Bhaiya krishna Kavita (भैया कृष्ण! कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

Ad:

http://www.hindisarkariresult.com/subhadra-kumari-chauhan/

Bhaiya krishna Kavita, ‘भैया कृष्ण’ सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित एक कविता है जिसमे सुभद्रा कुमारी चौहान ने खुद को श्रीकृष्ण की छोटी बहन सुभद्रा मान कर भगवान श्रीकृष्ण को राखी भेजती हैं.

भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज।
कई बार जिसको भेजा है सजा-सजाकर नूतन साज॥
लो आओ, भुनदण्ड उठाओ, इस राखी में बँधवाओ।
भरत-भूमि की रनभूमी को एकबार फिर दिखलाओ॥
वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान।
पढ़ते-पढ़ते आँखों में छा जाता राखी का आख्यान॥
मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी जब-जब राखी भिजवाई।
रक्षा करने दौड़ पड़ा वह राखीबंद शत्रु-भाई॥
किन्तु देखना है, यह मेरी राखी क्या दिखलाती है।
क्या निस्तेज कलाई ही पर बँधकर यह रह जाती है॥

Bhaiya krishna Kavita

देखो भैया, भेज रही हूँ तुमको-तुमको राखी आज।
साखी राजस्थान बनाकर रख लेना राखी की लाज॥
हाथ काँपता हृदय धड़कता है मेरी भारी आवाज़।
अब भी चौंक-चौंक उठता है जलियाँ का वह गोलन्दाज़॥
यम की सूरत उन पतितों के पाप भूल जाऊँ कैसे?
अंकित आज हृदय में है फिर मन को समझाऊँ कैसे?
बहिनें कई सिसकती हैं हा! उनकी सिसक न मिट पाई।
लाज गँवाई, गाली पाई तिस पर गोली भी खाई॥
डर है कहीं न मार्शलला का फिर से पढ़ जाये घेरा॥
ऐसे समय द्रोपदी-जैसा कृष्ण! सहारा है तेरा॥
बोलो, सोच-समझकर बोलो, क्या राखी बँधवाओगे?
भीर पड़ेगी, क्या तुम रक्षा-करने दौड़े आओगे?
यदि हाँ, तो यह लो इस मेरी राखी को स्वीकार करो।
आकर भैया, बहिन ‘‘सुभद्रा’’ के कष्टों का भार हरो॥

इसे भी पढ़ें: सुभद्रा कुमारी चौहान का सम्पूर्ण जीवन परिचय

सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

झांसी की रानी   आराधना इसका रोना  
उपेक्षा   उल्लास   कलह-कारण  
कोयल   कठिन प्रयत्नों से सामग्री   खिलौनेवाला  
गिरफ़्तार होने वाले हैं   चलते समय   चिंता  
जलियाँवाला बाग में बसंत   जीवन-फूल   अनोखा दान  
झाँसी की रानी की समाधि पर   झिलमिल तारे   ठुकरा दो या प्यार करो  
तुम   तुम मानिनि राधे   तुम मुझे पूछते हो  
नीम   परिचय   पानी और धूप  
पूछो   प्रथम दर्शन   प्रतीक्षा  
प्रभु तुम मेरे मन की जानो   प्रियतम से   फूल के प्रति  
बालिका का परिचय   बिदाई   भैया कृष्ण!  
भ्रम   मधुमय प्याली   मुरझाया फूल  
मातृ-मन्दिर में   मेरा गीत   मेरा जीवन  
मेरा नया बचपन   मेरी टेक   मेरी कविता  
मेरे पथिक   यह कदम्ब का पेड़   मेरे भोले सरल हृदय ने  
यह मुरझाया हुआ फूल है   राखी   राखी की चुनौती  
विजयी मयूर   विदा   वीरों का कैसा हो वसंत  
वेदना   व्याकुल चाह   सभा का खेल  
समर्पण   साध   साक़ी  
स्मृतियाँ   स्वदेश के प्रति   हे काले-काले बादल  

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.