MISA Full Form in Hindi, MISA: Maintenance of Internal Security Act (आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का रखरखाव)
MISA का फुल फॉर्म है “Maintenance of Internal Security Act” यानि हिंदी में कहें तो “आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का रखरखाव”.
MISA यानि आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का रखरखाव एक विवादास्पद कानून था, जिसे भारत की संसद द्वारा वर्ष 1971 में पारित किया गया था. इस कानून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लागू किया था जिसके अंतर्गत भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के संगठन को किसी भी व्यक्ति को अनिश्चित काल के लिए गिरफ्तार करने की अद्भुत शक्तियां प्रदान करता था।
इसके अंतर्गत (MISA Full Form) बिना किसी वारंट के संपत्ति की जब्ती, और गिरफ्तारी की जा सकती थी। MISA को राष्ट्रीय आपातकाल यानी 1975-1977 के दौरान कई बार संशोधित किया गया और इसका राजनितिक दुरूपयोग किया गया। सन 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की हार हुयी और जनता पार्टी सत्ता में आई. इसके तुरंत बाद MISA यानि आंतरिक सुरक्षा अधिनियम निरस्त कर दिया गया.
MISA का इतिहास
MISA कानून साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया.
MISA कानून साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया. MISA यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया.
MISA के तहत गिरफ्तार किये गए प्रमुख राजनेता
MISA के तहत निम्नलिखित उल्लेखनीय राजनेताओं को कैद किया गया था:
- अटल बिहारी वाजपेयी
- चंद्रशेखर
- जयप्रकाश नारायण
- देवीलाल
- जॉर्ज फर्नांडीस
- एम. करुणानिधि
- एम. के. स्टालिन
- टी. आर. बालू
- जय किशन गुप्ता, दिल्ली के सबसे लंबे MISA बंदी में से एक
- लालकृष्ण आडवाणी
- मुलायम सिंह यादव
- लालू प्रसाद यादव
- संतोष भारती, तीन बार (1973 – 74 – 75)
- शरद यादव, दो बार (1973-75)
- विजय रूपाणी
- चरणजीत भाटिया
- मुनिरका, दिल्ली से चौधरी मीर सिंह परोपकारी
- डॉ. सतपाल कपूर, सोनीपत
- एन. अज़ू न्यूमई, नागालैंड के एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल, यूडीएफ के नेताओं में से एक
MISA बंदियों से भरी जेलें
MISA के तहत एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. आपातकाल के वक्त जेलों में MISA बंदियों की बाढ़ सी आ गई थी. नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर इस कानून (MISA Full Form) के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया गया, उनकी संपत्ति छीनी गई. बदलाव करके इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं थी. कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे.
जेल में तैयार हुआ विपक्ष
MISA बंदियों ने जेलों में यातनाएं झेलीं जरूर लेकिन इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत भी इन्हीं कैदियों ने की. जेपी से लेकर, चंद्रशेखर, वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, एलके आडवाणी, शरद यादव जैसे नेताओं ने जेल से बाहर आते ही इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया.
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विपक्षी नेताओं की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ और 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. नई सरकार के गठन के साथ ही दमनकारी कानून MISA को हटा दिया गया.
MISA बंदियों को पेंशन
आपातकाल के दौरान भी गैर कांग्रेसी राज्यों की सरकार MISA में बंद किए गए लोगों को पेंशन देने का काम करती थी. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकारों ने डीआरआई और MISA में बंद कैदियों को 15 हजार रुपये पेंशन देना शुरू किया. इसके बाद साल 2014 में राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने भी 800 MISA बंदियों को 12 हजार रुपये प्रति माह की पेंशन (MISA Full Form) देने का फैसला किया. बीजेपी देशभर में आज भी आपातकाल की बरसी पर MISA बंदियों को सम्मानित करती है.
लालू प्रसाद यादव ने अपनी बेटी का नाम रखा MISA
उस समय MISA के तहत कैद लालू प्रसाद यादव बाद में बिहार मुख्यमंत्री बनें. जब लालू प्रसाद यादव आपातकाल के दौरान मीसा बंदी रहे. इस बीच साल 1976 में उनकी बड़ी बेटी का जन्म हुआ. उसका नाम भी इसी कानून की वजह से मीसा भारती रखा गया. मीसा फिलहाल पार्टी की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं.
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