Chhand in hindi
छंद किसे कहते हैं? (What is Chhand in Hindi)
छन्द वास्तव में छन्दस शब्द से बना है जिसका दो अर्थ होता है- आच्छादन और आह्लादन
छंद के द्वारा भाव अथवा रस को आच्छादित किया जाता है। इसके द्वारा पाठकों का आह्लादन होता है। प्रसिद्ध आचार्य पिंगल को छंद शास्त्र का प्रथम प्रणेता माना जाता है। उन्होंने लगभग 300 ईसा पूर्व में छन्द:सूत्रम नामक ग्रंथ की रचना की थी।
छन्द की परिभाषा (Definition of Chhand in Hindi)
“अक्षरों की संख्या और क्रम, मात्रा गणना और यति, गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना को छंद की संज्ञा दी गई है।“
छंद का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद के दशम मंडल के अंतर्गत पुरुष सूक्त में किया गया है। छंद को पद्य विधा का मानक कहा जाता है क्योंकि इसी के अनुसार ही पद्य का सृजन होता है। यही कारण है कि पद्यात्मक कृति का समुचित ज्ञान प्राप्त करने के लिए छंद शास्त्र का अध्ययन बहुत जरूरी है। Chhand in hindi
छंद के अंग (Parts of Chhand in Hindi)
छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं –
- पाद अथवा चरण
- मात्रा और वर्ण
- संख्या और क्रम
- लघु और गुरु
- गण
- यति
- गति
- तुक
अलंकार – अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण
पाद अथवा चरण (Pad/ Charan in Chhand)
आचार्य पिंगल के छंद:सूत्रम के अनुसार पाद का अर्थ छंद का चतुर्थ भाग माना गया है। छंद में प्रायः चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण या पाद में वर्गो अथवा मात्राओं की संख्या क्रमानुसार रहती है।
पाद या चरण दो प्रकार के होते हैं-
सम चरण: द्वितीय और चतुर्थ चरण को सम चरण कहा जाता है
विषम चरण: प्रथम और तृतीय चरण को विषम चरण कहा जाता है।
वर्ण (Varn in Chhand)
वर्ण को ही अक्षर कहते हैं। इस के दो भेद होते हैं- ह्रस्व और दीर्घ
छंद शास्त्र में इनको क्रमशः लघु और गुरु कहते हैं।
ह्रस्व वर्ण (Hrasw varn): जिन वर्णों के उच्चारण में थोड़ा समय लगे उनको ह्रस्व वर्ण कहते हैं।
जैसे: अ, इ, उ, ए, ऋ, आदि
इसकी एक (१) मात्रा मानी गई है
दीर्घ वर्ण (Deergh Varn): जहां वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व वर्ण से 2 गुना का समय लगे, वहां दीर्घ वर्ण होता है।
जैसे: आ, ई, ऊ, ओ, औ, आदि।
इसकी दो (२) मात्राएं मानी गई है। इनको गुरु भी कहा जाता है।
मात्रा (Matra in Chhand)
किसी स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। छंद शास्त्र में 2 से अधिक मात्रा किसे वर्ण में नहीं होती। मात्रा केवल स्वरों की होती है व्यंजनों की नहीं। मात्राएं गिनते समय व्यंजन पर ध्यान नहीं दिया जाता। वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु लगाने से भी मात्रा पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। Chhand in hindi
छन्दशास्त्र में मात्रा को कई नामों से जाना जाता है –
जैसे- माता, मत, कला, कल, आदि।
यति (Yati in Chhand)
छंदों को पढ़ते समय बीच-बीच में ठहरना पड़ता है। इसी ठहराव को यति कहा गया है। नियमित वर्णों अथवा मात्राओं पर यति होती है।
गति (Gati in Chhand)
छंद को पढ़ने के लय को गति कहते हैं।
तुक (Tuk in Chhand)
छंदों के पद के अंत में जो अक्षरों में समतुल्यता पाई जाती है, उसे तुक कहते हैं। तुक के दो भेद होते हैं- तुकान्त और अतुकान्त
तुकान्त (Tukant): तुक वाले छन्द तुकांत कहलाते हैं।
अतुकान्त (Atukant): तुकहीन छंद अतुकांत कहलाते हैं।
गण (Gan in Chhand)
तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। गणों का प्रयोग वर्णिक (वृत्त) में लघु और गुरु के क्रम को बनाए रखने के लिए होता है। गणों की संख्या आठ मानी गई है- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण। Chhand in hindi
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इसके लिए एक सूत्र का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है–
१ | २ | २ | २ | १ | २ | १ | १ | १ | २ |
य | मा | ता | रा | ज | भा | न | स | ल | गा |
उपर्युक्त उदाहरण में आरंभ के 8 अक्षर प्रत्येक गण के सूचक हैं जबकि अंत के दो अक्षर लघु और गुरु का बोध कराते हैं। गण का रूप निकालने के लिए उस अक्षर और उसके आगे के दो अक्षरों को मिलाकर लिख लिया जाता है। इससे वांछित गण का रूप प्राप्त हो जाता है।
जैसे- यगण में एक लघु और 2 गुरु, मगण में तीनो गुरु, तगण में दो गुरु और 1 लघु, रगण में 1 गुरु, 1 लघु और 1 गुरु, जगण में एक लघु, एक गुरु और एक लघु, भगण में एक गुरु, दो लघु, नगण में तीनों लघु, और सगण में दो लघु और एक गुरु।
उनके नाम, संक्षिप्त नाम, लक्षण, रूप तथा उदाहरण इस प्रकार हैं –
मगण | म | तीनों वर्ण गुरु | २२२ | भाराता |
नगण | न | तीनों वर्ण लघु | १११ | भरत |
भगण | भ | पहला वर्ण गुरु | २११ | भारत |
जगण | ज | मध्य वर्ण गुरु | १२१ | भरात |
छंद के प्रकार (Chhand ke prakar)
Types of Chhand in Hindi
वर्ण और मात्रा के विचार से छन्द के चार भेद माने गए हैं-
- वर्णिक छन्द (Varnik Chhand)
- मात्रिक छन्द (Maatrik Chhand)
- उभय छन्द (Ubhay Chhand)
- मुक्तक छन्द (Muktak Chhand)
वर्णिक छन्द (Varnik Chhand)
जिन छंदों में केवल वर्णों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है, वे वर्णिक छन्द कहलाते हैं। उदाहरण के लिए घनाक्षरी को देखें-
उकुति अनेक ही पै एकहू न कही परै – १६ वर्ण
टेक तौ हमारी कैकई हू तें साठिन है – १५ वर्ण
कुल ३१ वर्ण
वर्णिक छन्द और मात्रिक छन्द के ३ भेद होते हैं–
- सम छन्द
- अर्धसम छन्द
- विषम छन्द
सम छन्द (Sam Chhand)
इन छंदों के चारो चरणों में मात्राओं और वर्णों की संख्या समान पायी जाती है। उदाहरण के लिए चौपाई, रूपमाला, रोला आदि। Chhand in hindi
सम छन्द के दो प्रकार होते हैं। साधारण सम छन्द, और दण्डक सम छन्द
साधारण सम छन्द: जिन छंदों के प्रत्येक चरण में 1 से 26 तक के वर्ण पाए जाते हैं, उन्हें साधारण सम छन्द कहते हैं।
दण्डक सम छन्द: जिन छंदों के प्रत्येक चरण में 26 से अधिक वर्ण होते हैं, वे दण्डक सम छन्द कहलाते हैं। घनाक्षरी (कवित्त) तथा उसकी ‘रूप’, ‘देन’ आदि जातियां दण्डक सम छन्द के अतर्गत आती हैं।
दण्डक सम छन्द के दो प्रकार होते हैं: गुणबद्ध दण्डक सम छन्द, मुक्तक दण्डक सम छन्द
गुणबद्ध दण्डक सम छन्द: इसमें गुणों के अनुसार वर्ण नियमित होते हैं
मुक्तक दण्डक सम छन्द: इसमें गुणों का कोई बंधन नहीं रहता है।
अर्धसम छन्द (Ardhsam Chhand)
और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में मात्राओं अथवा वर्णों की संख्या समान रहती है। उदाहरण के लिए-
बरवै, दोहा, सोरठा आदि।
विषम छन्द (Visham Chhand)
इन छंदों में किसी भी चरण की मात्रा समान नहीं रहती है। उदाहरण के लिए। छप्पय, कुण्डलियाँ आदि।
मात्रिक (जाति) छन्द (Matrik Chhand)
यह छन्द मात्रा की गणना पर आधारित रहता है इसलिए इसका नाम मात्रिक छन्द है। जिन छन्दों से मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता है किन्तु वर्णों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता है, उनके मात्रिक (जाति) छन्द कहते हैं।
मात्रिक (जाति) छन्द के भेद भी वर्णिक की तरह ही होते हैं।
उभय छन्द (Ubhay Chhand)
जिन छंदों में मात्र और वर्ण दोनों की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छन्द कहते हैं।
मुक्तक छन्द (Muktak Chhand)
इन छंदों का नामकरण अंग्रेजी में (Blank verse) के आधार पर किया जाता है। इनमे मात्रा उअर वर्णों की संख्या का कोई निर्धारण नहीं रहता है। इस पद स्वछन्द होते हैं। Chhand in hindi
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