Jeevan yah maulik mahmani, जीवन यह मौलिक महमानी, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
जीवन, यह मौलिक महमानी!
खट्टा, मीठा, कटुक, केसला
कितने रस, कैसी गुण-खानी
हर अनुभूति अतृप्ति-दान में
बन जाती है आँधी-पानी
कितना दे देते हो दानी
जीवन की बैठक में, कितने
भरे इरादे दायें-बायें
तानें रुकती नहीं भले ही
मिन्नत करें कि सौहे खायें!
Jeevan yah maulik mahmani
रागों पर चढ़ता है पानी।।
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
ऊब उठें श्रम करते-करते
ऐसे प्रज्ञाहीन मिलेंगे
साँसों के लेते ऊबेंगे
ऐसे साहस-क्षीण मिलेगे
कैसी है यह पतित कहानी?
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
ऐसे भी हैं, श्रम के राही
जिन पर जग-छवि मँडराती है
ऊबें यहाँ मिटा करती हैं
बलियाँ हैं, आती-जाती हैं।
अगम अछूती श्रम की रानी!
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ
एक तुम हो | लड्डू ले लो | दीप से दीप जले |
मैं अपने से डरती हूँ सखि | कैदी और कोकिला | कुंज कुटीरे यमुना तीरे |
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे | सिपाही | वायु |
वरदान या अभिशाप? | बलि-पन्थी से | जवानी |
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उस प्रभात, तू बात न माने | ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा | मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक |
आज नयन के बँगले में | यह अमर निशानी किसकी है? | मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी |
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं |
क्या
आकाश उतर आया है
| कैसी है पहिचान तुम्हारी |
नयी-नयी कोपलें | ये प्रकाश ने फैलाये हैं | फुंकरण कर, रे समय के साँप |
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं | जाड़े की साँझ | समय के समर्थ अश्व |
मधुर! बादल, और बादल, और बादल | जीवन, यह मौलिक महमानी | उठ महान |
ये वृक्षों में उगे परिन्दे | बोल तो किसके लिए मैं | वेणु लो, गूँजे धरा |
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने | गाली में गरिमा घोल-घोल | प्यारे भारत देश |
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा |
किरनों
की शाला बन्द हो गई चुप-चुप
| गंगा की विदाई |
वर्षा ने आज विदाई ली | ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें |
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