Deepak ab rajni Kavita, दीपक अब रजनी जाती रे, महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) द्वारा लिखित कविता है.
दीपक अब रजनी जाती रे
जिनके पाषाणी शापों के
तूने जल जल बंध गलाए
रंगों की मूठें तारों के
खील वारती आज दिशाएँ
तेरी खोई साँस विभा बन
भू से नभ तक लहराती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
Deepak ab rajni Kavita
लौ की कोमल दीप्त अनी से
तम की एक अरूप शिला पर
तू ने दिन के रूप गढ़े शत
ज्वाला की रेखा अंकित कर
अपनी कृति में आज
अमरता पाने की बेला आती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
धरती ने हर कण सौंपा
उच्छवास शून्य विस्तार गगन में
न्यास रहे आकार धरोहर
स्पंदन की सौंपी जीवन रे
अंगारों के तीर्थ स्वर्ण कर
लौटा दे सबकी थाती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
इसे भी पढ़ें: महादेवी वर्मा का सम्पूर्ण जीवन परिचय
महादेवी वर्मा की कुछ प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायें
निम्नलिखित कवितायेँ महादेवी वर्मा की प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायेँ हैं.
Leave a Reply