Form of Education in Adolescence/ Kishoravastha/ किशोरावस्था में शिक्षा का स्वरूप
जैसा कि हमने किशोरावस्था की विशेषताओं में पढ़ा है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन, उथल-पुथल से भरा और समस्याओं का काल होता है। यही वह समय होता है जिसमें बालक अच्छा व्यक्ति या बुरा व्यक्ति बन सकता है। अतः किशोरों को सही मार्गदर्शन मिलना बहुत जरूरी है। इनके भावी जीवन का निर्माण माता-पिता अभिभावकों शिक्षकों तथा अन्य साधनों पर पूर्णतया निर्भर करता है।
किशोरावस्था में शिक्षा के कुछ प्रमुख आधार निम्नलिखित है-
स्वस्थ शरीर एवं मन का विकास (Development of Healthy Physique and Mind)
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन इतनी तेजी से होते हैं कि हम उनके लिए उपयुक्त साधन जुटाने में असफल रहते हैं इस सब का सही प्रयोग हम शिक्षा के माध्यम से ही कर सकते हैं। इसके अंतर्गत सबसे पहले हमें स्वस्थ मन एवं स्वस्थ शरीर को बनाए रखने के लिए पर्यावरण पर ध्यान देना चाहिए। किशोरों के लिए पौष्टिक भोजन स्वास्थ्य शिक्षा व्यायाम और खेलकूद आदि की व्यवस्था आवश्यक है। इसी प्रकार से स्वस्थ मन के लिए किशोरों की बुद्धि, निरीक्षण शक्ति, तर्क शक्ति, चिंतन शक्ति स्मृति, कल्पना शक्ति आदि का उचित विकास का ध्यान देना चाहिए। Form of Education
अतः किशोरावस्था की शिक्षा में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है-
- उपयुक्त एवं सामाजिक पाठ विषयों की व्यवस्था
- पुस्तकालय वाचनालय प्रयोगशालाएं संग्रहालय कर्मशालाएं और खेलकूद आदि की व्यवस्था।
- जिज्ञासा एवं निरीक्षण शक्ति का विकास करने के लिए पाठ्य विषयों के अतिरिक्त ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थानों के भ्रमण का आयोजन।
- छात्रों में कलात्मक तथा सौंदर्यात्मक भावों को जागृत करने के लिए साहित्य संगीत एवं कला आदि के शिक्षण की व्यवस्था।
- भाव एवं विचार ग्रहणशीलता और प्रकाशन के लिए वाद विवाद, साहित्यिक गोष्ठी, संगीत आयोजन, एवं भाषण माला का आयोजन।
- अतः विद्यालय को किशोर छात्र-छात्राओं के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए और उनके विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
संवेगात्मक विकास (Emotional Development)
किशोरावस्था को तूफान तनाव एवं संघर्ष की अवस्था माना जाता है। यह तथ्य उसकी संवेगात्मक अस्थिरता को प्रकट करता है। शिक्षा के द्वारा किशोर एवं किशोरियों के संवेगों का प्रकाशन सही प्रकार से एवं सही दिशा में किया जाता है ताकि उनके व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास हो सके।
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अतः किशोरावस्था की शैक्षिक व्यवस्था में संवेगात्मक विकास के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- संवेगों का शोधन एवं मार्ग रूपांतरण करने के लिए विद्यालय में विशेष शिक्षा दी जानी चाहिए।
- सुंदर एवं राष्ट्रीय स्थायी भावों का गठन छात्रों में किया जाना चाहिए।
- नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा का सही शिक्षण विद्यालय में होना चाहिए।
- इस अवस्था में शिक्षकों एवं अभिभावकों को सचेत रहना चाहिए ताकि छात्र अपने संवेगों का गलत इस्तेमाल न कर पाए।
सामाजिक व्यक्तित्व के लिए शिक्षा (Education for Social Personality)
किशोरावस्था सामाजिक संबंधों को ग्रहण करने का समय होता है। इस समय व्यक्ति और व्यक्ति के बीच में, व्यक्ति और समूह के बीच में, समूह और समूह के बीच में संबंध स्थापित किए जाते हैं। जो व्यक्ति इन संबंधों को बनाने में अधिक उत्सुकता दिखाते हैं वे अपने सामाजिक व्यक्तित्व का विकास शीघ्र स्थापित कर लेते हैं। अतः शिक्षा के द्वारा सामूहिक क्रियाएं, सामूहिक खेल और स्काउटिंग आदि का प्रशिक्षण सामाजिक व्यक्तित्व के विकास के लिए उपलब्ध होना चाहिए। Form of Education
यौन शिक्षा (Sex Education)
किशोरावस्था में जनन क्रियाएं चरमोत्कर्ष पर होती हैं। किशोर किशोरियों में एक दूसरे के प्रति आकर्षण स्वभाविक होता है। उनमें अपना जीवनसाथी पाने की लालसा होती है अतः उनको सामाजिक बुराइयों से बचाने के लिए यौन शिक्षा को सही रूप में प्रस्तुत करना अध्यापकों एवं अभिभावकों का परम कर्तव्य होना चाहिए।
यौन शिक्षा द्वारा किशोर और किशोरियों को शारीरिक और मानसिक विकास के अवसर मिलते हैं और वह मानवीय शोषण से बच जाते हैं। स्त्री और पुरुष में समानता के आधार पर सहयोग समानता तथा आत्मनिर्भरता में वृद्धि होती है।
अतः मानसिक विकारों से बचाने के लिए, भावना ग्रंथियों को समाप्त करने के लिए और किशोर अपराधों को रोकने के लिए यौन शिक्षा की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है।
नागरिक जीवन के लिए शिक्षा (Education for Citizenship)
प्रत्येक शिक्षा प्रणाली का एक उद्देश्य होता है कि वह अपने देश के व्यक्तियों को अच्छा नागरिक बना सके। किशोर किशोरियों में अच्छे नागरिक के गुण शिक्षकों एवं अभिभावकों के द्वारा ही विकसित किये जा सकते हैं। किशोरावस्था उसका उपयुक्त समय है। वह व्यक्ति उत्तम माना जाता है जिसके अंदर राष्ट्रभक्ति, अच्छा स्वास्थ्य, क्रियाशीलता, कर्तव्यनिष्ठा, सहनशीलता, प्रेम, सहानुभूति, उत्तम चरित्र, सहकारिता, आदि नागरिक गुण हों। अतः किशोरावस्था की शिक्षा व्यवस्था नागरिक जीवन के लिए होनी चाहिए ताकि सभी अपनी क्षमताओं के साथ सुलभ जीवन यापन कर सके।
शिक्षा का आधार वैयक्तिकता (Education based on Individuality)
प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमताओं के आधार पर भिन्नता लिए हुए होता है। अतः किशोर किशोरियों की शिक्षा की व्यवस्था वैयक्तिकता के आधार पर होनी चाहिए। इनकी शिक्षा का स्वरूप बौद्धिक क्षमता, रुचि, क्रियाशीलता, मनोवृति अनुभव और सामयिक आवश्यकता के आधार पर निश्चित की जानी चाहिए। इस प्रकार से सभी विद्यार्थी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर सकते हैं।
इसीलिए माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952- 1953 के अनुसार कहा गया है- हमारे माध्यमिक विद्यालयों को छात्रों की विभिन्न प्रवृत्तियों, रुचियों और योग्यताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी चाहिए। Form of Education
यथार्थता की शिक्षा (Education of Reality)
किशोरावस्था में छात्रों को यथार्थता की शिक्षा की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। जैसा कि आप जानते हैं कि यह समय भटकाव का होता है इसलिए भौतिक संसार के माया जाल से स्वयं को बचाने के लिए तथा भविष्य में सुखी जीवन जीने के लिए किशोरावस्था में बालकों को इसकी शिक्षा जरूर देनी चाहिए।
जब हम वास्तविकता और बनावटीपन में अंतर करना सीख जाते हैं तो हमें यथार्थता का ज्ञान हो जाता है। किशोरावस्था में बालक क्षणिक भावावेश में अपने जीवन को असामाजिक एवं कठिन बना सकते हैं, अतः उनको यथार्थता, वास्तविकता और व्यावहारिकता आदि का सही ज्ञान दिया जाना चाहिए ताकि अपने भविष्य को सही दिशा में ले जा सके और सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें।
नेतृत्व की शिक्षा (Education of Leadership)
मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों में बालकों या किशोरों की नेतृत्व क्षमता को लेकर विभिन्न मत हैं। बालकों को जैसा चाहे वैसा बनाया जा सकता है। महान मनोवैज्ञानिक वाटसन का कहना है- “आप हमें बालक दीजिए, उसे हम वकील डॉक्टर प्रोफ़ेसर नेता जो कुछ भी बनाना चाहे बना सकते हैं। अतः देश को सही, सक्षम तथा कुशल नेता मिल सके इसके लिए हमें नेतृत्व के गुणों को विकसित करने की शिक्षा किशोरों को देनी बहुत आवश्यक है। नेता ही अपनी दूरदर्शिता और नीतियों से राष्ट्र का सही संचालन करेंगे।
शिक्षक की भूमिका (Role of the teacher)
किशोरावस्था में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब शिक्षक को मनोवैज्ञानिक पद्धतियों द्वारा प्रशिक्षित किया गया हो। उसको किशोर एवं किशोरियों की विशेषताएं परिवर्तनों आदि का ज्ञान हो। ताकि वह उनके भविष्य का सही मूल्यांकन कर सके। शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए ताकि बालक उसे सम्मान दें और उनका अनुकरण करें। शिक्षक पाठ्यक्रम को नवीन तरीके से बढ़ाएं तथा साथ ही किशोरों की भावनाओं और उनके संवेगों का समाधान यथार्थ दृष्टिकोण से करे।
एम. एल. विगी के अनुसार – “जो शिक्षक अपने छात्रों को अभिप्रेरित करने में सक्षम होते हैं वे शिक्षा संबंधी युद्ध को आधे से भी अधिक प्रारंभ से पहले ही जीत लेते हैं।” Form of Education
निर्देशन की व्यवस्था (Arrangement of Guidance)
किशोरावस्था भावावेश की अवस्था होती है। इसमें व्यक्तिगत, शैक्षिक, और व्यवसायिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इनका समाधान सही समय पर होते रहना चाहिए अन्यथा ये किशोर एवं किशोरियों के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। विद्यालयों में निर्देशन केंद्रों और प्रशिक्षित निर्देशकों की व्यवस्था होनी चाहिए जो बालकों का सही रूप से अध्ययन कर सकें और समयानुसार परामर्श के द्वारा उनके भविष्य का सही निर्धारण कर सकें।
चार्ल्स ई. स्किनर ने लिखा है– ” किशोर किशोरियों को निर्णय लेने का कोई अनुभव नहीं होता है अतः उनके लिए निर्देशन आवश्यक हो जाता है।” इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि किशोरावस्था का समय बहुत ही नाजुक और आंदोलन वाला होता है। इस अवस्था में की गई मेहनत, सही निर्णय और संकल्प बालक को महान बनाने में सहायक होते हैं।
अतः शिक्षा जगत को इस काल की शिक्षा का प्रारूप सही रूप से तैयार करना चाहिए ताकि बालकों के भविष्य का निर्माण अव्यवस्थित न हो सके। इस काल में अध्यापकों, अभिभावकों एवं समाजसेवियों के द्वारा शिक्षा का सुनियोजित प्रबंध एवं संचालन किशोर किशोरियों के अच्छे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। Form of Education
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