Nayi nayi kopalen Kavita, नयी-नयी कोपलें, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी
चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी।
उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते
निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते।
उस अलमस्त पवन के झोंके ठहर-ठहर कैसे लहाराते
मानो अपने पर लिख-लिखकर स्मृति की याद-दिहानी लाते।
Nayi nayi kopalen Kavita
बेलों से बेलें हिलमिलकर, झरना लिये बेखर उठी हैं
पंथी पंछी दल की टोली, विवश किसी को टेर उठी है।
किरन-किरन सोना बरसाकर किसको भानु बुलाने आया
अंधकार पर छाने आया, या प्रकाश पहुँचाने आया।
मेरी उनकी प्रीत पुरानी, पत्र-पत्र पर डोल उठी है
ओस बिन्दुओं घोल उठी है, कल-कल स्वर में बोल उठी है।
माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ
एक तुम हो | लड्डू ले लो | दीप से दीप जले |
मैं अपने से डरती हूँ सखि | कैदी और कोकिला | कुंज कुटीरे यमुना तीरे |
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे | सिपाही | वायु |
वरदान या अभिशाप? | बलि-पन्थी से | जवानी |
अमर राष्ट्र | उपालम्भ | मुझे रोने दो |
तुम मिले | बदरिया थम-थमकर झर री ! | यौवन का पागलपन |
झूला झूलै री | घर मेरा है? | तान की मरोर |
पुष्प की अभिलाषा | तुम्हारा चित्र | दूबों के दरबार में |
बसंत मनमाना | तुम मन्द चलो | जागना अपराध |
यह किसका मन डोला | चलो छिया-छी हो अन्तर में | भाई, छेड़ो नही, मुझे |
उस प्रभात, तू बात न माने | ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा | मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक |
आज नयन के बँगले में | यह अमर निशानी किसकी है? | मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी |
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं |
क्या
आकाश उतर आया है
| कैसी है पहिचान तुम्हारी |
नयी-नयी कोपलें | ये प्रकाश ने फैलाये हैं | फुंकरण कर, रे समय के साँप |
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं | जाड़े की साँझ | समय के समर्थ अश्व |
मधुर! बादल, और बादल, और बादल | जीवन, यह मौलिक महमानी | उठ महान |
ये वृक्षों में उगे परिन्दे | बोल तो किसके लिए मैं | वेणु लो, गूँजे धरा |
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने | गाली में गरिमा घोल-घोल | प्यारे भारत देश |
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा |
किरनों
की शाला बन्द हो गई चुप-चुप
| गंगा की विदाई |
वर्षा ने आज विदाई ली | ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें |
|
Leave a Reply