GST Full Form in Hindi, GST: Goods and Services Tax (वस्तु एवं सेवा कर)
GST का फुल फॉर्म है: “Goods and Services Tax” यानि हिंदी में कहें तो “वस्तु एवं सेवा कर”. GST यानि वस्तु एवं सेवा कर भारत सरकार की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जो 1 जुलाई 2017 से लागू की गयी. इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि GST क्या है? यह वर्तमान टैक्स संरचना को कैसे सुधार देगा? और सबसे महत्वपूर्ण बात कि भारत को एक नए टैक्स सिस्टम की आवश्यकता क्यों है? इन सब सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में मिलेंगे.
GST (जी एस टी) क्या है? ( GST in Hindi)
भारत में GST लागू करने का इरादा (GST Full Form) व्यापार की वित्तीय झंझटों को आसान बनाना था। नरेंद्र मोदी सरकार तथा कई अर्थशास्त्री भी जीएसटी को देश का सबसे बड़ा कर सुधार बता रहे हैं। इसके लागू होते ही सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, वैट, एक्साइज ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर से मुक्ति मिल जाएगी और उनकी जगह जीएसटी लगेगा जो देशभर में एक जैसे सामान पर समान रूप से लागू होगा।
कई अर्थशास्त्रियों द्वारा इसे स्वतंत्रता के पश्चात् सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया है। इसके लागू होने से केन्द्र सरकार एवम् विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भिन्न भिन्न दरों पर लगाए जा रहे विभिन्न करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू हो गयी है। इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन किया गया था।
GST यानि वस्तु एवं सेवा कर (GST Full Form), वस्तु एवं सेवा कर परिषद द्वारा संचालित है। भारत के वित्त मंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं। जीएसटी के तहत, वस्तुओं और सेवाओं को निम्नलिखित दरों पर कर लगाया जाता है, 0%, 5%, 12% और 18% । मोटे कीमती और अर्ध कीमती पत्थरों पर 0.25% की एक विशेष दर तथा सोने पर 3% की दर है।
GST कर की प्रकृति
जीएसटी एक मूल्य वर्धित कर है जो कि विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक एकल कर है। प्रत्येक चरण पर भुगतान किये गये इनपुट करों का लाभ मूल्य संवर्धन के बाद के चरण में उपलब्ध होगा जो प्रत्येक चरण में मूल्य संवर्धन पर जीएसटी को आवश्यक रूप से एक कर बना देता है। अंतिम उपभोक्ताओं को इस प्रकार आपूर्ति श्रृंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होगा। इससे पिछले चरणों के सभी मुनाफे खत्म हो जायेंगे।
अगर आसान भाषा में GST की बात की जाए तो चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, टेलिकॉम लाइसेंस फी, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले टैक्स इत्यादि अनेकों करों के स्थान पर अब यह एक ही कर लागू किया जा रहा है।
जीएसटी पर किस चीज पर लगेगा कितना टैक्स?
जीएसटी परिषद (GST Full Form) ने सभी वस्तुओं और सेवाओं को चार टैक्स स्लैब (5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत) में विभाजित किया है। जीएसटी परिषद ने 12011 वस्तुओं को इन चार वर्गों में रखा है। आम जनता के लिए उपयोगी करीब 80 वस्तुओं पर कोई टैक्स नहीं (कर मुक्त ) लगेगा। सिगरेट, शराब और पेट्रोलियम उत्पादों (पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और एलपीजी) को अभी जीएसटी से बाहर रखा गया है।
किस चीज कोई टैक्स नहीं लगेगा
जूट, ताजा मीट, मछली, चिकन, अंडा, दूध, छाछ, दही, प्राकृतिक शहद, ताजा फल, सब्जियां, आटा, बेसन, ब्रेड, प्रसाद, नमक, बिंदी, सिंदूर, स्टांप पेपर, मुद्रित किताबें, अखबार, चूड़ियां, हैंडलूम, अनाज, काजल, बच्चों की ड्राइंग, कलर बुक इत्यादि। एक हजार रुपये से कम कीमत वाले होटल और लॉज इत्यादि पर कोई कर नहीं लगेगा.
जीएसटी भारत की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बदलाव लाते हुए एकल बाजार में 2,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था और 1.3 अरब लोगों को जोड़ेगी। जीएसटी काउंसिल ने सभी वस्तुओं और सेवाओं को चार टैक्स स्लैब (5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत) में बांटा है। काउंसिल ने 12011 वस्तुओं को इन चार वर्गों में रखा है। इसके तहत 20 लाख तक का व्यापार करने वालों को जीएसटी से मुक्ति मिलेगी। साथ ही 75 लाख तक के व्यापारी को जीएसटी में राहत मिलेगी।
GST यानि वस्तु एवं सेवा कर इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
अब जबकि हम GST को अच्छी तरह समझ गए हैं तो आइये देखते हैं कि यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? तथा यह वर्तमान टैक्स संरचना को और अर्थव्यवस्था को बदलने में क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?
वर्तमान में, भारतीय कर संरचना दो करों में विभाजित है: प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर
- प्रत्यक्ष कर: प्रत्यक्ष कर या डायरेक्ट टैक्स वह टैक्स है जिसमें देनदारी किसी और को नहीं दी जा सकती। इसका एक उदाहरण आयकर है, जहां आप आय अर्जित करते हैं और केवल आप उस पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं।
- अप्रत्यक्ष कर: अप्रत्यक्ष करों के मामले में, टैक्स का भार किसी अन्य व्यक्ति को दिया जा सकता है।
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भूतपूर्व कर प्रणाली को ध्यान में रखते हुए, इसका मतलब यह है कि जब दुकानदार अपनी बिक्री पर वैट देता है तो वह अपने ग्राहक पर कर का भार ट्रान्सफर सकता है. पुरानी कर प्रणाली के अनुसार, ग्राहक आइटम की कीमत और वैट का भुगतान किया करते थे ताकि दुकानदार वैट को एकत्र कर सरकार को भुगतान कर सके। मतलब ग्राहक न केवल उत्पाद की कीमत का भुगतान करता है, बल्कि उसे कर भी देना पड़ता है, और इसलिए, जब वह किसी आइटम को खरीदता है तो उसे अधिक कीमत देनी पड़ती है। यह इसलिए होता है क्योंकि दुकानदार ने जब वह आइटम थोक व्यापारी से खरीदा था तब उसे कर का भुगतान करना पड़ा था। वह राशि वसूल करने के लिए और साथ ही सरकार को भुगतान किए गए वैट की भरपाई के लिए, वह अपने ग्राहक को टैक्स का भार दे देता है जिसकी वजह से ग्राहक को अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ता है।लेन-देन के दौरान दुकानदार अपनी जेब से जो भी भुगतान करता है, उसके लिए रिफंड का दावा करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है और इसलिए, उसके पास ग्राहक को टैक्स का भार देने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।
जी एस टी कैसे काम करेगी?
बिना सख्त निर्देशों और प्रावधानों के बिना एक देशव्यापी कर सुधार काम नहीं कर सकता है। जी एस टी (GST Full Form) कौंसिल ने इस नए कर व्यवस्था को तीन श्रेणियों में विभाजित करके, इसे लागू करने का एक नियम तैयार किया है। जी एस टी में 3 प्रकार के टैक्स हैं :
- CGST (सीजीएसटी): इसके अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा.
- SGST (एसजीएसटी): राज्य में बिक्री के लिए राज्य सरकारों द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा.
- IGST (आईजीएसटी): जहां अंतरराज्यीय बिक्री के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा. अंतरराज्यीय बिक्री के मामले में अब केवल एक प्रकार का कर (केंद्रीय) होगा।
उदाहरण महाराष्ट्र में एक व्यापारी ने 10,000 रुपये में उस राज्य में उपभोक्ता को माल बेच दिया। जीएसटी की दर 18% है जिसमें सीजीएसटी 9% की दर और 9% एसजीएसटी दर शामिल है।ऐसे मामलों में डीलर 1800 रूपए जमा करता है और इस राशि में 900 रुपए केंद्र सरकार के पास जाएंगे और 900 रुपए महाराष्ट्र सरकार के पास जाएंगे। इसलिए अब डीलर को आईजीएसटी के रूप में 1800 रूपये चार्ज करना होगा। अब सीजीएसटी और एसजीएसटी को भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।
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