Most Asked Chhand/ यहाँ हम आपको विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण छंदों के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं. छंदों का वर्गीकरण मुख्यत: तीन भागों में किया जा सकता है:
- सम मात्रिक छन्द (Sam Matrik Chhand)
- अर्ध सम मात्रिक छन्द (Ardh Sam Matrik Chhand)
- विषम मात्रिक छन्द (Visham Matrik Chhand)
सम मात्रिक छन्द (Sam Matrik Chhand)
सम मात्रिक छन्द के अंतर्गत निम्नलिखित छन्द आते हैं
चौपाई (Chaupai Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में जगण (१२१) अथवा तगण (२२१) नहीं होते हैं। इन छंदों के प्रथम और द्वितीय चरणों में तुक समान होती है।
उदाहरण:
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
रोला (Rola Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 11, 13 मात्राओं के विराम से कुल 24 मात्राएँ होती हैं तथा अंत में 2 लघु अथवा गुरु का आना उत्तम माना जाता है।
उदाहरण:
कबहुँ बायु सौं बिचलि बंक गति लहरति धावे
मनहु शेष सित बेस गगन ते उतरत आवे
हरिगीतिका (Harigeetika Chhand)
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है। अंत में लघु-गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है।
उदाहरण:
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
गीतिका (Geetika Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं, और 14-12 मात्रा पर यति होती है। गीतिका के अंत में लघु-गुरु का होना आवश्यक है।
उदाहरण:
उत्तरा के धन रहो तुम उत्तरा के पास ही।
श्रृंगार (Sringar Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं और 16 मात्रा पर यति होती है। इसके अंत में एक गुरु और एक लघु आता है।
उदाहरण:
निछावर कर दें हम सर्वस्य। हमारा प्यारा भारतवर्ष।।
दिग्पाल (Digpal Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं और 12-12 मात्रा पर यति होती है। इसके अंत में एक गुरु और एक लघु आता है।
उदाहरण:
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
रूपमाला (Roopmala Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं और 14-10 मात्रा पर यति होती है। इसके अंत में एक लघु या एक दीर्घ आता है अथवा तीन गुरु आता है।
उदाहरण:
उत्तरा के धन रहो तुम उत्तरा के पास।
सरसी (Sarsi Chhand)
इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं और 16-11 मात्रा पर यति होती है। अंत में एक गुरु और एक लघु आता है।
उदाहरण:
नीरव तारागण करते थे झिलमिल अल्प प्रकाश।
सार (Saar Chhand)
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं और 16-12 मात्रा पर यति होती है।
उदाहरण:
सबको मैंने कहते पाया तेरी राम कहानी।
लावनी (Lawani Chhand)
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 30 मात्राएँ होती हैं और 16-14 मात्रा पर यति होती है।
उदाहरण:
शोकभरे छंदों में मुझसे कहो न जीवन सपना है।
वीर (Veer Chhand)
इस छन्द में 31 मात्राएँ होती हैं और 16-15 पर यति होती है।
उदाहरण:
जैसे जीर्ण वस्त्र को तजकर, नर नूतन पट लेटा धार।
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इसे भी पढ़ें: छंद की परिभाषा, भेद तथा उदाहरण
अर्ध सम मात्रिक छन्द (Ardh Sam Matrik Chhand)
अर्ध सम मात्रिक छन्द के अंतर्गत निम्नलिखित छन्द आते हैं:
बरवै (Barwai Chhand)
इसके प्रथम और तृतीय चरणों में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं। इसके द्वितीय और चतुर्थ चरण में जगण या तगण के प्रयोग से कविता सरल हो जाती है।
उदाहरण:
तुलसी राम नाम सम मीत न आन।
जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।।
दोहा (Doha Chhand)
इस छन्द के प्रथम और तृतीय चरणों में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके द्वितीय चरण के अंत में गुरु लघु आते हैं।
उदाहरण:
कागा काको धन हरै कोयल काको देय।
मीठे बचन सुनाय कर जग अपनो कर लेय।।
सोरठा (Soratha Chhand)
यह दोहे के विपरीत होता है। इस छन्द के प्रथम और तृतीय चरणों में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥
उल्लाला (Ullala Chhand)
इस छन्द के प्रथम और तृतीय चरणों में 15-15 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
भूले ना आसी बींजरा,
हे शरणदायिनी देवि तू।
करती सबका त्राण है,
हे मातृभूमि सन्तान हम।
तू जननी तू प्राण है।।
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विषम मात्रिक छन्द (Visham Matrik Chhand)
विषम मात्रिक छन्द के अंतर्गत निम्नलिखित छन्द आते हैं:
कुण्डलियाँ (Kundaliyan Chhand)
इस छन्द का निर्माण दोहा और रोला के संयोग से होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है। यति 11वीं मात्रा तथा पादान्त पर होती है। कुंडलिया छंद में दूसरे चरण का उत्तरार्ध तीसरे चरण का पूर्वार्ध होता है। कुंडलिया छंद का प्रारंभ जिस शब्द या शब्द-समूह से होता है, छंद का अंत भी उसी शब्द या शब्द-समूह से होता है। रोला में 11वी मात्रा लघु तथा उससे ठीक पहले गुरु होना आवश्यक है। कुंडलिया छंद के रोला के अंत में दो गुरु, चार लघु, एक गुरु दो लघु अथवा दो लघु एक गुरु आना आवश्यक है।
उदाहरण:
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान
लगा रोपने खेत में, आशाओं के धान
आशाओं के धान, मधुर स्वर कोयल बोले
लिए प्रेम-सन्देश, मेघ सावन के डोले
‘ठकुरेला’ कविराय, लगा सबको मनभावन
मन में भरे उमंग, झूमता गाता सावन
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छप्पय (Chhappay Chhand)
“रोला-उल्लाला रचें मिलकर छप्पय छंद।
ग्यारह-पन्द्रह विषम, सम तेरह दें आनंद।”
रोला+उल्लाला = छप्पय छंद
छप्पय छंद में कुंडलिया छंद की तरह छह चरण होते हैं, प्रथम चार चरण रोला छंद के होते हैं; जिसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं, यति 11-13 पर होती है। प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरू या एक गुरू दो लघु या दो लघु एक गुरू का होना अनिवार्य है।
आखिर के दो सम चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ होती हैं। चरण की यति 13-13 मात्राओं पर होती है, जो दोहा छंद के विषम चरणों की तरह ही होते हैं। जिसमें ग्यारहवीं मात्रा लघु और इसके बाद एक गुरू या दो लघु मात्राएँ होनी अनिवार्य हैं। इस प्रकार रोला और उल्लाला छंद मिलकर छप्पय छंद बनाते हैं।
यह एक प्राचीन छंद है। यह वीर रस के लिए अधिक उपयुक्त है। Most Asked Chhand
उदाहरण 1-
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है। – रोला
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।। -उल्लाला
उदाहरण 2-
पा अनंत अमरत्व , कर गए नाम धरा में।
गए जोड़ अपनत्व काव्य की परंपरा में।
किये प्राण उत्सर्ग, लहू को खाद बनाया।
खिलें न्याय-श्रम-सुमन, देश पर शीश चढ़ाया। -रोला
वे राष्ट्र-हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा कर्त्तव्य को।
निज जीवन देकर सँवारा, भारत के भवितव्य को। -उल्लाला
उदाहरण 3-
व्यर्थ न कर अभिमान, एक दिन मिट जाना है।
राजा हो या रंक, न कोई बच पाना है।
आया खाली हाथ, हाथ खाली जाएगा।
तजा न जिसने लोभ, ‘सलिल’ वह पछतायेगा। –रोला
करते सब ग्रन्थ निषेध हैं, हिंसा लालच क्रोध का।
भव-सागर से तरेगा जब, पथ पकड़ेगा बोध का। –उल्लाला
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