Factors affecting growth development (शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक)

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Factors affecting growth development

Factors affecting growth & development of a child/ बच्चे के शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

शारीरिक विकास का स्वरूप सभी बच्चों में सामान्य होते हुए भी काफी मायनों में भिन्न होता है. यह विविधता अलग- अलग देशों के निवासियों में अलग- अलग होती है. टैनर (1990) ने इस विविधता का कारण पोषण, गरीबी, बीमारी, जलवायु इत्यादि को माना है.

जन्म से पूर्व अर्थात भ्रूणावस्था में शारीरिक विकास को भाभावित करने वाले कारक

1. भोजन

भ्रूण का विकास तीव्र गति से होता है. उसे प्रोटीन खनिज, वसा आदि पोषक तत्व अपनी माता से प्राप्त होते हैं। अतः उसकी माता का संतुलित आहार लेना आवश्यक है। संतुलित आहार की कमी से नवजात के शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। Factors affecting growth development

2. माता का स्वास्थय

अगर गर्भावस्था के दौरान माता को कोई रोग या बीमारी है तो इसका भी नवजात के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। माता के रोग जैसे गोनोरिया सिफलिस आदि का भ्रूण पर प्रभाव पड़ता है।

3. मद्यपान या धूम्रपान

अगर गर्भावस्था के दौरान माता मद्यपान या धूम्रपान करती है तो इसका असर भ्रूण के स्वास्थ्य पर पड़ता है। मद्यपान की वजह से शिशु को रक्तचाप एवं हृदय के रोग हो सकते हैं और धूम्रपान उसके मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।

4. सांवेगीकता

माता की अति संवेदनशीलता का प्रभाव शिशु पर पड़ता है।

जन्म के पश्चात शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

1. वंशानुक्रम

बालक को बहुत सारे गुण वंशानुगत मिलते हैं. शरीरिक आकार में वृद्धि की गति, विकसित देशों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पृथक पायी जाती है. इनमें ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता, दादा-दादी की तुलना में अधिक लम्बे एवं अधिक भार वाले पाये गये हैं. यह प्रवृति यूरोपीय देशों, जापान और अमेरिका आदि में दिखाई देती है.  यह विभिन्नता पूर्व बाल्यावस्था में प्रकट होकर, किशोरावस्था में तीव्र गति से घटित होता हुआ परिपक्वता के पश्चात् कम होने लगता है. नयी पीढ़ी के बच्चों में अधिक लम्बाई का कारण तीव्र गति से परिपक्वता का आना है. 1960-1970 के पश्चात् प्रति दशक, परिपक्वता की अवधि 3-4 माह पूर्व होती गयी है.

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इसका सबसे बड़ा कारण अच्छा पोषण एवं स्वास्थ्य सुविधा है. यह प्रवृति निम्न आर्थिक स्तर के बच्चों में नहीं पायी जाती है. कुपोषण या बीमारी से ग्रसित बच्चों में शारीरिक आकार के विकास में कमी पायी गयी.

2. वातावरण

बच्चे की वृद्धि पर वातावरण का भी काफी प्रभाव पड़ता है. ठन्डे और गर्म वातावरण में रहने वाले बच्चों के शारीरिक विकास में होने वाला अंतर प्रत्यक्षत: देखा जा सकता है. गर्म वातावरण में रहने वाले बच्चे शीत वातावरण में रहने वाले बच्चों की तुलना में जल्दी बढ़ते हैं. गर्म वातावरण की बालिकाओं में भी किशोरावस्था तथा मासिक धर्म की शुरुवात जल्दी होती है.

3. शारीरिक वृद्धि पर हारमोंस का प्रभाव

बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तनों के नियंत्रण में, एंडोक्रइन ग्रंथियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है. इन ग्रंथियों से श्रवित हारमोंस, विशिष्ट कोशिकाओं से स्रवित होकर, एक कोशिका से अन्य कोशिकाओं तक पहुंचते हैं. इन कोशिकाओं में से कुछ एक के ही संग्राहक इन हारमोंस के प्रति क्रियाशील होते हैं. पिट्यूटरी ग्रन्थि जो हैपोथैलमस के निकट पायी जाती है, से इनका स्राव होता है ये हारमोंस रक्त स्रोत में प्रवेश कर शरीर के टिशू को क्रियाशील करते हैं जिससे गतिशील क्रिया होती है इस ग्रंथि के विशिष्ट संग्राहक, रक्तस्रावमें हारमोंस को खोज लेते हैं. Factors affecting growth development

4. अंतः स्रावी ग्रंथियां

कुछ अंतः स्रावी ग्रंथियां भी बच्चों की वृद्धि के लिए उत्तरदायी होती हैं. पिट्यूटरी ग्रंथि से होने वाला स्राव वृद्धि हार्मोन है जो जीवन पर्यन्त चलता रहता है. यह स्राव केन्द्रीय स्नायु संस्थान, संभवत: एड्रीनल ग्रंथि तथा लैंगिक क्षेत्र के अतिरिक्त शरीर के सारे भाग को प्रभावित करता है. इस क्रिया में एक अन्य हार्मोन जिसे सोमैटोनेडीन कहते हैं, भी सहायक की भूमिका निभाता है. हैपोथैलमस एवं पिट्यूटरी ग्रंथियां सामूहिक रूप से गले में निहित थायराइड ग्रंथि को सक्रिय करती हैं. इनका प्रभाव मस्तिष्क की स्नायु कोशिकाओं एवं सामान्य शरीरिक विकास पर पड़ता है. थायराक्सिन की न्यूनता के कारण मानसिक मदन्ता की संभवना होती है. थायराक्सिन की कमी के शिकार बच्चों की शारीरिक वृद्धि औसत से धीमी गति से होती है. चूंकि मस्तिष्क का विकास शीघ्र ही जाता है अतएव केंद्रीय स्नायु संस्थान पर इसका प्रभाव नहीं पड़ पाता. Factors affecting growth development

टैनर के अनुसार यदि ऐसे बच्चों की सही देखभाल की जाए तो वे शीघ्र ही औसत वृद्धि की गति पा लेते हैं. पिट्यूटरी स्राव द्वारा यौन हारमोंस (एंड्रोजेन तथा एस्ट्रोजेन) का नियंत्रण होता है. ये हारमोंस लड़के लड़कियों के यौन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

इसे अलावा भी शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक निम्न हैं:

  • बुद्धि
  • पोषाहार
  • रोग और चोट
  • लिंग भेद

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