बकरीद (Bakrid 2020) या ईद-उल-अजहा (Eid ul zuha or eid al azha or eid ul adha) इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्यौहार है. इस साल यानि सन 2020 की बकरीद (Bakrid 2020) 31 जुलाई को शुक्रवार के दिन यानि जुम्मे को मनाई जा रही है. बकरीद या ईद-उल-अजहा को बकरा ईद (Bakra Eid) के नाम से भी जाना जाता है. इस त्यौहार को क़ुरबानी के त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है। इस त्योहार को भले ही बकरीद के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस शब्द का सम्बन्ध बकरों से नही हैं। यहां तक की ये उर्दू नहीं बल्कि अरबी शब्द है। यानी अरबी में बकर का मतलब होता है बड़ा जानवर जो ईद के दिन जिबह यानि काटा जाता है। इसलिए इसे शब्द को यहां से लिया गया। आज भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश में इसे ‘बकरा ईद’ के नाम से जाना जाता है. जिन लोगों को इस त्यौहार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, हम उन्हें बता दें कि ये त्यौहार मीठी ईद के लगभग 2 महीने या 2 महीने और महज कुछ दिन (मुस्लिम त्यौहार चाँद दिखने के हिसाब से मनाये जाते हैं इसलिए इसमें थोड़ी बहुत फेर बदल होती रहती है) बाद मनाया जाता है। दरअसल मुसलमानों के प्रमुख त्यौहारों में से एक ईद उल अज़हा जिलहिज्जा की दसवीं तारीख को मनाया जाता है। मुस्लिम धर्म में कुर्बानी का अर्थ खुद को खुदा के नाम पर कुर्बान कर देना यानि अपनी सबसे प्यारी चीज का त्याग करने की भावना को उजागर करता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। आप में से ज्यादातर लोगों के मन में ये सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर इस दिन बकरे की क़ुरबानी क्यों दी जाती है? हम आपको बात दें कि इस त्यौहार पर हर उस जानवर की कुर्बानी दी जा सकती है जो आपको प्रिय हो, लेकिन बकरे की कुर्बानी का अपना अलग ही महत्व होता है। चलिए जानते हैं बकरीद से जुड़ी कुछ अहम बातें-
क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?
इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान में बकरीद (Bakrid 2020) का स्पष्ट वर्णन मिलता है. ऐसा बताया जाता है कि अल्लाह ने एक दिन हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर कहा जाता है। वह पूरी जिंदगी दुनिया की भलाई के लिए ही काम करते रहे, लेकिन 90 साल के जाने के बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई। उन्होंने खुदा की इबादत की और उन्हें एक बेटा मिला जिसका नाम था इस्माइल। हजरत इब्राहिम को सपने में ये आदेश मिला कि वह खुदा की राह में कुर्बानी दे। ऐसे में उन्होंने पहले ऊंट की कुर्बानी दी। इसके बाद उन्हें ये सपना आया कि वह सबसे प्यारी चीज की अपनी कुर्बानी दें। इस पर उन्होंने अपने सभी जानवर को कुर्बान कर डाला। इसके बाद भी उन्हें फिर वहीं सपना बार-बार आता रहा। इसके बाद उन्होंने खुदा पर विश्वास जताते हुए अपने बेटे की कुर्बानी करने का फैसला लिया। जिसके बाद हजरत इब्राहीम अपने दस वर्षीय पुत्र इस्माइल को ईश्वर की राह पर कुर्बान करने निकल गए. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया.
जब हज़रत इब्राहिम को अपने बेटे की बली देनी पड़ी
अल्लाह ने अपने प्रति जब उनका विश्वास देखा तो उन्होंने उनके बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया। दरअसल हजरत ने अपने जब अपने बेटे की कुर्बानी दी तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। बाद में जब उन्होंने पट्टी खोली तो अपने बेटे इस्माइल को जिंदा पाया और उसकी जगह एक बकरे को कुर्बान होते हुए देखा। तभी से इस्लाम धर्म में बकरीद मनाने का प्रचलन शुरू हो गया. इस्लामिक इतिहास में इस घटना के बाद से बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है। किसी भी जानवर की कुर्बानी के बाद उसे तीन भागों में बांटा गया है, एक हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है, दूसरा हिस्सा जरूरतमंद और गरीबों को दिया जाता है और तीसरा हिस्सा अपने पास रखा जाता है।
कैसे मनाते हैं बकरा ईद?
बकरा ईद (Bakrid 2020) के दिन सभी मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं. मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही नमाज पढ़ने का हुक्म है। नमाज पढ़कर आने के बाद ही कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू होती है. लोग अपने घर में पल रहे बकरे की बली देते हैं और जिनके घर में बकरा नहीं होता है वो ईद से कुछ दिन पहले बकरा खरीद कर लाते हैं और उनकी बली दी जाती है। बली देने के बाद इसका मीट बनाया जाता है. ईद उल फितर की तरह ईद-उल-ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।
दिल्ली की जामा मस्जिद जहाँ सबसे ज्यादा लोग पढ़ते हैं ईद की नमाज
तंदुरूस्त जानवर की दी जाती है कुर्बानी
अपने देश में ज्यादातर बकरे की कुर्बानी की जाती है। बकरा तन्दुरूस्त और बगैर किसी ऐब का होना चाहिए। उसके शरीर के किसी हिस्से में भी कमी होने पर कुर्बानी मान्य नहीं होती है। कुर्बानी के लिए जानवर चुनते वक्त इस बात का भी खास ख्याल रखें कि उसके शरीर पर बाल अधिक हों। बताया जाता है कि कुर्बानी वाले जानवर के शरीर पर जितने बाल होते हैं, कुर्बानी करने वाले मुसलमान के उतने ही गुनाह माफ हो जाते हैं।
मुसलमानों को दिखावा करने से बचना चाहिए
आज के दौर में हर जगह ही दिखावा करना ट्रेंड बन चुका है। ईद उल अजहा पर भी हजारों से लेकर लाखों रूपये की कीमत के बकरे बाजार में बिकते हैं। कुछ लोग ज्यादा पैसे का बकरा खरीद कर दिखावा करते हैं। इस्लाम धर्म में दिखावा करना किसी भी तरह से सही नहीं है। हमें दिखावे से बचना चाहिए।
बकरीद या ईद उल अजहा हमें क्या सीख देता है?
बकरीद (Bakrid 2020) या ईद उल अजहाहमें दो सन्देश देता है पहला यह कि परिवार के बड़े सदस्य को स्वार्थ से परे देखना चाहिए और पक्षपात नहीं करना चाहिए. दूसरा सबक ये है कि अगर आपका खुदा पर अटूट विश्वास है तो वो आपका भरोसा कभी टूटने नहीं देता.
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