Famous Kajari Geet, कजरी या ‘कजली’ महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से गाया जाने वाला लोकगीत है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कजरी लोकगायन की वह शैली है जिसमें परदेस कमाने गए पुरुषों की अकेली रह गईं स्त्रियां अपनी विरह-वेदना और अकेलेपन का दर्द व्यक्त करती हैं।
नवविवाहिताएं कजरी के माध्यम से मायके में छूट गए रिश्तों की उपेक्षा की वेदना प्रकट करती हैं। स्त्रियों द्वारा समूह में गाए जाने वाली कजरी को ढुनमुनिया कजरी कहते है। विंध्य क्षेत्र में गाई जाने वाली मिर्जापुरी कजरी में सखी-सहेलियों, भाभी-ननद के आपसी रिश्तों की मिठास और खटास के साथ सावन की मस्ती का रंग घुला होता है। महिलाओं द्वारा समूह में प्रस्तुत की जाने वाली कजरी को ‘ढुनमुनियाँ कजरी‘ कहा जाता है। भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया को सम्पूर्ण पूर्वांचल में ‘कजरी तीज’ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ व्रत करतीं हैं। शक्ति स्वरूपा माँ विंध्यवासिनी ककी पूजा अर्चना करती हैं और ‘रतजगा’ करते हुए कजरी गायन करती हैं। Famous Kajari Geet
ऐसे आयोजन में पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। यद्यपि पुरुष वर्ग भी कजरी गायन करता है, किन्तु उनके आयोजन अलग होते हैं।
कजरी तीज का त्यौहार और पूजा विधि
कजरी गीत का इतिहास (Kajari geet ka Itihas)
बदलते समय के साथ लोक संगीत के दूसरे प्रारूपों में तो बहुत बदलाव आए, लेकिन कजरी जस की तस रही। कजरी गीत का एक प्राचीन उदाहरण तेरहवीं शताब्दी के बड़े सूफी शायर अमीर ख़ुसरो की बहुप्रचलित रचना है- ‘अम्मा मेरे बाबा को भेजो जी कि सावन आया।’ अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर की एक रचना ‘झूला किन डारो रे अमरैया’ भी बेहद प्रचलित है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ब्रज और भोजपुरी के अलावा संस्कृत में भी कुछ कजरी गीतों की रचना की है। लगभग सभी शास्त्रीय गायकों और वादकों ने कजरी की पीड़ा को सुर दिए हैं। गिरिजादेवी की आवाज़ और बिस्मिल्लाह खां की शहनाई में कजरी की वेदना शिद्दत से महसूस होती है।
भोजपुरी लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी और शारदा सिन्हा के गाए कजरी गीत हमारी अनमोल धरोहर हैं। हिंदी और भोजपुरी सिनेमा में भी कजरी गीतों का खूब प्रयोग हुआ है, लेकिन ज्यादातर कजरी गीतों में कजरी की आत्मा कहीं नहीं नज़र आती।
सचिनदेव वर्मन के संगीत में गीतकार शैलेन्द्र का लिखा फिल्म ‘बंदिनी’ का यह कजरी गीत आज भी हिंदी सिनेमा के कजरी गीतों में मील का पत्थर बना हुआ है.
Famous Kajari Geet
अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल
सावन में लीजो बुलाए रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां
दीजो संदेशा भिजाए रे।
अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आंगन में बाबुल
सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा
बचपन की जब याद आए रे। ..
बैरन जवानी ने छीने खिलौने
और मेरी गुड़िया चुराई
बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली
फिर क्यों हुई मैं पराई
बीते रे जुग कोई चिठिया न पाती
ना कोई नैहर से आए रे।
कुछ प्रसिद्द कजरी गीत (Famous Kajari Geet)
1. देखो सावन में हिंडोला झूलैं
देखो सावन में हिंडोला झूलैं मन्दिर में गोपाल।
राधा जी तहाँ पास बिराजैं ठाड़ी बृज की बाल।।
सोना रूपा बना हिंडोला, पलना लाल निहार।
जंगाली रंग, सजा हिंडोला, हरियाली गुलज़ार।।
भीड़ भई है भारी, दौड़े आवैं, नर और नार।
सीस महल का अजब हिंडोला, शोभा का नहीं पार ।।
फूल काँच मेहराब जु लागी पत्तन बांधी डार।
रसिक किशोरी कहै सब दरसन करते ख़ूब बहार।।
2. छैला छाय रहे मधुबन में
छैला छाय रहे मधुबन में सावन सुरत बिसारे मोर।
मोर शोर बरजोर मचावै, देखि घटा घनघोर।।
कोकिल शुक सारिका पपीहा, दादुर धुनि चहुंओर।
झूलत ललिता लता तरु पर, पवन चलत झकझोर।।
ताखि निकुंज सुनो सुधि आवै श्याम संवलिया तोर।
विरह विकल बलदेव रैन दिन बिनु चितये चितचोर।।
3. आई सावन की बहार
छाई घटा घनघोर बन में, बोलन लागे मोर।
रिमझिम पनियां बरसै जोर मोरे प्यारे बलमू।।
धानी चद्दर सिंआव, सारी सबज रंगाव।
वामें गोटवा टकाव, मोरे बारे बलमू।।
मैं तो जइहों कुंजधाम, सुनो कजरी ललाम।
जहाँ झूले राधे-श्याम, मोरे बारे बलमू।।
बलदेव क्यों उदास पुनि अइहौ तोरे पास।
मानो मोरा विसवास, मोरे बारे बलमू।।
4. हरि संग डारि-डारि गलबहियाँ
हरि संग डारि-डारि गल बहियाँ झूलत बरसाने की नारि।
प्रेमानन्द मगन मतवारी सुधि बुधि सकल बिसारि।।
करि आलिंग प्रेमरस भीजत अंचल अलक उघारि।
टूटे बोल हिंडोल उठावति रुकि-रुकि अंग संवारि।।
श्रीधर ललित जुगल छबि ऊपर डारत तन-मन वारि।
हरि संग डाल-डाल गलबहियाँ, झूलत बरसाने की नारि।।
5. हरि बिन जियरा मोरा तरसे
हरि बिन जियरा मोरा तरसे, सावन बरसै घना घोर।
रूम झूम नभ बादर आए, चहुँ दिसी बोले मोर।
रैन अंधेरी रिमझिम बरसै, डरपै जियरा मोर।।
बैठ रैन बिहाय सोच में, तड़प तड़प हो भोर।
पावस बीत्यौ जात, श्याम अब आओ भवन बहोर।।
आओ श्याम उर सोच मिटाऔ, लागौं पैयां तोर।
हरिजन हरिहिं मनाय ‘हरिचन्द’ विनय करत कर जोर।।
6. झूला झूलन हम लागी हो रामा
झूला झूलन हम लागी हो रामा, मिल गए साजनवा।
आज तलक हम किन्हीं न बतियाँ, साजन देखे घर की छतियाँ,
नैना से नैना मिलाए न रामा, मिल गए साजनवा।
एक सखि मोरे ढिंग आई, आँख दिखा मोहे बात सुनाई
ऎसी क्यूं रूठी साजन से, फिर गए साजनवा।
मैं बोली सखि लाज की मारी, गोरी हँसती दे-दे तारी,
कैसी करूँ अब जतन बताय सखि, मिल जायें साजनवा।
7. अजहू न आयल तोहार छोटी ननदी
अजहू न आयल तोहार छोटी ननदी
बरसत सावन तरसत बीता, कजरी के आइन बहार । छोटी ननदी०।।
सब सखि झूला झूलन सावन मां गावत कजरी मलार । छोटी ननदी०।।
पी-पी रटत पपीहा नाचत, मोर किए किलकार । छोटी ननदी०।।
प्रिया प्रेमघन बिन एको छन लागैना जियरा हमार । छोटी ननदी०।।
8. तरसत जियरा हमार नैहर में
तरसत जियरा हमार नैहर में ।
बाबा हठ कीनॊ, गवनवा न दीनो
बीत गइली बरखा बहार नैहर में ।
फट गई चुन्दरी, मसक गई अंगिया
टूट गइल मोतिया के हार, नैहर में ।
कहत छ्बीले पिया घर नाही
नाही भावत जिया सिंगार, नैहर में ।
बहुत सुंदर कजरी
धन्यवाद संगीता जी