Battle of Assaye in Hindi (असाय या असाई की जंग)   

Battle of Assaye in Hindi / Assaye’s Battle in Hindi / असाय या असाई की जंग  

असाय का युद्ध या असाय की लड़ाई मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़े गए दूसरे एंग्लो-मराठा युद्ध (आंग्ल मराठा युद्ध) की एक प्रमुख लड़ाई थी. यह युद्ध 23 सितंबर 1803 को पश्चिमी भारत में असाये के पास हुआ जिसमे अंग्रेज़ी सेना ने मेजर जनरल सर आर्थर वेलेजली (जो बाद में वेलिंगटन के ड्यूक बने) के नेतृत्व में दौलतराव सिंधिया और बरार के भोंसले राजा की संयुक्त मराठा सेना को हराया। असाय की जंग ड्यूक ऑफ वेलिंगटन की पहली बड़ी जीत थी और जिसे बाद में उसने अपनी किताब में युद्ध के मैदान में अपनी बेहतरीन उपलब्धि के रूप में वर्णित किया है.

भारतीय इतिहास में मराठों और अंग्रेजों के बीच तीन आंग्ल-मराठा युद्ध हुए. ये युद्ध 1775 से सन 1818 के बीच हुए. उन्हीं युद्धों में दूसरे आंग्ल युद्ध के दौरान असाई की लड़ाई हुई थी. दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध 1803 से 1805 के मध्य हुआ था.

असाय का युद्ध (Battle of Assaye in Hindi) में आर्थर के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना मराठों की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी लेकिन अपनी रणनीतिक कौशल से मैराथन की विशाल सेना के आगे मजबूर साबित हुई. जिससे शिंदे और भोंसले की संयुक्त सेना को हार का मुंह देखना पड़ा. कहा जाता है कि शिंदे की सेना को इस लड़ाई के लिए विशिष्ट रूप से ट्रेनिंग भी दी गई थी, इसके बावजूद अंग्रेजों के एक छोटी सेना के मुकाबले उसको पराजय मिली. मराठों की विशाल सेना के पराजय होने का एक प्रमुख कारण यह भी था. कि इनके आपस में हमेशा विभिन्न मुद्दों मतभेद रहता था. शायद यही मुख्य वजह थी कि मराठों की शक्तिशाली सेना को अंग्रेजों से युद्ध में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा.

फूट डालो और राज करो वाली अंग्रेजों की नीति

इस युद्ध में मराठों की सेना के आगे अंग्रेजों की सेना की संख्या नगण्य थी लेकिन अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से मराठों के बीच आपसी मतभेद पैदा किया और उनमें फूट डाल दिया, जिससे विभिन्न मुद्दों पर उनके बीच फूट पड़ गया. इस तरह फूट डालो राज करो वाली रणनीति के तहत अंग्रेजों ने असाई की लड़ाई को आसानी से जीत लिया.  हालांकि शिन्दे की जिस सेना ने लड़ाई में भाग लिया था, उसको यूरोपीय अफ़सरों से यूरोपीय ढंग से ट्रेनिंग दिलाई गई थी, लेकिन वह छोटी सी अंग्रेज़ी सेना से बुरी तरह से पराजित हो गई इसका मुख्य कारण मराठों की विशाल सेना के बीच आपसी सामंजस्य ना होना था.

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