Jain Literature in Hindi / जैन साहित्य का संक्षिप्त परिचय / A Brief Introduction about Jain Literature in Hindi
इस आर्टिकल में हम जैन साहित्य (Jain literature) के बारे में कुछ महत्पूर्ण बातें बताने जा रहे हैं जो UPSC prelims में अक्सर पूछे जाते हैं.
जैन साहित्य के प्रकार
जैन साहित्य (Jain literature) को मुख्यतः छः भागों में बाँटा जा सकता है:
- द्वादश अंग
- द्वादश उपांग
- दस प्रकीर्ण
- षट् छेद सूत्र
- चार मूल सूत्र
- विविध
द्वादश अंग
जैन साहित्य (Jain Literature in Hindi) के इस भाग को निम्नलिखित अंगों में बांटा जा सकता है जो निम्नलिखित है. इसका पहला अंग है:
- आचारंग सुत्त (आचारंग सूत्र): इसमें उन नियमों का वर्णन है, जिन्हें जैन भिक्षुओं को अपनाना चाहिए. जैन भिक्षुओं को किस प्रकार तपस्या करनी चाहिए, किस प्रकार जीव रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए, इत्यादि बातों का इसमें विस्तृत वर्णन किया गया है.
- सूत्र कृदंग (सूत्र कृयाड़्क): इसमें जैन भिन्न मतों की व्याख्या की गई है और जैन धर्म पर जो आक्षेप किए जा सकते हैं उनका उत्थान करके उचित उत्तर दिया गया है, जिससे भिक्षु अपने मत का भली-भांति पक्ष पोषण कर सके.
- स्थानांग: इसमें जैन धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है.
- समवायांग: इसमें भी जैन धर्म के सिद्धांत वर्णित हैं.
- भगवती सूत्र: यह जैन धर्म का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है. इसमें जैन धर्म के सिद्धांतों के अतिरिक्त स्वर्ग और नरक के विषय में विस्तृत वर्णन किया गया है.
- ज्ञान धर्म कथा: इसके अंतर्गत कथा, आख्यायिका और पहेली आदि द्वारा जैन धर्म के सिद्धांतों का उपदेश दिया गया है.
- उवासंग दशाएँ (उपासक दशा): इसमें दस समृद्ध व्यापारियों की कथा है जिन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर मोक्ष को प्राप्त किया.
- अंतः कृदृशाः इसमें उन जैन भिक्षुओं का वर्णन है जिन्होंने विविध प्रकार की तपस्याओं द्वारा अपने शरीर का अंत कर दिया और इस प्रकार मोक्ष पद को प्राप्त किया.
- अनुत्तरोपपादिक दशः इसमें भी तपस्या द्वारा शरीर का अंत करने वाले भिक्षुओं का वर्णन है.
- प्रश्न व्याकरण: इसमें जैन धर्म की दस शिक्षाओं और दस-निषेध आदि का वर्णन किया गया है.
- विपाक श्रुतम: इस जन्म में किए गए अच्छे और बुरे कर्मों का मृत्यु के बाद किस प्रकार फल मिलता है, इस बात को इस अंग में कथाओं द्वारा प्रदर्शित किया गया है.
- दृष्टिवाद: यह अंग इस समय अप्राप्य है. जैन लोग दृष्टिवाद में चौदह “पूर्वाः” का परिगणन करते हैं. ये संस्कृत के पुराणों की तरह बहुत प्राचीन समय से विकसित हो रहे थे.
द्वादश उपांग
जैन साहित्य के इस भाग में प्रत्येक अंग का एक-एक उपांग है, जो निम्नलिखित हैं:
- औपपातिक
- राज प्रश्नीय
- जीवाभिगम्
- प्रज्ञापना
- जम्बू द्वीप प्रज्ञाप्ति
- चन्द्र प्रज्ञाप्ति
- सूर्य प्रज्ञाप्ति
- निरयावली
- कल्पावतशिका
- पुष्थिका
- पुष्प चूलिका
- वृष्णि दशा
दश प्रकीर्ण
जैन साहित्य के इस भाग में जैन धर्म संबंधी विषयों का वर्णन है, जिनके नाम इस प्रकार हैं:
- चतु: शरण प्रकीर्ण
- संस्तारक प्रकीर्ण
- आतुर प्रत्याख्यानम्
- भक्ता परिज्ञा
- तंदुल वैचारिका
- चन्द्र वैद्यक
- गणि विद्य
- देवेन्द्र स्तव
- वीर स्तव
- महा-प्रत्याख्यान
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षट छेद सूत्र
जैन साहित्य (Jain Literature in Hindi) के इस भाग के इन सूत्रों में जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए विविध नियमों का वर्णन किया गया है जो निम्नलिखित हैं:
- व्यावहार सूत्र
- वृहत कह्ल सूत्र
- दशा श्रुत स्कन्ध सूत्र
- निशीथ सूत्र
- महानिशीथ सूत्र
- जित कल्प सूत्र
चार मूल सूत्र
जैन साहित्य के इस भाग में चार मूल सूत्रों के बारे में बताया गया है जो निम्नलिखित हैं:
- उत्तराध्यवन सूत्र
- दस वैकालिक सूत्र
- आवश्यक सूत्र
- ओकनिर्युक्ति सूत्र
विविध
जैन साहित्य (Jain Literature in Hindi) के इस भाग के अंतर्गत नंदि सूत्र (Nandi Sutra) और अनुयोग द्वार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं. यह विश्वकोष के जैसा है. इन धर्म ग्रन्थों पर अनेक टीकाएँ हुई हैं, जिनमें सबसे प्राचीन टीकाएँ निर्युक्ति कहलाती हैं. जैन टीकाकारों में सबसे प्रसिद्ध हरि-भद्र स्वामी हुए. इसके अतिरिक्त शान्ति सूरी, देवेन्द्र गणी और अभय देव नाम के टीकाकारों ने भी महत्वपूर्ण भाष्य और टीकाएँ लिखीं हैं. प्रायः सभी जैन धर्म के ग्रन्थ प्राकृत भाषा में हैं. जैन साहित्य प्राकृत, आर्य अथवा अर्ध मागधी के नाम से प्रसिद्ध है.
नोट: जैनों के जिस धार्मिक साहित्य का ऊपर वर्णन किया गया है वह श्वेताम्बर सम्प्रदाय के हैं. दिगंबर सम्प्रदाय के धार्मिक ग्रंथों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है.
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