Neem Kavita (नीम कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

Neem Kavita, नीम सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित पहली कविता है. यह कविता उन्होंने तब लिखी थी जब वो मात्र 9 साल की ही. यह कविता 1913 में “मर्यादा” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे।
तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे॥
ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं।
निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं॥
हे नीम! यद्यपि तू कड़ू, नहिं रंच-मात्र मिठास है।
उपकार करना दूसरों का, गुण तिहारे पास है॥
नहिं रंच-मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुंदर कली।
कड़ुवे फलों अरु फूल में तू सर्वदा फूली-फली॥

Neem Kavita

तू सर्वगुणसंपन्न है, तू जीव-हितकारी बड़ी।
तू दु:खहारी है प्रिये! तू लाभकारी है बड़ी॥
है कौन ऐसा घर यहाँ जहाँ काम तेरा नहिं पड़ा।
ये जन तिहारे ही शरण हे नीम! आते हैं सदा॥
तेरी कृपा से सुख सहित आनंद पाते सर्वदा॥
तू रोगमुक्त अनेक जन को सर्वदा करती रहै।
इस भांति से उपकार तू हर एक का करती रहै॥
प्रार्थना हरि से करूँ, हिय में सदा यह आस हो।
जब तक रहें नभ, चंद्र-तारे सूर्य का परकास हो॥
तब तक हमारे देश में तुम सर्वदा फूला करो।
निज वायु शीतल से पथिक-जन का हृदय शीतल करो॥

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सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

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उपेक्षा   उल्लास   कलह-कारण  
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झाँसी की रानी की समाधि पर   झिलमिल तारे   ठुकरा दो या प्यार करो  
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नीम   परिचय   पानी और धूप  
पूछो   प्रथम दर्शन   प्रतीक्षा  
प्रभु तुम मेरे मन की जानो   प्रियतम से   फूल के प्रति  
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भ्रम   मधुमय प्याली   मुरझाया फूल  
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मेरा नया बचपन   मेरी टेक   मेरी कविता  
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यह मुरझाया हुआ फूल है   राखी   राखी की चुनौती  
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समर्पण   साध   साक़ी  
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