Hindi Apathit Avtaran
Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल
अर्थ और उपयोगिता (Meaning & Usage in Hindi)
अपठित गद्य या पद्य (Hindi Apathit Avtaran) उस अंश को कहते हैं जो पहले से पढ़ा ना गया हो या जो निर्धारित पाठ्यक्रम से बाहर का हो। इससे संबंधित प्रश्न आरम्भिक कक्षाओं से लेकर लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं तक मे पूछे जाते हैं। इसका मुख्य कारण ये है कि परीक्षक इस प्रश्न के माध्यम से विद्यार्थी या प्रतियोगी की प्रतिभा और दूसरे के भाव तथा विचारों को अपने शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत करने की कला तथा क्षमता का मूल्यांकन करना चाहता है।
विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में थोड़ी सी सामग्री ही निर्धारित की जा सकती है लेकिन जीवन में विद्यार्थियों को ऐसी बहुत सारी समस्याएं और परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिसके संबंध में उनकी कोई तैयारी नहीं रहती अपठित गद्य और पद्य इसी तैयारी का पूर्वाभ्यास कराने के लिए परीक्षा में शामिल किया जाता है।
अपठित अवतरण को समझने के लिए महत्वपूर्ण तथ्य-बिंदु
अपठित गद्य और पद्य (Hindi Apathit Avtaran) के माध्यम से विद्यार्थी के सामान्य ज्ञान और स्वतंत्र अध्ययन की भी परख होती है अतः इन अंशों से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देना भी एक कला है। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने से पहले विद्यार्थियों को निम्नलिखित बातों की जानकारी होनी आवश्यक है:-
- पहले मूल अवतरण को कम से कम 3 से 4 बार पढ़ा जाना चाहिए।
- मूल अवतरण के प्रत्येक वाक्य में निहित भावों या विचारों को अलग से अपनी भाषा मे अंकित करते चलना चाहिए।
- अनावश्यक विस्तार, उदाहरण, विशेषण, विश्लेषण आदि को छोड़कर मूल मर्म को समझने का प्रयास करना चाहिए।
- ऐसे अंश में यदि कुछ ऐसे क्लिष्ट शब्द या पद हों , जिनका अर्थ या भावार्थ समझ मे नही आ रहा हो तो उनको छोड़कर मूल मर्म को ग्रहण करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
- यदि ऐसे शब्दों पदों अथवा रेखांकित वाक्यों की व्याख्या करने के लिए कहा गया है तो सारांश लिखने से पूर्व इस कार्य को कर लेना चाहिए। इस प्रकार के व्याख्यात्मक प्रश्नों के उत्तर पहले देने से “अवतरण का मूल मर्म अधिक स्पष्ट हो जाता है तथा उस का प्रसंग भी समझ में आ जाता है।
- प्रायः हर अपठित अंश का एक उपयुक्त शीर्षक देने के लिए भी कहा जाता है। अपठित पद्य या गद्य का शीर्षक उसी अंश के आदि मध्य या अंत में निहित रहता है जिसे किंचित प्रयत्न और समझ से खोजा जा सकता है। शीर्षक यथासंभव छोटा होना चाहिए तथा उसे प्रदत्त अंश की सप्रसंग विचारधारा का प्रतिनिधित्व भी करना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि प्रदत्त अंश का ही कोई शब्द या पद शीर्षक के रूप में प्रयोग किया जाए। यथासंभव अपनी ओर से अपने शब्दों में शीर्षक देने से बचा जाना चाहिए।
- अपठित अंश का दिया गया शीर्षक छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व बुद्धि और प्रतिभा को प्रदर्शित करता है अतः यह कार्य काफी सोच समझ कर करना चाहिए। इसके लिए यह अच्छा रहता है कि पहले तीन-चार उपयुक्त शीर्षक छांट कर अलग रख लो, उसके बाद प्रत्येक का विश्लेषण करो और उनमें से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव कर लो।
- कभी-कभी अपठित अंश के रूप में ऐसे अनुच्छेद भी दिए जाते हैं जिसका पूर्व पर कोई संबंध नहीं होता। इस स्थिति में पहले पृथक अनुच्छेदों के लिए अलग अलग शीर्षक चयन कर लेना चाहिए इसके बाद उन्हें किसी संयोजन शब्द से जोड़ देना चाहिए जैसे- युद्ध और शांति, पूर्व और पश्चिम आदि।
- अपठित अंश का मूल उद्देश्य सारांश प्रस्तुत करना होता है। इसके लिए हर वाक्य और अनुच्छेद का सारांश अलग से नोट करते चलना चाहिए फिर पूर्वापर संबंध जोड़ते हुए समस्त अंश का सारांश तैयार कर लेना चाहिए।
- सारांश मूल का एक तिहाई होना चाहिए यह उसकी शिल्पसंबंधी एक अनिवार्य शर्त है। इससे कम सारांश की सीमा में नहीं आता और अधिक भी सारांश नहीं कहा जा सकता।
- सारांश में मूल अंश की बातों का ही समावेश होना चाहिए उसमें अपनी ओर से कोई नई बात उदाहरण या व्याख्या नहीं जोड़ी जानी चाहिए।
- सारांश के प्रस्तुतीकरण की शैली अन्यपुरुष में रहती है। इसके लिए कभी आत्मचरित्र उद्धरण, कथोपकथन, समास, विश्लेषण प्रधान भाव या तरंग-प्रधान शैलियों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। समस शैली ही उसकी मूल प्रवृति के अधिक निकट है अतः उसी का प्रयोग किया जाना चाहिए। हास्य-व्यंग-प्रधान शैलियाँ भी सारांश में उपयुक्त नहीं मानी जाती है।
- सारांश की भाषा पूर्ण रूप से अपनी होनी चाहिए और मूल अंश की पदावली का उसमें कम से कम प्रयोग किया जाना चाहिए।
- अपठित अंश से संबंधित कभी-कभी कुछ प्रश्न भी किए जाते हैं जिनके उत्तर उसी में निहित होते हैं और उनको यदि ध्यान से पढ़ा जाए तो इस प्रकार के उत्तर देने में कोई कठिनाई नहीं होती। ऐसे उत्तर संक्षिप्त तथा मूल अवतरण से संबंधित होने चाहिए। उसमें अपनी ओर से कुछ भी जोड़ने घटाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
अपठित गद्यांश के प्रश्नों को हल करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
अपठित गद्यांश के प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- गद्यांश के भावार्थ यानी मूल भाव को उचित प्रकार से समझना चाहिए तथा प्रश्नों के उत्तर गद्यांश मैं ही ढूंढने चाहिए.
- गद्यांश में सूचनाओं के माध्यम से किसी बात का वर्णन किया जाता है उन सूचनाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
- शीर्षक के चयन के दौरान इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि वह गद्यांश के मूल भाव को प्रकट करता हो।
- लेखक के विचार को ध्यान में रखकर ही सर्वाधिक उचित विकल्प का चुनाव अपने उत्तर के रूप में करना चाहिए।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर गद्यांश के अनुरूप ही देना चाहिए। गद्यांश के बाहर के मिलते जुलते भावों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही विकल्प को एक बार फिर से पढ़ लेना चाहिए।
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