First Independence War India Hindi / भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम / India’s first independence war in Hindi
भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ. इसे अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम भारतीय विद्रोह, प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है. यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था जो दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला. इस विद्रोह की शुरुवात छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया.
लॉर्ड डलहौजी के बाद 1856 में लॉर्ड कैनिंग भारत में अंग्रेजों का अंतिम गवर्नर था तथा 1856 ई.तक गवर्नर जनरल ने अपनी विभिन्न नीतियों के कारण भारत पर विजय लगभग प्राप्त कर ली थी। भारत में विदेशी शासन छल-बल सैन्य बल तथा अर्थ बल पर टिका हुआ था। किंतु 1757 ई. में प्लासी युद्ध के समय से ही किसानों, कारीगरों, शिल्पकारों, राजाओं और सिपाहियों से अंग्रेजो के बीच विवाद उत्पन्न होने लगे.
इसके पूर्व भी समय-समय पर देश के विभिन्न भागों में निम्नलिखित विद्रोह हुए:
सन्यासियों एवं फकीरों द्वारा धार्मिक पुनरुत्थान के लिए बंगाल का विद्रोह।
सिपाहियों का विदेशी शासकों एवं विदेशी प्रशासन के विरुद्ध विद्रोह।
मध्यप्रदेश में भील बंगाल बिहार में संथालों, उड़ीसा में कोण कोण तथा मेघालय में खासी जनजातियों का अंग्रेजों ने शोषण के विरुद्ध विद्रोह।
लेकिन इन विद्रोहों के एकाकी होने के कारण तथा पारस्परिक समन्वय के अभाव के कारण अंग्रेजों द्वारा आसानी से इन का दमन कर दिया गया। इसके बावजूद अंग्रेजों की दमन नीति के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों का विद्रोह जारी रहा। और सन 1857 में व्यापक रूप से विद्रोह की योजना बनाई गई ।अंग्रेजो के खिलाफ इस प्रकार के विद्रोह को सन 1857 की क्रांति के नाम से जाना जाता है. इस जन असंतोष ने उत्तर तथा मध्य भारत में ब्रिटिश राज्य को कुछ समय के लिए लगभग समाप्त कर दिया था।
स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति
लगभग 150 वर्षों में अंग्रेज शासकों ने सभी भारतीय संस्थाओं में राजनीतिक धार्मिक सामाजिक न्यायिक दखल दिया। इससे भारत में प्रभुत्व वर्ग वालों को सीधे ठेस पहुंची और शासक एवं जनता के बीच संदेह का माहौल बन गया। First Independence War India Hindi
स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति के मुख्य कारण
स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति के निम्न कारण थे:
1- आर्थिक कारण
2- राजनीतिक कारण
3- सामाजिक और धार्मिक कारण
4- सैन्य कारण
1- आर्थिक कारण –
ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्ति भारतीय उपनिवेशों की अर्थव्यवस्था को अपनी अर्थव्यवस्था का पूरक बना रही थी अर्थात भारतीय उपनिवेश राज्य इंग्लैंड विदेशी साम्राज्य को आवश्यकतानुसार अपना कच्चा माल, कपास, नील इत्यादि देता था
अंग्रेज इस कच्चे माल से मशीनों द्वारा ज्यादा और सस्ता उत्पाद बनाकर हमारे देशवासियों को ऊंचे दामों पर बेचते थे
ऊंची दरों पर कर लेने के कारण भारतीय वस्त्र उद्योग निर्यात बहुत प्रभावित हुआ।
भारतीय शिल्प की दशा बिगड़ती गई अंग्रेजों ने इसके विकास के लिए बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।
अंग्रेज शासकों ने भारतीय कुटीर उद्योगों को तहस-नहस कर दिया इससे भारत के उद्योग की स्थिति शीघ्र क्षीण हो गई और भारतीय कारीगरों की दशा खराब होती गई।
अकाल एवं गरीबी के कारण किसानों विवश होते गए तथा बढ़ती हुई लगान वसूली के कारण किसान मरते गए।
सेना से हटाए गए सैनिक भी अंग्रेजों के शत्रु होते गए।
2- राजनीतिक कारण –
भारत का राजनीतिक सत्ता वास्तविक रूप से अंग्रेजों के हाथों में थी, फिर भी शासन दिल्ली के मुगल बादशाह के नाम पर चलता था। वह देश की एकता का प्रतीक था। अंग्रेजों ने तत्कालीन मुगल सम्राट बहादुरशाह ‘जफर’ के साथ अपमानजनक व्यवहार किया तथा 1835ई. में कंपनी के सिक्को से मुगल सम्राट का नाम हटा दिया गया।
लार्ड डलहौजी की विलय नीति के तहत देसी राज्य को ब्रिटिश राज्य में किसी न किसी बहाने मिलाया जाता था। इससे सभी देशी राज्य आतंकित हो गए। उनका अस्तित्व संकट में पड़ गया अंग्रेजी शासक एक पक्षीय निर्णय लेता था। इसी नीति के कारण सतारा, झांसी, नागपुर और दूसरे राज्य अंग्रेजों के कब्जे में आ गए। डलहौजी ने पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब की वार्षिक पेंशन भी बंद कर दी थी। जिससे नाना साहब तथा अन्य राज्य अंग्रेजों के कट्टर शत्रु हो गए।
डलहौजी ने कुशासन के कारण अवध को अपने साम्राज्य में मिलाने के बाद सिपाहियों को हटा तो दिया लेकिन वह कोई रोजगार नहीं दिया इससे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत हो गई।
इसके अलावा भारतीय शासन में उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकते थे. उनकी योग्यता का आदर नहीं होता था जिससे भारतीयों के बीच अविश्वास व असंतोष बढ़ता गया अंग्रेजों द्वारा लगाए गए तमाम तरह के बंधन और अपमान भारतीयों के लिए असहनीय हो गए थे। First Independence War India Hindi
3- सामाजिक और धार्मिक कारण –
अंग्रेज भारत की अशिक्षा, सामाजिक अनेकता तथा व्याप्त कुरीतियों के साथ-साथ आर्थिक पिछड़ेपन और भारत पर शासन का अधिकार स्थापित होने से भारतीयों को तुच्छ समझते थे।
सामान्य लोगों को पाश्चात्य शिक्षा दिलाना तथा भारतीयों को ईसाई बनाने की अंग्रेजों की चाल समझ आने लगी।
अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ की गई रेल और डाक व्यवस्था को भारतीयों ने अपने धर्म के खिलाफ तथा ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार की चाल समझने लगे।
सन 1850 में कंपनी ने एक कानून पास किया कि जो ईसाई हो जाएगा उसे उसके मृत संपत्ति का भागीदार बनाया जाएगा। इससे हिंदुओं ने अपना अपमान समझा।
ब्राह्मण तथा मौलवी पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार व प्रभाव के कारण अपनी पकड़ तथा प्रभाव को कम होने की आशंका समझने लगे।
4 – सैन्य कारण –
सेना में भारतीयों के साथ भेद-भाव किया जाता था। उन्हें ऊंचे पद पर नहीं रखा जाता था तथा उनके वेतन एवं सुविधाएं अंग्रेजी सैनिकों की अपेक्षाकृत बहुत कम होती थी।
अंग्रेजों ने नई राईफलों का प्रयोग किया जिनमें लगाए जाने वाले कारतूस में गाय एवं सूअर की चर्बी लगी होती थी। इससे हिंदू और मुस्लिम दोनों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने लगा इस बात से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी भड़कने लगी।
स्वतंत्रता संघर्ष की योजना –
देश में ऐसी अशांत परिस्थितियों को देखकर स्वतंत्रता संघर्ष की योजना का कार्य नाना साहब, तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा कुंवर सिंह आदि ने आरंभ किया। इस आंदोलन का अखिल भारतीय नेतृत्व करने के लिए बहादुर शाह जफर को चुना गया। दिल्ली, लखनऊ ,झांसी, मैसूर व अवध के नवाबों, राजाओं तथा जमींदारो से संपर्क किया गया।
मुगल सम्राट बहादुर शाह तथा उसकी बेगम जीनत महल, अवध के नवाब की बेगम हजरत महल तथा कुंवर सिंह आदि का संगठन बनाया गया। आंदोलनकारियों द्वारा ‘रोटी’ तथा ‘कमल के फूल’ को विद्रोह के संकेत का प्रतीक बनाया गया। संघर्ष की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई। First Independence War India Hindi
क्रांति की प्रमुख घटनाएं –
1- बैरकपुर – लॉर्ड कैनिंग ने चर्बीयुक्त कारतूस के प्रयोग से भारतीय सैनिकों के साथ धोखाधड़ी की. 29 मार्च सन 1857 को बंगाल छावनी के सिपाही मंगल पांडे ने कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया तथा खबर अपने आदमियों को भिजवा दी। जिसके परिणाम स्वरुप मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
2 – मेरठ – 9 मई की घटना के अनुसार 90 में से 85 सिपाहियों ने कारतूस में दांत लगाने से मना कर दिया। इस कारण इन सिपाहियों को 10 वर्ष की जेल की सख्त सजा दी गई तथा मेरठ की गलियों मे इन्हें हथकड़ी पहना कर घुमाया गया। अगली सुबह मेरठ वासियों ने जेल में धावा बोलकर उन्हें छुड़ा लिया तथा कई अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला।
3 – दिल्ली – इसके बाद हजारों सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच किया। वहां के लोग उनके साथ मिलकर लाल किले पहुंचे वहां पहुंचकर बहादुर शाह द्वितीय को भारत का शासक घोषित कर दिया लेकिन 4 माह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार जमा लिया। बहादुरशाह द्वितीय की 1862 में रंगून (यंगून ) में मृत्यु हो गई. यह घटना मध्यभारत तथा रूहेलखंड में आग की तरह फैल गई। इसके कारण बरेली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी तथा झांसी के सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिए।
4 -कानपुर – नाना साहब कानपुर में पेशवा घोषित कर दिए गए। अजीम उल्ला खां नाना साहब का सहयोगी था। नाना साहब ने अंग्रेजों की सारी फौज को कानपुर से खदेड़ दिया। नाना साहब ने आत्मसमर्पण करने वाले सिपाहियों को छोड़ दिया। इन अंग्रेज सिपाहियों को नाव द्वारा नाना साहब सुरक्षित इलाहाबाद भेज रहे थे किंतु जैसे ही ये लोग नाव पर बैठे वैसे ही नाना साहब के आदमियों ने उन पर आक्रमण करके महिलाओं और बच्चों को छोड़कर सभी को मार डाला। इसके बाद अंग्रेज जनरल हैवलॉक ने कानपुर पर कब्ज़ा करके नाना साहब को नेपाल भेज दिया। नाना साहब के बाद जनरल तात्या टोपे ने कानपुर की कमान संभाली, किंतु उनके आदमी ने उनके साथ विश्वासघात किया जिसके कारण 1859 में तात्या टोपे को फांसी दे दी गई।
5 – लखनऊ – अवध की राजधानी लखनऊ की क्रांति की बागडोर वाजिद अलीशाह की बेगम हजरत महल ने संभाली. क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी का घेराव कर लिया अंत में अंग्रेजों का लखनऊ पर अधिकार हो गया।बाद में बेगम हजरत महल नेपाल चली गई।
6 – मध्य भारत – झांसी में रानी लक्ष्मी बाई सर ह्यूरोज की सेना के साथ बहादुरी से लडी किंतु झांसी पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। कालपी में रानी तात्या टोपे से मिल गई। उन्होंने एक साथ ग्वालियर के सिंधिया पर आक्रमण करकेे किले पर अधिकार कर लिया। लेकिन बाद में सर ह्यूरोज ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई बहादुरी से लड़ते-लड़ते मारी गयी।
7 – मध्यप्रदेश – रामगढ़ की रानी अवंती बाई ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया। परंतु अंग्रेजों ने इस स्वतंत्रता संघर्ष को दबा दिया।
8 – बिहार – बिहार के स्थानीय जमींदार कुँवर सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा था। इस प्रकार यह महान संघर्ष 1857 में आरंभ हुआ परंतु 1858 में इसका अंग्रेजों द्वारा दमन कर दिया गया।
1857 की क्रांति की असफलता के कारण –
इस क्रांति में भारतीयों ने बड़ी वीरता से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी परंतु वो जितना चाहते थे उतना सफलता नहीं मिली। इसके मुख्य कारण निम्न थे:
इस संग्राम की असफलता का मुख्य कारण भारतीयों में एकता का अभाव होना था कुछ प्रांतों के शासकों ने तो अपने राज्य की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों का साथ दिया। प्रमुख रियासतों के राजाओं का सहयोग न मिलना भी असफलता का प्रमुख कारण था। यदि इंदौर, ग्वालियर और हैदराबाद के नरेश क्रांतिकारियों का साथ देते तो शायद स्थिति कुछ और ही होती।
क्रान्ति में योग्य एवं कुशल नेतृत्व का अभाव था। बहादुरशाह विद्रोह के समय लगभग 80 वर्ष के थे। प्रत्येक क्रांतिकारी नेता ने अपने ढंग से क्रांति का संचालन किया।
अंग्रेजों ने सिख फौज की मदद से 1857 की क्रांति को दबाया।
भारतीयों की तुलना में अंग्रेज सैनिकों के पास अच्छे किस्म के हथियार थे। अंग्रेजी सेना ने नई रायफल का प्रयोग बड़े अच्छे ढंग से किया जबकि भारतीय सैनिकों के पास गोला-बारूद की भी कमी थी।
1857 की क्रांति के परिणाम –
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने एक युग का अंत कर दिया और एक नवीन युग के बीज बोए। प्रादेशिक विस्तार के स्थान पर आर्थिक शोषण का युग प्रारंभ हुआ।
सन 57 के विद्रोह का यद्यपि पूर्णतया दमन हो गया फिर भी इसने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य को जड़ से हिला दिया था। दुबारा सन 57 जैसी घटना न हो तथा ब्रिटिश शासन को व्यवस्थित एवं सुदृढ़ करने के लिए महारानी विक्टोरिया ने 1858 के अपने घोषणापत्र में कुछ महत्वपूर्ण नीतियों का उल्लेख किया। इस घोषणा में दोहरा नियंत्रण समाप्त हो गया और ब्रिटिश सरकार की सीधे भारतीय मामलों के लिए उत्तरदाई हो गए। इस क्रांति ने भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का संचार किया और उन्हें अपनी मातृभूमि को विदेशी शासकों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेरित किया। First Independence War India Hindi
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