Chausa Battle Hindi / चौसा का युद्ध / The Battle of Chausa in Hindi
चौसा का युद्ध मुग़ल बादशाह हुमायूँ और अफगान सरदार शेर खां के बीच हुआ था. हुमायूं का सेनापति हिंदूबेग चाहता था कि वह गंगा के उत्तरी तट से जौनपुर तक के अफगानों को वहां से भगा दे लेकिन हुमायूं ने अफगानों की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. इसका फायदा उठाकर शेर खां ने एक अफगान गुप्तचर को हुमायूँ के यहां भेजा ताकि उसकी सेना की दुर्व्यवस्था का पता लगा सके. हुमायूं के सेना के दुर्व्यवस्था का पता लगाने के बाद एक दिन अचानक रात को अफगानों से मुगलों पर हमला कर दिया. बहुत से मुगल सैनिक गंगा नदी में कूद पड़े और ना जाने कितने मुग़ल अफगानों के तीरों का शिकार हो गए. हुमायूं स्वयं डूबते-डूबते बचा. इस प्रकार चौसा के युद्ध में अफगानों को विजय मिली
शेर खां की विजय से खुश होकर अफगानी सरदारों ने शेर खां को गद्दी स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया इसके बाद शेर खां ने अपना राज्यभिषेक कराया. उसके सर के ऊपर बंगाल के राजाओं का छत्र लाया गया और उसने सिरसा आलम सुल्तान आदित्य की उपाधि धारण की. इसके बाद शेरशाह ने अपने बेटे जलाल खान को बंगाल पर अधिकार करने के लिए भेज दिया जहां जहांगीर पुरी की मृत्यु के बाद खिज्र खां बंगाल का हाकिम नियुक्त किया गया था. शेर शाह ने बिहार में शुजात खाँ को शासन का भार सौंप दिया
कहां है चौसा? Where is Chausa?
उत्तर प्रदेश और बिहार बॉर्डर पर बक्सर के निकट कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक छोटा सा कस्बा है. इसी स्थान पर (बक्सर से 10 मील दक्षिण-पश्चिम में ) 27 जून 1539 ईसवी को हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच एक युद्ध हुआ था जिसे चौसा का युद्ध के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में हुमायूं बुरी तरह से पराजित हुआ था और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था. वो अपने घोड़े के साथ गंगा नदी में कूद गया और एक भिश्ती की मदद से डूबने से बच गया. शेरशाह सूरी चौसा के युद्ध के बाद बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने उसने ‘सुल्तान- ए-आदिल’ की उपाधि धारण की.
चौसा के युद्ध के बाद बिलग्राम का युद्ध
चौसा के युद्ध के बाद हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच 1540 ईस्वी में बिलग्राम का युद्ध हुआ. युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सूरी ने हुमायूं को भागने के लिए विवश कर दिया इस युद्ध के बाद हुमायूँ भारत से चला गया और उसने निर्वासित जीवन जिया. निर्वासन के दौरान अपने आध्यात्मिक गुरु वीर बाबा दोस्त अली अकबर जामी की बेटी हमीदा बानू बेगम से 29 अगस्त 1541 ई में हुमायूँ ने निकाह किया.
हुमायूं ने अपने जीवन काल में 4 बड़े युद्ध लड़े थे:
(1) देवरा का युद्ध:- 1531 ई. में लड़ा गया.
(2) चौसा का युद्ध:- 1539 ई. में लड़ा गया.
(3) बिलग्राम:- 1540 ई. में लड़ा गया था.
(4) सरहिंद का युद्ध 1555 ई. में लड़ा गया था.
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