Development of Creative Abilities (छात्रों में सृजनात्मक क्षमता का विकास)

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Development of Creative Abilities

Development of Creative Abilities / How to enhance creative ability in students / छात्रों में सृजनात्मक क्षमता का विकास

वर्तमान समय में सर्वांगीण विकास के लिए छात्रों में सृजनात्मक चिंतन के विकास की प्रमुख रूप से आवश्यकता है। सृजनात्मक चिंतन, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए सबसे आवश्यक है। हाथों में सृजनात्मक चिंतन को विकसित करने के लिए संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक संशोधन करना आवश्यक है।

छात्रों में सृजनात्मक चिंतन के विकास के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-

पाठ्यक्रम संबंधी उपाय (Curriculum related measures)

छात्रों में सृजनात्मक चिंतन का विकास करने के लिए पाठ्यक्रम का स्वरूप सृजनात्मक गतिविधिओं और विचारों से परिपूर्ण होना चाहिए जिससे छात्र उस पाठ्यक्रम के आधार पर प्रत्येक विषय एवं तथ्यों पर सोचने के लिए प्रेरणा प्राप्त कर सकें।

Development of Creative Abilities

प्रत्येक पाठ के अंत में छात्रों को शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए तथा यह शिक्षा चिंतन एवं मनन से संबंधित होनी चाहिए। पाठ्यक्रम द्वारा छात्रों को इस प्रकार की गतिविधियों को करने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए जो कि चिंतन एवं तर्क से संबंधित हो तथा जो छात्रों को विविध प्रकार से सोचने के अवसर उपलब्ध कराए। इसमें विचारकों, वैज्ञानिकों और चिंतकों से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं एवं प्रसंगों को सम्मिलित करना चाहिए।

सृजनात्मक शिक्षकों की व्यवस्था (Arrangement of Creative teachers)

शिक्षकों को अपनी शिक्षण तकनीक में परिवर्तन करना चाहिए तथा छात्रों को सृजनात्मक कार्यों में सहयोग देना चाहिए। छात्रों के समक्ष छोटी-छोटी समस्याओं का प्रस्तुतीकरण करना चाहिए जिससे छात्र उसके समाधान के लिए सृजनात्मक तथ्यों की व्यवस्था कर सकें।

उदाहरण के लिए– छात्रों के समक्ष भाप के इंजन का चित्र रख दिया जाये और इसके बाद छात्रों के समक्ष दो या तीन प्रश्न प्रस्तुत किए जाएं जैसे भाप का इंजन किसने बनाया? इसकी प्रेरणा उसको किस प्रकार मिली? इस प्रकार छात्र इस पर विचार विमर्श करेंगे तथा अपने पाठ्य पुस्तक में से उस पाठ को खोजेंगे। इससे छात्रों को यह शिक्षा मिलेगी कि जिस प्रकार जेम्सवॉट प्रत्येक घटना को तार्किक रूप से सोचता था उसी प्रकार इनको भी प्रत्येक घटना को तार्किक रूप से सोचना चाहिए।

इस प्रकार के शिक्षण के लिए शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जिससे की वे छात्रों के सृजनात्मक चिंतन के विकास में योगदान दे सकें।

खेल संबंधी गतिविधियां (Game related activities)

छात्रों को खेल खेलना बहुत ही अच्छा लगता है। यदि छात्रों से विभिन्न खेलों के बारे में बातचीत की जाए तो उनके विचारों एवं कार्यों में तीव्रता आ जाती है उनका शरीर एवं मस्तिष्क दोनों ही तेजी से चलने लगते हैं।

उदाहरण के लिए- यदि शिक्षक छात्रों के समक्ष गोल शब्द का प्रयोग करता है और उनसे कुछ प्रश्न पूछता है जैसे गोल शब्द किन किन खेलों से संबंधित है?, गोल की प्रक्रिया किस प्रकार संपन्न होती है?, गोल अधिक करने के क्या परिणाम होते हैं?

इस प्रकार के प्रश्नों के आधार पर छात्रों को हॉकी एवं फुटबॉल आदि खेलों के बारे में विचार करने का अवसर मिलेगा तथा दूसरे खेलों के बारे में छात्र सामान्य एवं रुचिपूर्ण ढंग से ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।

रहस्यपूर्ण गतिविधियां (Mysterious activities)

छात्रों को कक्षा में विविध गतिविधियों को संपन्न करने की प्रेरणा देनी चाहिए। कक्षा में शिक्षक द्वारा एक संदूक में से बहुत सी वस्तुओं को भर दिया जाए इसके बाद प्रत्येक छात्र को एक बस वस्तु लेने के लिए कहा जाए। कौन से छात्र को कौन सी वस्तु मिलेगी यह पता नहीं होना चाहिए। इसके बाद छात्रों को चित्र, खिलौना, एवं मॉडल देखने को मिलते हैं। प्रत्येक छात्र से उस चित्र खिलौने या मॉडल के संदर्भ में अनेक प्रश्न पूछे जा सकते हैं जैसे आप इसमें क्या जोड़ना चाहते हैं?, आप इस चित्र मॉडल में से किस भाग को हटाना चाहते हैं?, आप इस चित्र मॉडल में क्या परिवर्तन कर सकते हैं?, यह चित्र आपको क्यों अच्छा लग रहा है?, या यह चित्र आपको क्यों अच्छा नहीं लग रहा है? इस प्रकार के प्रश्नों के माध्यम से छात्र विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा सृजनात्मक चिंतन के आधार पर इसके वर्णन का प्रयास कर सकते हैं। इससे छात्रों की सृजनात्मक क्षमता में भी तीव्र गति से वृद्धि होती है। Development of Creative Abilities

सामूहिक कार्य (Group work)  

कक्षा में सामूहिक कार्य करने से सृजनात्मक चिंतन में वृद्धि होती है क्योंकि किसी भी कार्य को छात्र सामूहिक विचार विमर्श के बाद ही उचित रूप से संपन्न कर पाते हैं। प्रोजेक्ट कार्य छात्रों को सम्मिलित रूप से दिया जाता है। इस कार्य में छात्र पृथक-पृथक रूप से सूचनाओं तथा तथ्यों का संकलन करते हैं और अंत में एक निश्चित विचार पर पहुंचते हैं। इस कार्य से छात्रों में कार्य करने के कौशल तथा तार्किक चिंतन का विकास होता है इससे छात्रों के ज्ञान का विस्तार भी संभव होता है।

कला संबंधी खेल (Drawing related games)

छात्रों को विभिन्न प्रकार की कलाओं और चित्र बनाने में भी बहुत रुचि होती है। इस आधार पर छात्रों के मानसिक विचार कौशल एवं सृजनात्मक चिंतन के स्तर को जाना जा सकता है तथा उसमें अपेक्षित सुधार किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित गतिविधियां शिक्षक को संपन्न करानी चाहिए।

1. शिक्षक छात्रों के सामने छोटी सी टेढ़ी-मेढ़ी या सीधी रेखा खींच दे तथा छात्रों को इसे पूर्ण चित्र बनाने के लिए या इसमें कुछ जोड़ने के लिए कहे। बाद में छात्रों से यह पूछा जाना चाहिए कि इसमें आपने क्या जोड़ा? क्यों जोड़ा? तथा इससे कौन सी आकृति का निर्माण हुआ? इत्यादि। इस विधि का प्रयोग करके छात्रों को गणित भी आसानी से सिखाया जा सकता है।

2. छात्रों के समक्ष श्यामपट्ट पर एक आकृति का निर्माण किया जाना चाहिए तथा इस आकृति के संदर्भ में छात्रों से 5 लाइन लिखने के लिए कहा जाना चाहिए. इसके बाद छात्रों से उस आकृति में कुछ जोड़ने के लिए या कुछ घटाने के लिए कहां जाना चाहिए. बालक ऐसा क्यों कर रहे हैं?, इसके बारे में भी पूछा जाना चाहिए। इससे उनके विचार एवं चिंतन के स्तर का ज्ञान हो सकता है। Development of Creative Abilities

3. छात्रों के समक्ष विभिन्न प्रकार के वृत्त बनाकर उनसे पूछा जाना चाहिए कि गोल आकृति की किन किन वस्तुओं को जानते हैं? उसके बारे में 5 लाइन लिखने के लिए दिया जाना चाहिए। किसी पैटर्न के छोटे-छोटे टुकड़ों की सहायता से एक आकृति का निर्माण करने के लिए छात्रों को कहना चाहिए इससे छात्रों की सृजनात्मक चिंतन का विकास होगा।   

सृजनात्मक चिंतन के विकास हेतु शिक्षण व्यूह रचनाएं (Teaching Strategies for Development of Creative Thinking)

सृजनात्मक चिंतन का विकास करने के लिए शिक्षण व्यूह रचनाओं का प्रयोग करना अति आवश्यक है। इसके आधार पर ही छात्र विविध विषयों पर सृजनात्मक चिंतन करने के लिए प्रेरणा प्राप्त करता है। सृजनात्मक चिंतन के विकास हेतु शिक्षक को निम्नलिखित व्यूह रचनाओं का प्रयोग करना चाहिए।

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1. कल्पनाओं का उपयोग (Use of imagination)

छात्रों के समक्ष विभिन्न प्रकार की कल्पना संबंधी प्रयोग करने चाहिए। छात्रों के समक्ष अनेक प्रकार के काल्पनिक प्रकरण रखे जाने चाहिए तथा उन पर उनके विचार जानने के प्रयास किए जाने चाहिए। जैसे कल्पना कीजिए कि आप प्रधानमंत्री होते या गांव के प्रधान होते तो आप क्या करते इत्यादि। इस प्रकार अनेक प्रकरणों के माध्यम से छात्रों के सृजनात्मक चिंतन में वृद्धि की जा सकती है। विद्यालय भवन का स्वरूप कैसा होना चाहिए?, इसके आधार पर बालकों से चित्र बनवाएँ। विद्यालय के उद्यान में कौन-कौन से वृक्ष एवं पुष्प होने चाहिए और क्यों होने चाहिए? इस प्रकार की कलात्मक बातों के बारे में कल्पना करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

2. अधिक विचार उत्पन्न करना (Generate more ideas)

छात्रों के समक्ष ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जानी चाहिए जिससे छात्र अधिक से अधिक सृजनात्मक चिंतन करने के लिए प्रेरित हो सकें। जैसे भारतीय परिस्थितियों के अनुसार कौन-कौन से खेल ज्यादा उपयुक्त हैं और क्यों? भारत के विद्यालयों में कौन-कौन सी आधारभूत सुविधाएं होनी चाहिए और क्यों? इस प्रकार के अनेक प्रश्न हमारे मन में अनेक विचार उत्पन्न करते हैं छात्रों के समक्ष ऐसे प्रश्न एवं परिस्थितियां सृजनात्मक चिंतन करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

3. वैकल्पिक प्रयोग (Alternative experiments)

छात्रों द्वारा किसी कार्य को करने की एक विधि के अतिरिक्त अन्य विधियों को भी सिखाना चाहिए जिससे उनमें अधिकतम विचारों का सर्जन हो सके। जैसे मिट्टी के खिलौने बनाने के लिए क्या-क्या सामग्री आवश्यक होनी चाहिए?, मिट्टी के खिलौने कैसे बनाए जाते हैं?, किसी गणित के प्रश्न को आप कैसे और कितनी विधियों से हल कर सकते हैं?, पौधे लगाने की कौन-कौन सी विधियां हो सकती हैं?, परीक्षा में सफलता के पांच उपाय बताइए?, अपने लिखित प्रस्तुतीकरण को प्रभावी बनाने के लिए 4 उपाय बताइए?, इस प्रकार के अनेक कार्य छात्रों में सृजनात्मक चिंतन का विकास तीव्रता से करते हैं।

4. ज्ञान एवं क्रियाओं के मध्य समन्वय (Coordination Between Knowledge and Activities)

ज्ञान एवं क्रियाओं के मध्य समन्वय की स्थिति ही नवीन विचारों को जन्म देती है। इसलिए शिक्षक को छात्रों को विभिन्न कार्यों में संलग्न करके उनके ज्ञान और विचारों का उपयोग करना चाहिए तथा सृजनात्मक चिंतन का विकास करना चाहिए।

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जैसे छात्रों के समक्ष विभिन्न प्रकार के वाक्य, मुहावरे, लोकोक्ति, कहानी, एवं चित्र प्रस्तुत किए जाएं तथा उनमें कुछ ना कुछ जोड़ने के लिए कहा जाए जो कि सार्थक हो।

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छात्रों से प्रस्तुत सामग्री में कुछ परिवर्तन करने के लिए कहा जाए जिससे सामग्री को रोचक एवं अलग बनाए जा सके। विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए एक से अधिक विधियां खोजने के लिए भी छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।

5. निर्णयों का मूल्यांकन (Evaluation of judgment)

शिक्षक को यह प्रयास करना चाहिए कि छात्र द्वारा जो भी प्रयास करके किसी विषय के संदर्भ में निर्णय लिए गए हैं, वे पूर्णतः प्रासंगिक हैं या नहीं क्योंकि छात्रों की सृजनात्मकता की स्थिति उसके द्वारा निर्धारित एवं प्रस्तुत नियमों एवं सिद्धांतों में ही प्रकट होती हैं। इसके साथ-साथ छात्रों को इस तथ्य के बारे में भी सिखाना चाहिए कि वह निर्णय प्रस्तुत करने से पूर्व उस एक बार पुनर्विचार अवश्य करें। सर्वप्रथम निर्णय के लिए उपयुक्त विचारों, नियमों एवं विधियों पर विचार करना चाहिए। दूसरा इस पर विचार करना चाहिए कि इन विधियों, नियमों, आदि में किस सीमा तक सुधार की संभावना है और तीसरा इसकी वर्तमान परिस्थितियों में प्रासंगिकता क्या है? है भी या नहीं? इस प्रकार निर्णय का मूल्यांकन करने से सृजनात्मक चिंतन का विकास होता है।

समाजोपयोगी कार्य (Social useful work)

शिक्षकों द्वारा छात्रों को समाजोपयोगी कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करने से भी सृजनात्मक चिंतन में वृद्धि होती है। जैसे समाज में स्वच्छता संबंधी कार्यों का उत्तरदायित्व छात्रों को समूह बनाकर सौंप दिए जाएं तो छात्र अपने दायित्व के प्रभावी निर्वहन के लिए ग्रामीणों को स्वच्छता की नवीन विधियों को समझाने का प्रयास करते हैं तथा जीवन में स्वच्छता के महत्व को भी समझाते हैं।

इससे छात्रों के सृजनात्मक चिंतन का विकास होता है क्योंकि प्रत्येक स्वच्छता संबंधी योजना, विचार एवं क्रिया के माध्यम से ही सफल होते हैं।

वाद विवाद प्रतियोगिता (Discussion competition)

छात्रों को विभिन्न प्रकार के विषयों पर चर्चा करने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए। यह चर्चा बालसभा या किसी प्रतियोगिता के माध्यम से संपन्न की जा सकती है। इसमें छात्रों को पर्यावरण एवं ज्वलंत शैक्षिक चुनौतियों से संबंधित विषय प्रदान किए जाने चाहिए जिससे छात्रों को इस विषय पर विचार विमर्श करने में रुचि उत्पन्न  हो।

इस प्रकार की परिचर्चा से छात्रों की वैचारिक क्षमता में वृद्धि होती है तथा छात्र अपके ज्ञान वृद्धि के लिए भी नवीन विषय से संबंधित साहित्य का अध्ययन करने के लिए प्रेरित होते हैं।

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प्रदर्शनी (Exhibition)

शिक्षकों द्वारा विद्यालय में समय समय पर विज्ञान, पर्यावरण और इतिहास विषय से सम्बंधित प्रदर्शनी का आयोजन करवाना चाहिए. इससे छात्रों को अपनी रूचि एवं योग्यता के आधार पर विषय से सम्बंधित चित्र एवं उसके बारे में सामान्य जानकारी लिखकर प्रदर्शनी में प्रदर्शित करने का मौक़ा मिलता है. इससे छात्रों में एक ओर चित्रों के निर्माण करने में विविध हस्त कौशलों का विकास होता है वहीँ दूसरी ओर छात्रों की वैचारिक शक्ति का विकास होता है.

इस प्रकार हम देखते हैं कि उपरोक्त गतिविधियों एवं प्रयासों से छात्रों में सृजनात्मक चिंतन का विकास संभव होगा तथा इसका प्रयोग वे अपने जीवन में प्रत्येक परिस्थिति एवं घटना में कर सकेंगे।
छात्र किसी भी घटना या सिद्धांत को मूक दर्शक बनकर स्वीकार नहीं करते हैं वरन उस पर तर्कपूर्ण विचार करके ही उसको स्वीकार करते हैं। इससे एक ओर समाज की कुरीतियों एवं रूढ़िवादिता का समापन होगा वहीं दूसरी ओर स्वस्थ परंपरा का विकास भी संभव होगा।

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