कौन है तबलीगी जमात का मौलाना साद जो भारत के कोरोना से जंग में सबसे बड़ा विलन है?
वैश्विक महामारी कोरोना के महासंकट के बीच हजारों देसी-विदेशी मुसलमानों का जमात जुटाकर देशभर में वायरस का खतरा बढ़ाने के दोषी और जारी विवाद का केंद्र बने मौलाना साद का पूरा नाम मौलाना मुहम्मद साद कंधलावी है। वह भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन तबलीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कंधलावी का पड़पोता है.
मौलाना मुहम्मद साद कांधलवी (अरबी: محمد سعد كاندهلوي) एक भारतीय मुस्लिम विद्वान और उपदेशक है। मौलाना साद कांधलवी का जन्म 10 मई 1965 को हुआ था। इसके पिता का नाम मोहम्मद हारून है। मौलाना साद ने हजरत निजामुद्दीन मरकज के मदरसा काशिफुल उलूम से 1987 में अपनी दरस-ए-निज़ामी की पढ़ाई पूरी की और आलिम की डिग्री ली थी। यह तब्लीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कांधलवी का बड़ा पोता है। यह तब्लीगी जमात के एक गुट के प्रमुख हैं। Maulana saad Nizamuddin
विवादों से पुराना नाता
मौलाना साद (Maulana saad Nizamuddin) का विवादों से पुराना नाता है। एक बार जब उसने खुद को तबलीगी जमात का एकछत्र अमीर घोषित कर दिया तो जमात के वरिष्ठ धर्म गुरुओं ने उनका जबर्दस्त विरोध किया। हालांकि, मौलाना पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और सारे बुजुर्ग धर्म गुरुओं ने अपना रास्ता अलग कर लिया। बाद में साद का एक ऑडियो क्लिप भी जारी हुआ जिसमें वह यह कहते हुए सुना गया कि, ‘मैं ही अमीर हूं… सबका अमीर… अगर आप नहीं मानते तो भांड़ में जाइए।’
खुद को घोषित किया जमात का एकछत्र अमीर
दरअसल, मौलाना साद जब खुद को अमीर घोषित किया तो उसका विरोध इसलिए हुआ क्योंकि तबलीगी जमात के पूर्व अमीर मौलाना जुबैर उल हसन ने संगठन का नेतृत्व करने के लिए के सुरू कमिटी का गठन किया था। लेकिन, जब जुबैर का इंतकाल हो गया तो मौलाना साद ने लीडरशिप में किसी को साथ नहीं लिया और अकेले अपने आप को ही तबलीगी जमात का सर्वेसर्वा घोषित कर दिया। चूंकि साद जमात के संस्थापक के पड़पोते और संगठन के दूसरे अमीर के पोते हैं तो एक वर्ग का उनके प्रति श्रद्धा बरकरार रही।
2017 की फरवरी महीने में दारु उलूम देवबंद ने तबलीगी जमात से जुड़े मुसलमानों को फतवा जारी कर कहा कि साद कुरान और सुन्ना की गलत व्याख्या करते हैं। देवबंद का यह फतवा मौलाना साद के भोपाल सम्मेलन में दिए गए बयान के बाद आया जिसमें उन्होंने कहा कि (निजामुद्दीन) मरकज मक्का और मदीना के बाद दुनिया का सबसे पवित्र स्थल है। दारुल उलूम देवबंद ने मौलान साद के इस बयान को पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बताया।
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दूसरे ग्रुप के साथ हिंसा हुयी और जमात दो धड़ों में बंट गया
2016 के जून महीने में मौलाना साद और मौलाना मोहम्मद जुहैरुल हसन की लीडरशिप वाले तबलीगी जमात के दूसरे ग्रुप के बीच जबरदस्त हिंसक झड़प हो गई थी। दोनों ग्रुप ने एक-दूसरे पर घातक हथियारों से हमले किए थे। इस झड़प में करीब 15 लोग घायल हो गए थे। तब पुलिस-प्रशासन की दखल से शांति कायम हुई थी। मौलाना साद के ग्रुप के हिंसक व्यवहार से घबराकर तबलीगी जमात के कई वरिष्ठ सदस्य निजामुद्दीन छोड़कर भोपाल चले गए। इस तरह, देश में तबलीगी जमात का दो धड़ा बन गया। एक धड़े का केंद्र निजामुद्दीन में है जबकि दूसरे का भोपाल। Maulana saad Nizamuddin
देवबंदियों से विवाद
मोहम्मद साद कांधलवी की कुछ तकरीरों के बाद देवबंदी विद्वानों ने उसके खिलाफ फतवा जारी किया। दक्षिण अफ्रीकी मुफ्ती अब्राहिम देसाई ने अपनी वेबसाइट AskImam पर भी एक फतवा प्रकाशित किया। भारत के इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने कांधलवी के खिलाफ फतवा जारी करते हुए उनके नेतृत्व पर सवाल उठाया। दारुल उलूम नदवातुल उलमा के ज़ैद मजाहिरी ने भी इस मुद्दे पर कई किताबें लिखी जिनमें तबलिगी जमात का बहम इख़्तिलाफ आव्र इत्तेहाद-ओ-इत्तेफाक़ अर्क सुलह-ओ-सफ़ाइ की इक कोशिश शामिल हैं। इन प्रतिक्रियाओं के बाद, ब्रिटिश विद्वान यूसुफ मोटला ने कांधलवी के बचाव में लिखा और बोला।
अभी ताजा विवाद के अनुसार कोरोना वायरस लॉकडाउन में, निज़ामुद्दीन के कई रोगियों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया जो तब्लीगी जमात मण्डली में 13 और 15 मार्च 2020 को शामिल हुए थे.
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