Buddha Teachings in Hindi (महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेश)

Buddha Teachings in Hindi / महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेश / Teachings of Buddha in Hindi

बुद्ध ने बहुत ही सरल और उस समय बोली जाने वाली भाषा पाली में अपना उपदेश दिया था. यदि आपको परीक्षा में सवाल आये कि बुद्ध ने उपदेश किस भाषा में दिया था तो उसका उत्तर पाली होगा, ना कि संस्कृत या हिंदी. चूँकि पाली भाषा उस समय की आम भाषा थी तो इसके चलते बुद्ध के उपदेश का प्रसार दूर-दूर तक हुआ. बुद्ध ने कहा कि मनुष्य को सभी प्रकार के दुःखों से दूर रहना चाहिए. उन्होंने जीवन के ऐसे चार सत्यों का वर्णन किया जिन्हें उन्होंने हमेशा याद रखने की सलाह दी. वे चार सत्य हैं:

बुद्ध के उपदेश (Buddha Teachings in Hindi) के चार सारभौमिक सत्य

  • जन्म, मृत्यु, रोग, इच्छा आदि सभी दुःख देते हैं.
  • किसी प्रकार की इच्छा सभी दुःखों का कारण है.
  • तृष्णाओं पर नियंत्रण करना चाहिए ताकि हम दुःख से बच सकें.
  • सांसारिक दुःखों को दूर करने के आठ मार्ग हैं. इन्हें आष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग कहा गया है. मध्यम मार्ग को अपनाकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त करने में सक्षम है. Buddha Teachings in Hindi

बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग

  • सम्यक् (शुद्ध) दृष्टि: सत्य, असत्य, पाप-पुण्य आदि के भेदों को समझना
  • सम्यक् संकल्प: इच्छा और हिंसा के विचारों का त्याग करना
  • सम्यक् वाणी: सत्य और विनम्र वाणी बोलना
  • सम्यक् कर्म: सदा सही और अच्छे कार्य करना
  • सम्यक् आजीव: जीविका के उपार्जन हेतु सही तरीके से धन कमाना
  • सम्यक् व्यायाम: बुरी भावनाओं से दूर रहना
  • सम्यक् स्मृति: अच्छी बातों तथा अच्छे आचरण का प्रयोग करना
  • सम्यक् समाधि: किसी विषय पर एकाग्रचित होकर विचार करना

बुद्ध ने अनेक बौद्ध संघ की स्थापना की. इन्हें विहार कहा जाता था. संघ में सभी जाति के लोगों को प्रवेश करने की अनुमति थी. ये अत्यंत सादा जीवन जीते थे. भिक्षा माँगकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते थे. इसलिए ये भिक्षु या भिक्षुणी कहलाते थे.

बुद्ध के उपदेशों की लोकप्रियता का कारण

सरल और प्रभावी उपदेश (Buddha Teachings in Hindi) के चलते बौद्ध धर्म देश-विदेश में अत्यंत लोकप्रिय हुआ. बौद्ध धर्म का पहला सम्मलेन (संगीति) मगध की राजधानी राजगृह (राजगीर) में हुआ. इसमें त्रिपिटक नामक बौद्धग्रन्थ का संग्रह किया गया. इस धर्म ने महान अशोक को बहुत प्रभावित किया. राजा अशोक ने इसी धर्म के प्रभाव से अपनी साम्राज्यवादी नीति का त्याग कर दिया और अपना शेष जीवन प्रजा की भलाई और बौद्ध धर्म का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार में लगाया.

बौद्ध धर्म ने बहुत हद तक ब्राह्मणवाद और प्रचलित धार्मिक कर्मकांड जैसे यज्ञ, बलि आदि की निंदा की. बौद्ध विहारों के चलते नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों का विकास हुआ, जहाँ दूर-दूर से देश विदेश से लोग अध्ययन हेतु आते थे.

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!
Join Telegram Join WhatsApp