भाग लिया
इस युद्ध में मराठों को प्रारंभिक सफलता मिली लेकिन इसके बाद उनका हश्र बहुत ही भयानक हुआ. मल्हार राव होलकर युद्ध के बीच में ही भाग गया. मराठा सेना पूरी तरह से उखड़ गई विश्वास राव और सदाशिव राव भाऊ के साथ अन्य पूर्ण मराठा सैनिक युद्ध में मारे गए.
Panipat Third Battle Hindi
युद्ध के बारे में इतिहासकार जे एन सरकार ने लिखा है कि महाराष्ट्र में संभवत: ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने इस युद्ध में अपने सगे संबंधी ना खोए हो.
मराठों की हार का कारण
पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की हार के महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं:
- अहमदशाह अब्दाली की सेना की संख्या सदाशिव राव भाऊ के सेना की संख्या से बहुत अधिक थी.
- उत्तर भारत की सारी मुसलमान शक्तियां अहमदशाह अब्दाली के साथ थी.
- इस युद्ध में मराठों ने राजपूतों, जाटों और सिखों को हर प्रकार से लूटा और बर्बाद किया था इसलिए इनलोगों ने मराठों का साथ नहीं दिया.
- छत्रपति शिवाजी के समय मराठों के राजपूतों के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे. जाट राजा सूरजमल भी मराठों के कट्टर समर्थक थे. लेकिन जब उन्होंने दिल्ली का गवर्नर बनने की इच्छा जाहिर की तो उनको छोड़ मराठों ने शुजाउद्दौला को चुन लिया. जिस कारण राजा सूरजमल का मराठों से मोहभंग हो गया
- मराठा सरदारों में आपसी मतभेद बहुत ज्यादा थे.
- मराठों के सैनिक शिविर में अकाल की स्थिति थी. सैनिकों के पास पर्याप्त खाने तक की चीजें नहीं थी.
- सैनिक संगठन की दृष्टि से अहमद शाह अब्दाली श्रेष्ठ संगठनकर्ता था.
मराठों ने शुजाउद्दौला को दिल्ली का गवर्नर क्यों बनाया?
शुजाउद्दौला का पक्ष लेने के लिए मराठों के पास दो कारण थे:
- पहला कि उसके पास 50,000 से ज्यादा अश्वारोही मजबूत सेना थी.
- दूसरा शुजाउद्दौला शिया मुस्लिम था.
- मराठों को लगता था शुजाउद्दौला शिया मुस्लिम है इसलिए वह अहमदशाह अब्दाली जैसे सुन्नी मुस्लिम के पक्ष में नहीं जा सकता. हालांकि उनका अनुमान तब गलत साबित हो गया जब अहमदशाह अब्दाली की इस्लामिक एकता की बात सुनकर शुजाउद्दौला उनके पक्ष में हो गया.
पानीपत के तृतीय युद्ध के बारे में इतिहासकारों में मतभेद
इतिहासकार पानीपत के तृतीय युद्ध के बारे में एकमत नहीं हैं. उनमे बहुत सारे मतभेद हैं. एक तरफ जहां मराठा इतिहासकार यह मानते हैं कि इस युद्ध में मराठों ने 75000 सैनिकों की हानि के अलावा कुछ भी नहीं खोया, वहीं दूसरी तरफ इतिहासकार जी एस सरदेसाई का मानना है कि इस युद्ध में मराठों की अभूतपूर्व क्षति हुई. पानीपत के तृतीय युद्ध की प्रत्यक्षदर्शी काशीराज पंडित कहते हैं कि पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ.
मकर संक्रांति के दिन पानीपत के युद्ध में मृत्यु का तांडव
14 जनवरी 1761 ईसवी, मकर संक्रांति का दिन, पानीपत के मैदान में दोनों सेनाएं आमने-सामने, और उसके बाद मैदान में शुरू हुआ मृत्यु का तांडव. मराठा तोपची इब्राहिम खान गर्दी की विशेष बंदूकों और तोपों ने युद्ध भूमि में हाहाकार मचा रखा था. ऐसा लगता था कि आज मराठा एक नया इतिहास लिखने वाले हैं लेकिन शाम होते-होते पूरी स्थिति बदल गई. दोनों पक्षों के लगभग 50000 से ज्यादा सैनिक युद्ध भूमि में शहीद हुए. पेशवा के पुत्र विश्वास राव भाऊ, जसवंत राव पवार, तुकोजी सिंधिया सहित जाने कितने योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए. मराठों की ओर से मरने वाले केवल सैनिक ही नहीं थे अपितु आम नागरिक भी थे. मराठों की हार के बाद अहमदशाह अब्दाली अपनी सेना के साथ नागरिकों को मारते हुए आगे बढ़ना शुरू किया.
विश्लेषण
पानीपत के तृतीय युद्ध से यह तो साफ नहीं हुआ कि भारत वर्ष पर कौन शासन करेगा लेकिन यह साफ हो गया कि भारत वर्ष पर शासन कौन नहीं करेगा.
मराठों की इस हार ने अंग्रेजों का रास्ता बिल्कुल साफ कर दिया. अप्रत्यक्ष रुप से सिखों को भी मराठों की हार से फायदा मिला. इस युद्ध में मुगल सम्राट को लगभग निर्जीव सा कर दिया. पानीपत के युद्ध में मिली हार के सदमे को ना सह पाने के कारण मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव की कुछ दिनों के बाद मृत्यु हो गई. पानीपत की हार का संदेश एक व्यापारी ने बालाजी बाजीराव को कुछ इस तरह से पहुंचाई.
“दो माती विहीन हो गये, 22 सोने की मोहरे लुप्त हो गई, और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती”
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