Karwa Chauth in Hindi 2020 / Karwa Chauth Vrat Katha / Karwa Chauth Shubh Muhurt / करवा चौथ व्रत की पूजा और कथा पढ़ने का शुभ मुहूर्त
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, करवाचौथ सुहागन औरतों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण पर्व है. इसे सुहागन महिलाओं का पर्व भी कहा जाता है. कार्तिक मास कृष्ण पक्ष में नवरात्रि और शरद पूर्णिमा के बाद आने वालों में व्रतों में करवा चौथ एक प्रमुख व्रत हैं। यह हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ता है. अर्थात करवाचौथ का पर्व दिवाली के 10 या 11 दिन के पहले मनाया जाता है. करवा चौथ के व्रत महिलाओं के लिए बहुत खास होता है। इस दिन महिलाएं अपनी पति लंबी आयु के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है। इस दिन पौराणिक रीति रिवाज के साथ उपवास किया जाता है। कहीं-कहीं इस दिन सुबह सर्योदय से पहले सरगी खाने की भी परंपरा है। सरगी सुबह सवेरे खा ली जाती है। इसके बाद व्रत की कथा पढ़ी जाती है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस व्रत में श्रृंगार का भी बहुत महत्त्व है. Karwa Chauth in Hindi
करवा चौथ का पर्व Karwa Chauth खासतौर पर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्यप्रदेश में मनाया जाता है।
इस साल यानि 2020 में करवा चौथ व्रत की तिथि
इस साल यानि 2020 में करवाचौथ का त्यौहार4 नवंबर 2020 को मनाया जायेगा. सुहागन महिलाओं को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार रहता है और वो इसकी तैयारी काफी समय पहले से ही करनी शुरू कर देती हैं.
करवाचौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 4 नवंबर को सुबह 3 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है तथा अगले दिन यानी 5 नवंबर 2020 को सुबह 5 बजकर 14 मिनट पर इसका समापन होगा.
इस व्रत का प्रारंभ 4 नवंबर को शुबह 6 बजकर 35 मिनट से रात 8 बजकर 12 मिनट तक होगा. इस प्रकार इस बार महिलाओं को करवाचौथ का व्रत 13 घंटे 37 मिनट तक रखना होगा. उसके बाद ही चन्द्रमा का दर्शन –पूजन करके ही व्रत को विधि-विधान से समाप्त करना होगा. करवाचौथ के पूजन का शुभ मुहूर्त 4 नवंबर को शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. इसी दौरान आपको करवा चौथ की पूजा को विधि-विधान से करना चाहिए.
करवाचौथ के दिन चंद्रोदय का समय
करवाचौथ के दिनव्रत रखने वाली महिलायें चंदमा को जल चढाने के बाद अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके ही व्रत का समापन करती हैं. इसलिए इस व्रत में चंद्रमा का महत्त्व बढ़ जाता है. 4 नवंबर 2020 को चंद्रोदय का समय शाम को 08 बजकर 12 मिनट पर है.
करवा चौथ की पूजा विधि (Karwa Chauth Puja Vidhi)
यह व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है और चंद्र दर्शन के साथ ख़त्म होता है. इस व्रत में पूरे शिव परिवार- शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है. पूजा के वक्त पूर्व की और मुख करके बैठें. उसके बाद चंद्रमा का पूजन करें. अब पति को छलनी से देखें. इसके बाद पति के हाथ पानी पीकर व्रत का समापन करें.
करवा चौथ पर दिनभर व्रत रखा जाता है और रात में चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसके लिए पूजा-स्थल को खड़िया मिट्टी से सजाया जाता है और पार्वती की प्रतिमा की भी स्थापना की जाती है। करवा चौथ के अवसर पर पारंपरिक तौर पर पूजा की जाती है और करवा चौथ की कथा सुनाई जाती है। Karwa Chauth in Hindi
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करवा चौथ का व्रत चांद देखकर खोला जाता है, उस मौके पर पति भी साथ होता है। दीए जलाकर पूजा की शुरुआत की जाती है। करवा चौथ की पूजा में जल से भरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्हड़ यानी करवा, ऊपर दीपक पर रखी विशेष वस्तुएं, श्रंगार की सभी नई वस्तुएं जरूरी होती है। पूजा की थाली में रोली, चावल, धूप, दीप, फूल के साथ दूब अवश्य रहती है। शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को भी पाट पर दूब में बिठाते हैं। बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर भी सभी देवताओं को विराजित करने का विधान है। अब तो घरों में चांदी के शिव-पार्वती पूजा के लिए रख लिए जाते हैं। थाली को सजाकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति के हाथों से मीठा पानी पीकर दिन भर का व्रत खोला जाता है। उसके बाद परिवार सहित खाना होता है।
करवा चौथ के अवसर पर क्यों किया जाता है छलनी की ओट से चंद्रदर्शन
करवा चौथKarwa Chauth को लेकर मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें सीधे नहीं देखी जाती हैं, उसके मध्य किसी पात्र या छलनी द्वारा देखने की परंपरा है क्योंकि चंद्रमा की किरणें अपनी कलाओं में विशेष प्रभावी रहती हैं। जो लोक परंपरा में चंद्रमा के साथ पति-पत्नी के संबंध को उजास से भर देती हैं। चूंकि चंद्र के तुल्य ही पति को भी माना गया है, इसलिए चंद्रमा को देखने के बाद तुरंत उसी छलनी से पति को देखा जाता है। इसका एक और कारण बताया जाता है कि चंद्रमा को भी नजर न लगे और पति-पत्नी के संबंध में भी मधुरता बनी रहे।
करवा चौथ मनाने का कारण (Why Karwa Chauth is Celebrated)
करवा चौथ मनाने के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमे से एक महाभारत की कथा प्रमुख है. ऐसा माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल से ही हुई है। किंवदंती है कि द्रोपदी ने सर्वप्रथम करवा चौथ का व्रत किया था। यह बात कहां तक सच है इस बारे में कई मतभेद हैं। जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या कर रहे थे, तब 4 पांडवों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रोपदी ने यह बात श्रीकृष्ण को बताई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को करवा चौथ व्रत रखने की सलाह दी थी।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार एक अन्य कथा भी प्रचलित है जो इस प्रकार है:
कहा जाता है कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी, जो अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। इस तरह उसमें एर दिव्य शक्ति का वास हो गया था। एक दिन नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसके पति को पकड़ लिया।
करवा ने यम देवता का आह्वान कर मगरमच्छ को यमलोक भेजने व अपने पति को सुरक्षित वापिस करने को कहा और बोली कि यदि मेरे सुहाग को कुछ हुआ तो अपनी पतिव्रत शक्ति से यम देव व यमलोक नष्ट कर दूंगी. उस पतिव्रता नारी के कहे अनुसार यमदेव ने मगरमच्छ को मारकर यमलोक भेज दिया और उसके पति के प्राणों की रक्षा की. उसकी बाद उस पतिव्रता स्त्री के नाम पर इस व्रत का चलन हुआ और सुहागिन स्त्रियाँ अपने पतिओं की लम्बी उम्र के लिए ये व्रत रखने लगीं.
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