Apathit Hindi Gadyansh-4 (अपठित हिंदी गद्यांश-4)

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Apathit Hindi Gadyansh-4

Apathit Hindi Gadyansh-4 / परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण अपठित हिंदी गद्यांश-4

स्वामी विवेकानंद ने भारत के पुनर्निर्माण में कार्यरत मनुष्य के लिए जिन मुख्य बातों पर बल दिया था वह चरित्र, आध्यात्मिकता, आत्मविश्वास और अंततः के प्रति प्रेम, विशेषत: दरिद्र अशिक्षित तथा पद दलितों के लिए। यह कार्य वास्तव में महान है, किंतु दृढ़ इच्छा के सामने कुछ नहीं टिक सकता। भारतीयों में भारत माता के प्रति देशभक्ति की भावना जागृत करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने कहा था, तुम यह मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री, दमयंती हैं। मत भूलना कि तुम्हारा जीवन अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है। मत भूलना कि ये नीच, अज्ञानी, दरिद्र, तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं।

पंडित जवाहरलाल नेहरू का कथन स्मरणीय है, जो उन्होंने एक बार स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, अतीत में संलग्न तथा भारतीय धरोहर के प्रति गर्व से परिपूर्ण होते हुए भी विवेकानंद जीवन की समस्याओं के प्रति आधुनिक धारणा रखते थे तथा भारत के अतीत एवं वर्तमान के मध्य सेतु की भाँति थे। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उन्होंने आज के भारत को अत्यंत प्रभावित किया है। हमारी युवा पीढ़ी स्वामी जी से लाभान्वित होगी जिनकी वाणी प्रज्ञा और शक्ति से ओतप्रोत है। स्वामी जी ने एक  अधैर्यवान शिष्य को समझाया कि श्रद्धावान बन, वीर्यवान बन, आत्मज्ञान प्राप्त कर। यही मेरी इच्छा एवं आशीर्वाद है। श्रद्धा का अभिप्राय कई बातों से है पहली है आत्मश्रद्धा (आत्मविश्वास) और दूसरी है हमारी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति श्रद्धा।

हमारी मातृभूमि का केंद्र, प्राण पखेरू धर्म तथा केवल धर्म में ही है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, इन पर श्रद्धावान भाव रख। तुम्हारे अंदर पूर्ण शक्ति निहित है। तुम सब कुछ करने में समर्थ हो। इस शक्ति को पहचानो , उठो और अपना अंतस्थ ब्रह्मभाव अभिव्यक्त करो। वीर बनो, वीन बनो। मानव केवल एक बार ही मरता है। सारी शक्ति तुम्हारे अंदर है। बल ही जीवन है, और दुर्बलता मृत्यु। शैशव से ही तुम्हारे मस्तिष्क में सकारात्मक, सशक्त एवं परोपकारी विचार प्रविष्ट होने चाहिए। Apathit Hindi Gadyansh-4

इसे भी पढ़िए: अपठित गद्यांश के प्रश्नों को हल करते समय ध्यान देने योग्य बातें

उपर्युक्त गद्यांश से सम्बन्धित प्रश्न

प्रश्न 1: जीवन अपने व्यक्तिगत सुख के लिए ना होने से स्वामी जी का क्या अभिप्राय है?

प्रश्न 2: विवेकानंद किस प्रकार अतीत और वर्तमान के मध्य सेतु थे?

प्रश्न 3: “अंतस्थ ब्रह्मभाव की अभिव्यक्ति है” से क्या अभिप्राय है?

प्रश्न 4: स्वामी जी ने पुनर्निर्माण के कार्य हेतु किन गुणों पर ध्यान दिया?

प्रश्न 5: गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक बताइए?

उपर्युक्त गद्यांश से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर

उत्तर 1: प्रस्तुत उक्ति से अभिप्राय अपने सुख की अपेक्षा निर्बल एवं दरिद्र लोगों को सुखी रखने के प्रयास से है।

उत्तर 2: भारतीय संस्कृति के आधार पर जीवन यापन करने व समस्याओं के निवारण के लिए आधुनिक विचारधारा के वरण के द्वारा विवेकानंद दो युगों के मध्य सेतु थे।

उत्तर 3: प्रस्तुत पंक्ति से अभिप्राय परमात्मा को बाहर खोजने की अपेक्षा अपने ही अंदर अनुभव करने से है।

उत्तर 4: स्वामी जी ने पुनर्निर्माण के लिए चरित्र, आध्यात्मिकता, आत्मविश्वास एवं प्रेम पर ध्यान दिया है।

उत्तर 5: उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है: “स्वामी विवेकानंद”

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