Makhanlal Chaturvedi Kavita Sangrah (माखनलाल चतुर्वेदी का कविता संग्रह)

Makhanlal Chaturvedi Kavita Sangrah

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन 1889 ईसवी में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम पंडित नंदलाल चतुर्वेदी था जो पेशे से अध्यापक थे. माखनलाल चतुर्वेदी ने प्राथमिक शिक्षा विद्यालय में प्राप्त की और इसके पश्चात घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया. कुछ दिनों तक अध्यापन करने के बाद इन्होंने प्रभा नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया. यह खंडवा से प्रकाशित होने वाली कर्मवीर पत्रिका का 30 साल तक संपादन और प्रकाशन करते रहे.

माखनलाल चतुर्वेदी की भाषा शैली

सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के ये अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में इन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये इनको अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। ये सच्चे देशप्रमी थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। इनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। Makhanlal Chaturvedi Kavita Sangrah

माखनलाल चतुर्वेदी का सम्पूर्ण जीवन परिचय पढ़ें

प्रकाशित कृतियाँ

हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि इनके प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं। Makhanlal Chaturvedi Kavita Sangrah

माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ

एक तुम हो   लड्डू ले लो   दीप से दीप जले  
मैं अपने से डरती हूँ सखि   कैदी और कोकिला   कुंज कुटीरे यमुना तीरे  
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे सिपाही वायु
वरदान या अभिशाप?   बलि-पन्थी से   जवानी
अमर राष्ट्र   उपालम्भ   मुझे रोने दो  
तुम मिले   बदरिया थम-थमकर झर री ! यौवन का पागलपन  
झूला झूलै री   घर मेरा है?   तान की मरोर  
पुष्प की अभिलाषा   तुम्हारा चित्र   दूबों के दरबार में  
बसंत मनमाना   तुम मन्द चलो   जागना अपराध  
यह किसका मन डोला   चलो छिया-छी हो अन्तर में   भाई, छेड़ो नही, मुझे  
उस प्रभात, तू बात न माने   ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा   मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक  
आज नयन के बँगले में   यह अमर निशानी किसकी है?   मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी  
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं   क्या आकाश उतर आया है   कैसी है पहिचान तुम्हारी  
नयी-नयी कोपलें   ये प्रकाश ने फैलाये हैं   फुंकरण कर, रे समय के साँप  
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं   जाड़े की साँझ   समय के समर्थ अश्व    
मधुर! बादल, और बादल, और बादल   जीवन, यह मौलिक महमानी   उठ महान  
ये वृक्षों में उगे परिन्दे   बोल तो किसके लिए मैं   वेणु लो, गूँजे धरा  
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने   गाली में गरिमा घोल-घोल   प्यारे भारत देश  
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा   किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप   गंगा की विदाई  
वर्षा ने आज विदाई ली   ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें    

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