Meri Kavita, मेरी कविता सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है. इस वीर रस की कविता में सुभद्रा कुमारी चौहान की लेखनी अपनी अन्य कविताओं से बिलकुल अलग है.
मुझे कहा कविता लिखने को, लिखने मैं बैठी तत्काल।
पहिले लिखा- ‘‘जालियाँवाला’’, कहा कि ‘‘बस, हो गये निहाल॥’’
तुम्हें और कुछ नहीं सूझता, ले-देकर वह खूनी बाग़।
रोने से अब क्या होता है, धुल न सकेगा उसका दाग़॥
भूल उसे, चल हँसो, मस्त हो- मैंने कहा- ‘‘धरो कुछ धीर।’’
तुमको हँसते देख कहीं, फिर फ़ायर करे न डायर वीर॥’’
कहा- ‘‘न मैं कुछ लिखने दूँगा, मुझे चाहिये प्रेम-कथा।’’
मैंने कहा- ‘‘नवेली है वह रम्य वदन है चन्द्र यथा॥’’
Meri Kavita
अहा! मग्न हो उछल पड़े वे। मैंने कहा- सुनो फिर आप
बड़ी-बड़ी-सी भोली आँखें केश-पाश ज्यों काले साँप॥
भोली-भाली आँखें देखो, उसे नहीं तुम रुलवाना।
उसके मुँह से प्रेमभरी कुछ मीठी बतियाँ कहलाना॥
हाँ, वह रोती नहीं कभी भी, और नहीं कुछ कहती है।
शून्य दृष्टि से देखा करती, खिन्नमन्ना-सी रहती है॥
करके याद पुराने सुख को, कभी क्रोध में भरती है॥
भय से कभी काँप जाती है, कभी क्रोध में भरती है॥
कभी किसी की ओर देखती नहीं दिखाई देती है।
हँसती नहीं किन्तु चुपके से, कभी-कभी रो लेती है॥
ताज़े हलदी के रँग से, कुछ पीली उसकी सारी है।
लाल-लाल से धब्बे हैं कुछ, अथवा लाल किनारी है॥
Meri Kavita
उसका छोर लाल, सम्भव है, हो वह ख़ूनी रँग से लाल।
है सिंदूर-बिन्दु से सजति, जब भी कुछ-कुछ उसका भाल॥
अबला है, उसके पैरों में बनी महावर की लाली।
हाथों में मेंहदी की लाली, वह दुखिया भोली-भाली॥
उसी बाग़ की ओर शाम को, जाती हुई दिखाती है।
प्रातःकाल सूर्योदय से, पहले ही फिर आती है॥
Meri Kavita
लोग उसे पागल कहते हैं, देखो तुम न भूल जाना।
तुम भी उसे न पागल कहना, मुझे क्लेश मत पहुँचाना॥
उसे लौटती समय देखना, रम्य वदन पीला-पीला।
साड़ी का वह लाल छोर भी, रहता है बिल्कुल गीला॥
डायन भी कहते हैं उसका कोई कोई हत्यारे।
उसे देखना, किन्तु न ऐसी ग़लती तुम करना प्यारे॥
बाँई ओर हृदय में उसके कुछ-कुछ धड़कन दिखलाती।
वह भी प्रतिदिन क्रम-क्रम से कुछ धीमी होती जाती॥
किसी रोज़, सम्भव है, उसकी धड़कन बिल्कुल मिट जावे॥
उसकी भोली-भाली आँखें हाय! सदा को मुँद जावे॥
उसकी ऐसी दशा देखना आँसू चार बहा देना।
उसके दुख में दुखिया बनकर तुम भी दुःख मना लेना॥
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