Anokha dan Kavita (अनोखा दान कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

Anokha dan Kavita, अनोखा दान सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है

अपने बिखरे भावों का मैं

गूँथ अटपटा सा यह हार।

चली चढ़ाने उन चरणों पर,

अपने हिय का संचित प्यार॥

डर था कहीं उपस्थिति मेरी,

उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य

नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा

मेरे इन भावों का मूल्य?

संकोचों में डूबी मैं जब

पहुँची उनके आँगन में

कहीं उपेक्षा करें न मेरी,

अकुलाई सी थी मन में।

Anokha dan Kavita

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किंतु अरे यह क्या,

इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान?

प्रथम दृष्टि में ही दे डाला

तुमने मुझे अहो मतिमान!

Anokha dan Kavita

मैं अपने झीने आँचल में

इस अपार करुणा का भार

कैसे भला सँभाल सकूँगी

उनका वह स्नेह अपार।

Anokha dan Kavita

लख महानता उनकी पल-पल

देख रही हूँ अपनी ओर

मेरे लिए बहुत थी केवल

उनकी तो करुणा की कोर।

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