Madhur badal aur badal (मधुर बादल और बादल कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Madhur badal aur badal, मधुर बादल और बादल, और बादल, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.

मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं
और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

गरज में पुरुषार्थ उठता, बरस में करुणा उतरती
उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृंगार करती
बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।।
नेह! संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

Madhur badal aur badal

तड़ित की तह में समायी मूर्ति दृग झपका उठी है
तार-तार कि धार तेरी, बोल जी के गा उठी हैं
पंथियों से, पंछियों से नीड़ के स्र्ख जा रहे हैं
मधुर! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं।।

झाड़ियों का झूमना, तस्र्-वल्लरी का लहलहाना
द्रवित मिलने के इशारे, सजल छुपने का बहाना।
तुम नहीं आये, न आवो, छवि तुम्हारी ला रहे हैं।।
मधुर! बादल, और बादल, और बादल छा रहे हैं,

और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

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माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ

एक तुम हो   लड्डू ले लो   दीप से दीप जले  
मैं अपने से डरती हूँ सखि   कैदी और कोकिला   कुंज कुटीरे यमुना तीरे  
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे सिपाही वायु
वरदान या अभिशाप?   बलि-पन्थी से   जवानी
अमर राष्ट्र   उपालम्भ   मुझे रोने दो  
तुम मिले   बदरिया थम-थमकर झर री ! यौवन का पागलपन  
झूला झूलै री   घर मेरा है?   तान की मरोर  
पुष्प की अभिलाषा   तुम्हारा चित्र   दूबों के दरबार में  
बसंत मनमाना   तुम मन्द चलो   जागना अपराध  
यह किसका मन डोला   चलो छिया-छी हो अन्तर में   भाई, छेड़ो नही, मुझे  
उस प्रभात, तू बात न माने   ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा   मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक  
आज नयन के बँगले में   यह अमर निशानी किसकी है?   मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी  
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं   क्या आकाश उतर आया है   कैसी है पहिचान तुम्हारी  
नयी-नयी कोपलें   ये प्रकाश ने फैलाये हैं   फुंकरण कर, रे समय के साँप  
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं   जाड़े की साँझ   समय के समर्थ अश्व    
मधुर! बादल, और बादल, और बादल   जीवन, यह मौलिक महमानी   उठ महान  
ये वृक्षों में उगे परिन्दे   बोल तो किसके लिए मैं   वेणु लो, गूँजे धरा  
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने   गाली में गरिमा घोल-घोल   प्यारे भारत देश  
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा   किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप   गंगा की विदाई  
वर्षा ने आज विदाई ली   ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें    

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