Chandragupt Vikrmaditya Life Hindi / चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का संक्षिप्त जीवन परिचय / Biography of Chandragupt Vikrmaditya in Hindi
चंद्रगुप्त द्वितीय को महान चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (Chandragupt Vikrmaditya Life Hindi) के नाम से भी जाना जाता है. यह गुप्त वंश के महान शक्तिशाली सम्राट थे. इनका शासनकाल 380 ईस्वी से 412 ईस्वी तक चला जिसमें गुप्त वंश स्वर्णयुगीन काल में था. गुप्त साम्राज्य को भारतवर्ष का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है. चंद्रगुप्त विक्रमादित्य अपने पूर्व राजा समुद्रगुप्त के पुत्र थे और उनकी ही युद्ध विस्तारक नीतियों का पालन करते हुए अपने साम्राज्य का विस्तार किया.
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था. फाह्यान ने तत्कालिक सामाजिक और धार्मिक स्थिति तथा व्यवस्था का सजीव वर्णन किया है. मध्यदेश का वर्णन करते हुए फाह्यान लिखता है किसान राजा की भूमि को जोतते हैं और लगान के रूप में उपज का कुछ अंश राजा को देते हैं और जब चाहते हैं तब उसकी भूमि छोड़ देते हैं और जहां मन में आता है जाकर रहते हैं. राजा ना तो प्राण दंड देता है और न शारीरिक दंड.
राजा अपराध की दृष्टि छोटा या बड़ा अर्थदंड देता है बार-बार राजद्रोह करने वाले का दाहिना हाथ काट लिया जाता है राज्य अधिकारियों को नियत वेतन मिलता है और नीच चांडालों के अतिरिक्त ना तो कोई जीव हिंसा करता है, ना मदिरापान करता है और न लहसुन प्याज खाता है.
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का संक्षिप्त जीवन परिचय
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चन्द्रगुप्त द्वितीय जिनको चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य भी कहा जाता है उनका कार्यकाल सन् (३८०ई०-४१२ई०) तक रहा.
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समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त नामक एक दुर्बल शासक सत्ता में आया,जो चन्द्रगुप्त द्वितीय का बड़ा भाई था.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो गया था.
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रामगुप्त की अयोग्यता का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उसके राज्य और रानी दोनों का हरण कर लिया.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विजय और वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया था.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के अभिलेखों व मुद्राओं से उसके अनेक नामों व विरुदों के विषय में पता चलता है, जिससें उसे- ‘देवश्री’,‘विक्रम’,‘विक्रमादित्य’,‘प्रतिरथ’,‘सिंहविक्रम’, ‘सिंहचन्द्र’,‘परमभागवत’,‘अजित विक्रम’,‘विक्रमांक’ आदि विरुदों से अलंकृत कहा गया है.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला था.
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एक महान विजेता होने के साथ–साथ चन्द्रगुप्त द्वितीय एक कुशल शासक भी था. उसके शासन की सुव्यवस्था की दृष्टि से विशाल गुप्त साम्राज्य को कई प्रान्तों में विभाजित कर दिया था | उन विभाजित प्रान्तों को ‘मुक्ति’ कहते थे,प्रान्तों को ‘जिलों’ में विभाजित कर दिया जाता था,तथा जिलों को ‘विषय’ कहते थे.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में उसकी प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र और द्वितीय राजधानी उज्जयिनी थी, ये दोनों नगर गुप्तकालीन शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र थे.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल साहित्य और कला का स्वर्ग युग कहा जाता है.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में विद्वानों एवं कलाकारों को आश्रय प्राप्त था.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में नौ रत्न थे –
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इनमें कालिदास,धन्वन्तरि,क्षपणक,अमरसिंह, शंकु,बैताल भट्ट,घटकर्पर, वराहमिहिर और वररुचि उल्लेखनीय थे.
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चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में ही चीनी यात्री फाह्यान (३९९-४१२ई०) भारत यात्रा पर आया था.
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